बड़ी कार्रवाई का समय

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यह समझ में न आने वाली मानसिकता है कि कुछ लोग कोरोना टेस्ट का विरोध करते हुए डाक्टरों-स्वास्थ्य कर्मियों पर पत्थर बरसा रहे है। मुरादाबाद और औरंगाबाद से जो तस्वीरें देश के समुख आई है, वे हैरानगी के साथ व्यथित भी करती है। यह समय ऐसे लोगों से कड़ाई से पेश आने का है, जो कोरोना के खिलाफ चल रही लड़ाई को कमजोर करना चाहते है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठीक ही कहा है कि ऐसे लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा चलेगा और जो भी जन-धन हानि हुई है, उसकी भरपाई उन्हीं दोषियों से की जायेगी। इन्दौर में भी इसी तरह डाक्टरों और नर्सो को दौड़ा लिया गया था। दिल्ली समेत कई राज्यों में डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ से हिंसा और दुव्र्यवहार की शिकायतें सामने आयी है। इससे भला कौन इंकार कर सकता है कि डाक्टर और नर्स इस वक्त सीधे कोरोना पीडि़त लोगों की जान बचाने के लिए जान हथेली पर लेकर अपना फर्ज अदा कर रहे है। इतने डाक्टर और नर्स ऐसे भी रहे, जो इलाज करते वक्त खुद भी कोरोना के शिकार हो गये।

इस भयावह वायरस के तौर-तरीके को देखते हुए स्थिति यह है कि डाक्टरों-नर्सो को अपने परिवार से दूर रहना पड़ रहा है। इस कुर्बानी की गहराई और गंभीरता को समझने की जरूरत है। जब देश विश्व व्यापी कोरोना से लड़ाई लड़ रहा है, तब ऐसे देवदूतों पर टूट पडऩा उनकी जान के लिए खतरा तो है ही, साथ ही इस तरह से ऐसे प्रथम पंक्ति के योद्धाओं का मनोबल भी प्रभावित होता हैं। वैसे यह राहत की बात है कि संकट की इस घड़ी में डाक्टरों के संगठन दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग तो कर रहे है लेकिन यह भरोसा भी दिला रहे है कि इस स्थितियों के बीच भी कोरोना पीडि़तों के इलाज में कोई कोताही नहीं होगी। यह संकल्प स्वागत योग्य इसलिए भी है कि पूर्व में कई बार दुव्र्यवहार के मामलों को लेकर कभी डाक्टर तो कभी नर्सिंग स्टाफ को हड़ताल पर जाते देखा गया है। इन देवदूतों को अपना फर्ज याद है तो हमें भी अपनी भूमिका के प्रति सर्तक रहना चाहिए।

देश में वैसे ही आबादी के अनुपात में डाक्टर नहीं है। ऐसे में, इस तरफ की हिंसक घटनाएं चिंतित करती है। इसी तरह हमारे उन पुलिस कर्मचारियों के बारें में अपनी धारणा बदलने की जरूरत है। लॉक डाउन के समय उनकी ड्यूटी पहले से ज्यादा संवेदनशील और चुनौतिपूर्ण हो गई है। अपने परिवारों से भी उन्हें इस गंभीर रोग के चलते दूर रहना पड़ता है ताकि संक्रमण से बचाया जा सके। इन शूरवीरों की स्थिति यह है कि कई खुद संक्रमित पाये गये है। इन चुनौतियों के बीच अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उसकी सराहना की जानी चाहिए तथा अकारण सड़क पर निकलकर उनका सिर दर्द नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। इसी तरह हमारे डिलवरी सिस्टम से जुड़े लोग तथा स्थानीय निकाय तथा सामाजिक- धार्मिक संगठनों के लोग भी सराहना के पात्र है। जो सड़कों पर निकलकर उन लोगों की भूख मिटाने का प्रयास कर रहे हैए जिनके पास लॉकडाउन में सिर्फ जिन्दगी बचाने का सवाल हैं।

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