बंगले में चिराग से ही आग लगी

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रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। लेकिन पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी आस्था है और बिहार चुनाव में लोजपा के जो भी विधायक जीतेंगे वे मोदी के हाथ मजबूत करेंगे। यह बात लोजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद पार्टी की ओर से कही गई है। पहली नजर में ही यह साफ दिख रहा है कि अगर ऐसा होता है तो उससे जनता दल यू को बड़ा नुकसान होगा और भाजपा को फायदा होगा। हालांकि यह भी संभव है कि एनडीए के भीतर की इस खींचतान का फायदा राजद नेतृत्व वाले गठबंधन को हो जाए। बहरहाल, अब सवाल है कि क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस बात के लिए दबाव बनाएंगे कि वे लोक जनशक्ति पार्टी को एनडीए से बाहर करें और रामविलास पासवान को केंद्रीय कैबिनेट से निकालें? क्योंकि अगर एनडीए में रहते हुए और रामविलास पासवान के मंत्री रहते हुए लोक जनशक्ति पार्टी उन सीटों पर उम्मीदवार उतारती है, जहां जदयू चुनाव लड़ रही है तो निश्चित रूप से जदयू को नुकसान होगा। अगर लोजपा का उम्मीदवार पांच-सात हजार वोट भी काटे तो जदयू का उम्मीदवार हारेगा।

तभी रविवार की शाम को लोजपा के अलग होने की घोषणा के बाद रात में जदयू नेताओं ने इस हालात पर विचार किया और कहा जा रहा है कि पार्टी लोजपा को एनडीए से और पासवान को केंद्र सरकार से हटाने की मांग करेगी। साथ ही भाजपा पर इस बात के लिए दबाव बनाएगी कि वह जनता के बीच यह मैसेज दें कि लोजपा को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसका समर्थन नहीं है। अगर भाजपा ने बहुत स्पष्टता के साथ लोजपा से दूरी नहीं बनाई तो यह तय है कि भाजपा का कोर वोटर जदयू को हराने के लिए लोजपा को वोट देगा। क्योंकि उसको पता होगा कि अगर लोजपा जीती तो वह अंतत: भाजपा का साथ देगी। तभी जदयू के नेता यह भी चाहते हैं कि सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा यह स्पष्ट करें कि लोजपा को उनका समर्थन नहीं है। अभी एनडीए में रहते हुए एनडीए के एक घटक जदयू के खिलाफ लोजपा के नेता चिराग पासवान ताल ठोंक रहे हैं उसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में उनके पिता रामविलास पासवान और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने किया था। उस समय ये दोनों नेता केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री थे।

लालू प्रसाद रेल मंत्री और रामविलास पासवान रसायनिक खाद, उर्वरक और स्टील मंत्री थे। दोनों केंद्र में मंत्री पद पर बने रहे और बिहार में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे। वैसे सीधा मुकाबला लालू और पासवान का गठबंधन एनडीए के साथ था पर इन दोनों के अलग होने के बाद कांग्रेस भी सभी सीटों पर लड़ रही थी। केंद्र में मंत्री रहते दोनों के कांग्रेस से अलग होकर बिहार में चुनाव लडऩे का नतीजा यह हुआ है कि लालू प्रसाद 23 सीट से घट कर पांच सीट पर आ गए और रामविलास पासवान की पार्टी शून्य पर रह गए। पासवान खुद भी चुनाव हार गए। हार का यह सिलसिला 2010 के विधानसभा चुनाव में भी चलता रहा। 2010 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद और पासवान साथ लड़े, कांग्रेस अलग लड़ी और एनडीए का गठबंधन लड़ा। नतीजा राजद, लोजपा और कांग्रेस के सफा, वाला था। राज्य की 243 में से 206 सीटें एनडीए को मिलीं और राजद, लोजपा, कांग्रेस तीनों मिला कर 30 सीट पर रह गए। तभी जदयू के नेता लोजपा की पोजिशन को लेकर कोई कंफ्यूजन नहीं रखना चाहते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस मामले को कैसे हैंडल करती है?

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