फिर भोर में जगाते क्यो हो?

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भले ही हम एकादशी या जन्माष्टमी का व्रत न रखें लेकिन जबसे सरकार ने क्रिकेट को इस देश का धर्म घोषित किया है, हम किसी भी क्रिकेट मैच की कमेंट्री सुनना नहीं भूलते। हालांकि कल रात का मैच कोई भारत पाकिस्तान के मैच की तरह देश भक्ति से जुड़ा हुआ मामला नहीं था। फिर भी जब एक ओर मैच का मेजबान तथा संभावित दावेदाप इंग्लैंड और दूसरी ओर प्रथम दो विश्व कप का विजेता और कभी दुनिया की नंबर एक टीम रहा वेस्टइंडीज हो तो देखना बनता है। उठने में देर हो गई। दरवाजे पर जोर-जोर से ‘जय श्रीराम’ के नारों ने जगाया। जैसे धर्म-प्राण लोग मुसाफिर के प्राण लेने तक उसे जगाकर ही मानते हैं उठ जाग मुसाफिर भोर भई भले ही बेचारा मुसाफिर रात की ड्यूटी करके चार बजे सोया हो। हमने गुस्सा होते हुए कहा- तोताराम अब कौन-सा राम-रावण का युद्ध हो रहा है, जिसके लिए वानर-सेना में जोश भरने के लिए इतनी जोर से नारा लगाया जा रहा है।

बोला- ‘जय श्री राम’ का नारा लगाना मेरा मौलिक अधिकार है। अब तो पार्थ घोष नाम के एक वकील ने कोलकाता उच्च न्यायालय में इसके लिए याचिका भी दायर कर दी है। हमने कहा- ठीक है लेकिन नारा लगाने के इस अधिकार का उपयोग अपने शायन-कक्ष में कर और इतने ही जोर से कर कि दूसरों की नींद हराम न हो। राम को सुनाना है या दुनिया को? बोला- नारा धीरे लगाने से कोई फायदा नहीं। न तो अड़ोस-पड़ोस पर धार्मिकता का कोई प्रभाव पड़ता और न ही जोश आता है। हमने -कहा जोश किसलिए चाहिए? नारा लगाने के लिए? अरे, जोश पैदाकर सपाई के लिए, देश के संसाधनों का सदुपयोगकरने के लिए, भाईचारे के लिए। नारा अपने आप में कोई काम नहीं है। बोला-काम क्यों नहीं है? इससे एकता आती है। हमने कहा-क्या खाक एकता आती है? इन नारों के चक्कर में ही तो लोग लड़ रहे हैं, एक-दूसरे का सिर फोड़ रहे है। बोला – तो ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने के लिए क्या पाकिस्तान जाएं? ‘यह श्रीराम’ का नारा भारत में नहीं लगेगा तो कहां लगेगा?

हमने कहा-एक राम ही क्यों? भारत में हिन्दुओं के ही 33 करोड़ देवी-देवता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न सम्प्रदायों और जातियों के भी गुरु, आराध्य और गॉड फादर होंगे। धर्मों के भी कुछ होंगे ही। तो क्या यह देश नारे ही लगाता रहेगा? बोला- जिस देश में गांधी के मुकाबिल गोडसे का नारा लगाया जा सकता है, उसका मंदिर बनाने के इंतजार में राजधानी में उसका अस्थि-कलश प्रतीक्षा कर रहा है तो ‘जय श्रीराम’ का नारा तो उसके सामने कुछ भी नहीं है। हमने कहा- तोताराम, तुम्हारे इस तर्क के सामने तो कुछ भी अनुचित नहीं है। वैसे नारा लगाना बुरा नहीं है बशर्ते कि वह किसी को चिढ़ाने के लिए न हो। गाली निकालने वाले एक तोते की कहानी तो तुझे पता ही है, जिसकी शिकायत उसके मालिक से करने पर अगले दिन तोते ने उस मालिक से करने पर अगले दिन तोते ने उस आदमी से क्या कहा? तू समझ तो गया ही होगा कि मैं क्या कहने वाला था। वैसे यदि इस ‘नाराधिकार’ का भविष्य समझना है तो संसद का शपथ-ग्रहण समारोह देख ले।

रमेश जोशी
लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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