फिर भी सरकार नकदी संकट में

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मोदी सरकार नकदी के संकट में है। कई बातों से इसका पता पहले से चल रहा था। पर अब जिस अंदाज में सरकार ने पेट्रोल और डीजल के ऊपर तीन-तीन रुपए का उत्पाद शुल्क और उपकर लगाया है उससे इस बात की पुष्टि हो गई है कि सरकार के पास नकदी की कमी है और वह किसी और उपाय से पैसे नहीं जुटा पा रही है। यह भी साफ हो गया है कि सरकार अपने खर्च में नहीं कर पा रही है तभी उसे अतिरिक्त नकदी का इंतजाम करना पड़ रहा है और फिर भी वित्तीय घाटा तय सीमा से ऊपर चला जा रहा है। तभी सवाल है कि सरकार के पास जो पैसे आ रहे हैं वह कहां जा रहा है? इस सवाल के जवाब में बहुत सरल तरीके से यह कहा जा सकता है कि सरकार की राजस्व वसूली कम हुई है। तब एक दूसरा सवाल उठेगा कि राजस्व वसूली क्यों कम हुई है? जब सरकार ने नोटबंदी के जरिए समूचा काला धन सिस्टम में ला दिया और साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था बन गई और दूसरी ओर वस्तु व सेवा कर, जीएसटी के जरिए परोक्ष कर वसूली की व्यवस्था को भी पुता तरीके से लागू कर दिया गया तब भी राजस्व वसूली कम क्यों है? नोटबंदी के बावजूद प्रत्यक्ष कर वसूली और जीएसटी के बावजूद अप्रत्यक्ष कर वसूली दोनों कम है तो इसका मतलब है कि इनके बारे में किया गया सरकार का दावा पूरी तरह से गलत है! इन दोनों ‘मास्टरस्ट्रोक’ से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है।

विनिवेश फेल: एक दूसरा संभावित जवाब यह है कि सरकार के पास विनिवेश से जो पैसा आना था वह भी नहीं आया। ध्यान रहे चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने एक लाख पांच हजार करोड़ रुपए विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा था। पर बाद में इसे घटा कर 55 हजार करोड़ किया गया और ऐसा नहीं लग रहा है कि इस वित्त वर्ष में सरकार इस लक्ष्य को भी हासिल कर पाएगी क्योंकि अभी तक एयर इंडिया के विनिवेश नहीं हो पाया है और न भारत पेट्रोलियम, कंटेनर कॉरपोरेशन या शिपिंग कॉरपोरेशन की बिक्री की कोई खबर है। सरकार ने भारत जीवन बीमा निगम, एलआईसी के शेयर बेचने का भी फैसला किया है पर कोरोना वायरस के खतरे की वजह से शेयर बाजार के जो हालात हैं उसमें सरकार के लिए एलआईसी के शेयर बेचना भी मुश्किल है। सो, कहा जा सकता है कि सरकार के पास पैसा नहीं आया इसलिए वह नकदी के संकट में है। नौ लाख करोड़ कमाई: पर यह अधूरा सच है। सरकार को कई तरह के छप्पर फाड़ धन मिला है। याद करें कैसे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट शुरू हो गई थी और तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह उनका नसीब है, जो तेल के दाम घट रहे हैं। उनके नसीब से या चाहे जैसे भी तेल के दाम बुरी तरह गिरे और सरकार ने इसका लाभ आम लोगों को नहीं दिया।

उलटे उत्पाद शुल्क बढ़ा कर अपनी कमाई बढ़ा ली। कच्चे तेल के दाम में कमी से सरकार को दो तरह से फायदा हुआ। पहले तो भारत का आयात बिल कम हुआ और डॉलर बचा। दूसरी ओर उत्पाद शुल्क बढ़ाने से सरकार को और आम उपभोक्ता को लाभ नहीं देने से तेल कंपनियों को छप्पर फाड़ मुनाफा हुआ। इन कंपनियों ने सरकार को मोटा लाभांश दिया। एक अनुमान के मुताबिक तेल पर दोतरफा कमाई और बचत से सरकार को नौ लाख करोड़ रुपए के करीब कमाई हुई। छप्पर फाड़ कमाई: अभी फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बुरी तरह से गिरे हैं। कोरोना वायरस की वजह से मांग घटी है तो दूसरी ओर खाड़ी देशों, अमेरिका और रूस के बीच तेल की कीमत को लेकर चल रही लड़ाई से कच्चा तेल सस्ता हुआ है। इससे फिर सरकार को छप्पर फाड़ कमाई शुरू हो गई है। आयात बिल कम होने से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से बढऩे लगा है। इस बार भी सरकार ने आम लोगों को इसका फायदा देने की बजाय उत्पाद शुल्क और उपकर लगा कर अपना खजाना भरने का फैसला किया है। इतना ही नहीं सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए मांगे, जिसमें से उसे एक लाख 43 हजार करोड़ रुपए मिल भी गए। इसी तरह सरकार को संचार कंपनियों से एजीआर के रूप में बड़ी धनराशि मिली है। राजस्व वसूली कम होने की भरपाई के लिए जीएसटी कौंसिल ने कई उत्पादों पर जीएसटी बढ़ाना शुरू कर दिया है।

फिर भी सरकार नकदी के संकट में फंसी है। खर्च में ढीलापन: जहां तक खर्च की बात है तो सरकार किसी भी बड़ी सामाजिक योजना पर खर्च करती नहीं दिख रही है। किसान सम्मान निधि के अलावा कोई भी बड़ी सामाजिक योजना शुरू नहीं की गई है। किसान सम्मान निधि में भी सरकार को 75 हजार करोड़ रुपए बांटने हैं। इसके अलावा पहले से चल रही मनरेगा या इस जैसी दूसरी योजनाओं में कटौती ही हुई है, बढ़ोतरी नहीं हुई है। फिर भी सरकार नकदी के संकट में है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भी सरकार निजी या विदेशी निवेश के इंतजार में है। सरकार ने इसके लिए एक सौ लाख करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी योजना तो बना ली है पर पैसे कहां से आएंगे इसका कोई अता-पता नहीं है। कुल मिला कर सरकार आर्थिक व वित्तीय कुप्रबंधन का शिकार दिख रही है। उसकी अपनी नीतियों की वजह से राजस्व वसूली कम हुई है फिर भी उसे दूसरे स्रोत से बड़ी कमाई भी हुई है। दूसरी ओर वह सामाजिक योजनाओं पर खर्च करके या किसी और तरीके से लोगों तक नकदी नहीं पहुंचा पा रही है। अगर लोगों तक नकदी पहुंचती तो बाजार में हर तरफ मांग कम होने का रोना नहीं रोया जा रहा होता। तभी यह नहीं कहा जा सकता है कि अगर सरकार के पास तेल की कमाई से या विनिवेश से या कर राजस्व बढ़ा कर बहुत ज्यादा धन आ भी जाता है तो उसका प्रबंधन ठीक हो जाएगा।

सुशांत कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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