फिगर की ज्यादा फिक्र

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हाल ही में मां बनने के बाद मॉ़डल व फिल्मी अभिनेत्री एमी जैकसन की वे तस्वीरें छा गई, जो उनके पोस्ट- प्रेग्नेंसी ग्लैमरस अवतार को बयान कर रही थीं। इन खबरों और तस्वीरों में इस बात को रेखांकित किया गया था कि प्रसव के 11 दिन के अंदर एमी अविश्वसनीय तरीके से अपने कायापलट कर ग्लैमरस अवतार में फिर से सक्रिय हो गईं। खेल और फिल्मी दुनिया की ऐसी अन्य मांओं की भी खबरें जब-तब आती रहती हैं। हालांकि प्रसव के बाद हर स्त्री को अपना स्वास्थ्य दोबारा संभालना पड़ता है। चाहे बढ़े वजन पर काबू पाने की बात हो या सामान्य कामकाजी मानसिकता में वापस आने की- इसमें वक्त लगता है। लेकिन मां बनने के सुखद अनुभव को निश्चित भाव से जीने के बजाय डिलीवरी के बाद जल्द से जल्द फिट दिखने की चाहत अब आम महिलाओं में भी दिखने लगी है। नतीजा यह कि फिट होने से भी ज्यादा एक खास फ्रेम में फिट होने का मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है। हमारी पारंपरिक सोच के मुताबिक मातृत्व का महिमामंडन हो या आधुनिक जीवन शैली में मदरहुड को ग्लैमरस अवतार से जोड़ना – दोनों ही मातृत्व को सहजता से जीने में बाधा बनती हैं। एक अनचाहा दबाव महिलाओं के मन और जीवन से जुड़ जाता है।

मौजूदा दौर में नई मांओं का गिनती के दिनों में ‘गेटिंग बैक इनटू शेप’ मानो एक बड़ा काम हो गया है, जबकि गर्भावस्था और प्रसव प्रक्रिया के दौरान एक महिला का शरीर कई उतार-चढ़ावों से गुजरता है। कई बार जटिलताएं ज्यादा भी हो जाती हैं। ऐसे में शारीरिक और भावनात्मक बदलावों के दौर में वजन घटाने का उतावलापन कई बार नई व्याधियां पैदा कर देता है। प्रेग्नेंसी से प्रसव तक 70 फीसदी महिलाओं का वजन बढ़ता ही है। यह बढ़ा हुआ वजन समय के साथ प्राकृतिक रूप से कम होता है। साफ है कि मातृत्व की जिम्मेदारियों के साथ जल्द से जल्द शरीर को सुडौल बनाने की अस्वाभाविक और अव्यावहारिक बेकरारी गैरजरूरी ही नहीं खतरनाक भी है। वह भी तब, जबकि सुरक्षित और सेहतमंद मातृत्व आज भी हमारे देश में एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है। इसके अलावा कामकाजी माताओं की जिम्मेदारियों और चुनौतियों का हर मोर्चे पर और विस्तार ही हुआ है। ऐसे में प्रकृति का सबसे सुंदर वरदान, मां बनने का खूबसूरत अहसास किसी भी महिला के लिए फिर से शेप में आ जाने के दबाव तक क्यों सिमटे?

मातृत्व के जज्बाती दौर की जद्दोजहद कम नहीं होती। इस समय महिलाओं के मन-जीवन से जुड़े व्यावहारिक पक्षों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 22 फीसदी महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसूति के बाद होने वाला अवसाद) का शिकार होती हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत में 78 फीसदी कामकाजी महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान हैं। गृहणियों की बात करें तो इनकी बड़ी संख्या अपनी ऐकडेमिक काबिलियत को भुलाकर सब कुछ संभाल तो रही हैं पर उनके मन में कुछ छूट जाने की टीस भी है। कुछ समय पहले हुए एक सर्वे के मुताबिक मां का काम किसी नौकरी के तहत किए जाने वाले काम के मुकाबले औसतन ढाई गुना ज्यादा होता है। ऐसे में शारीरिक बनावट से जुड़ा यह गैर-जरूरी दबाव उनके अंदर उपेक्षा भाव को और गहरा कर देता है।

सबसे बड़ी बात यह कि परिवेश से आ रहा बाहरी दबाव भी महिलाओं की मुश्किलें बढ़ाने वाला होता है। मां बनने के बाद बढ़े वजन को लेकर ऐश्वर्या राय और नेहा धूपिया तक को सोशल मीडिया पर काफी कुछ सुनने को मिला था। नेहा धूपिया ने तब कहा था, ‘मैं मां बनने के बाद बढ़े वजन को लेकर किसी को कोई सफाई नहीं देना चाहती लेकिन इस मुद्दे को बड़े स्तर पर जरूर उठाना चाहती हूं। फैटशेमिंग का यह दबाव सिलेब्रिटीज के लिए ही नहीं, आम महिलाओं के लिए भी बंद होना चाहिए। यह साफ होना चाहिए कि मेरी प्राथमिकता फिटनेस है, सुंदरता को लेकर समाज के बनाए मापदंडों में फिट होना नहीं।’ जरूरी है कि हर स्त्री मन में ऐसी ही सोच रखते हुए मातृत्व के प्यारे अहसास को जी भरकर जिए और परिवार व समाज उसमें बाधा उपस्थित करने के बजाय उसे सहयोग करे।

मोनिका शर्मा
(लेखिका चर्चित स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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