प्रवासियों की ऐसी उपेक्षा क्यों ?

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सबसे पहले कुछ तथ्यों को देखते हैं, उससे अंदाजा होगा कि दुनिया के देश अपने प्रवासियों के बारे में क्या सोचते हैं, उनके साथ कैसा बरताव करते हैं और संकट के समय उनकी कैसे मदद करते हैं। जिस समय कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर भारत में लॉकडाउन हुआ उस समय भारत में ब्रिटेन के कई हजार लोग थे। कोरोना के संकट के समय में ब्रिटेन अपने 13 हजार प्रवासियों के भारत से निकाल चुका है। पिछले हफ्ते के आखिर में यानी जिस समय कोरोना का संकट चरम पर है और खुद ब्रिटेन में मरने वालों का आंकड़ा 20 हजार पार कर गया है तब 36 सौ ब्रिटिश नागरिकों को लेकर ब्रिटेन की 14 फ्लाइट भारत से गई।

कह सकते हैं कि ब्रिटेन विकसित देश है, संसाधनों से संपन्न है, आबादी कम है इसलिए उसने अपने लोगों को निकाला। पर बांग्लादेश के बारे में क्या कहेंगे? कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लागू होने के बाद बांग्लादेश अपने एक हजार नागरिकों को भारत से निकाल कर ले जा चुका है। उसके ज्यादातर नागरिक इलाज के लिए आए थे और दिल्ली, चेन्नई या दूसरे शहरों में फंसे थे। अभी बीते शुक्रवार को बांग्लादेश दो उड़ानों से 328 लोगों को अपने यहां ले गया और शनिवार को एक दूसरी उड़ान से 164 लोगों को ले जाया गया। यानी इस समय जब संकट चरम पर है तब भी बांग्लादेश जैसे गरीब देश की सरकारों को अपने नागरिकों की चिंता है और उसने अपने बेहद सीमित साधनों के बावजूद अपने नागरिकों को भारत से निकाला।

इसके उलट भारत का क्या रवैया है? जब तक लॉकडाउन नहीं हुआ था या कोरोना का संक्रमण चरम पर नहीं पहुंचा था तब तक तो भारत ने कुछ लोगों को चीन, ईरान, ब्रिटेन आदि देशों से निकाला पर उसके बाद भारत ने अपने लोगों को निकालना बंद कर दिया। इतना ही नहीं जब यह मामला सर्वोच्च अदालत में पहुंचा तो सरकार को वहां से भी राहत मिल गई। यानी अदालत के जरिए अब सरकार को यह कहने की छूट मिल गई है कि भारत का जो नागरिक जहां है, वहीं रहे।

अब एक दूसरी हकीकत पर नजर डालें। सऊदी अरब सहित पूरे खाड़ी देशों में कोई 80 लाख भारतीय नागरिक रहते हैं। इनमें से ज्यादातर कामगार हैं और बहुत खराब स्थिति में वहां रहते हैं। जहां भी भारतीय नागरिक हैं वहां कोरोना संक्रमितों में उनका हिस्सा बहुत बड़ा है। अकेले सऊदी अरब के दो हजार के करीब संक्रमितों में आधे भारतीय हैं। सिंगापुर में या दूसरे देशों में भी यहीं स्थिति है। डोरमेटरी में रहने वाले भारतीय सबसे ज्यादा संक्रमित हैं। उन देशों में भारतीयों के साथ दोयम दर्जे का बरताव होना शुरू हो गया है। ध्यान भारत किसी बांग्लादेशी या ब्रिटिश नागरिक के साथ दोयम दर्जे का बरताव नहीं कर रहा है या उन देशों के नागरिक भारत में संक्रमित भी नहीं हैं फिर भी वे अपने नागरिकों को ले गए और हमारे यहां से दूसरे देशओं में गए कामगार संक्रमित हैं, परेशान हैं, उनके साथ बुरा बरताव हो रहा है पर भारत सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। यह भी हकीकत है कि भारत से बाहर गए प्रवासी कामगार बड़ी रकम हर साल भारत भेजते हैं। प्रवासियों से पैसा पाने वाले देशों की सूची में भारत सबसे अगली कतार में है। करीब एक छह लाख करोड़ रुपए हर साल प्रवासी भारतीय भेजते हैं। अपने नागरिकों के जरिए विदेशी मुद्रा हासिल करने वाले देशों में भारत शीर्ष पर है। दूसरे स्थान पर चीन है पर भारत और चीन के बीच करीब एक लाख करोड़ रुपए का अंतर है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ब्रांडिंग और भारत के लिए जो लॉबिंग होती है उससे होने वाला फायदा अलग है। जब संकट के समय भारत अपने ऐसे कमाऊ पूत को उनके हाल पर छोड़ सकती है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने आम नागरिकों के प्रति सरकार का क्या रवैया होगा।

विदेश गए भारतीय कामगार प्रवासियों के प्रति जो रवैया भारत सरकार का है वहीं रवैया घरेलू प्रवासियों के प्रति भी केंद्र व राज्य सरकारों का है। भारत में दुनिया के दूसरे किसी भी देश के मुकाबसे ज्यादा घरेलू प्रवासन है। एक अनुमान के मुताबिक 14 करोड़ लोग प्रवासी मजदूर के तौर पर अपने अपने राज्य से दूर दूसरे राज्य में काम करते हैं। वे जहां भी काम के लिए गए हैं, वहां एकाध अपवादों को छोड़ कर हर जगह उनके रहने और खाने-पीने की स्थिति बहुत बुरी हैं। वे झुग्गियों और कच्ची बस्तियों में रहते हैं और पेट काट कर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन उसी में वे अपने घर पैसे जरूर भेजते हैं। घरेलू प्रवासियों से सबसे ज्यादा पैसे हासिल करने वाले राज्यों में बिहार भी अव्वल है। लेकिन बिहार हो या दूसरा कोई भी राज्य, ज्यादातर को अपने प्रवासियों की चिंता नहीं है।

ऐसा नहीं है कि भारत सरकार या राज्यों की सरकारों को प्रवासियों की जरूरत नहीं है। वे पैसे भेजते हैं तो आर्थिकी को बल मिलता है और वे राजनीतिक रूप से जरूरी होते हैं। कुछ प्रभावशाली प्रवासी तो बहुत ज्यादा जरूरी होते हैं। पर इस समय प्रभावशाली प्रवासी प्रभावित नहीं हुए हैं। जो प्रवासी प्रभावित हुए हैं वे रोजमर्रा के काम करने वाले पेशेवर और मजदूर हैं। तभी सरकारों का नजरिया उनके प्रति उपेक्षा का है। दूसरा कारण यह समझ में आता है कि इस समय भारत में केंद्र से लेकर राज्य तक ज्यादातर सरकारें ऐसी हैं, जो झूठ की बुनियाद पर अपनी छवि निर्माण में लगी हैं। उनको पता है कि अगर प्रवासी बाहर से आते हैं और उनकी वजह से कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता है तो वे उसे नहीं रोक पाएंगे। भारत में स्वास्थ्य की सुविधाएं बेहद खराब हैं। ऐसे में अगर प्रवासियों के जरिए ही कोरोना फैला तो सबकी पोल खुलेगी। दुनिया की नजरों में महान बनने का सारा अभियान फुस्स हो जाएगा। इसलिए सरकारों ने हाथ खड़े किए हुए हैं।

शशांक राय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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