प्रभात: व्यावसायिक पत्रकारिता से दूर, मूलमंत्र पर अडिग

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मेरठ की धरती पर दशकों का सफर तय किया। कई बार मेरठ को उजड़ते -बसते देखा और परिर्वतन का गवाह बना पर अपने सुधि पाठकों का कभी साथ नहीं छोड़ा। अपने दायित्व का निर्वाहन करते हुए सुभारती मीडिया लि. का लोकप्रिय प्रकाशन ‘प्रभात’ अपने मजबूत जज्बे के साथ 77 वर्षों से जनता की आवाज बनकर शासनप्रशासन की नीतियों को बखूबी आम जनमानस तक पहुंचाने में लगा है। जिसके लिए देशहित सर्वोपर्रिय है,राष्ट्र चिंतन की मूलधारा के साथ शिक्षा-स्वास्थ्य- संस्कार जिसका मूलमंत्र है। उर्जावान प्रभात की कार्यशैली को देखते हुए, मेरठ की धरती पर अनेको समाचारपत्रों के प्रकाशक मेरठ आने को मजबूर हुए, परंतु प्रभात वरिष्ठता क्रम में बना रहा। प्रभात अनेक पत्रकारों की प्राथमिक पाठशाला भी बना। आज देश के बड़े-बड़े मीडिया हाऊसों के पत्रकारों व साहित्यकारों का सृजन प्रभात के गलियारे से होकर ही गुजरा। आधुनिक युग में समाचार पत्रों का रुझान जहां व्यावसायिक पत्रकारिता की ओर बना वहीं प्रभात अपने मूलमंत्र के साथ निरंतर जनता के साथ निस्वार्थ डटा रहा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अंग्रजों के खिलाफ आवाज उठाने वाला मेरठ शहर का एक मात्र समाचार पत्र आजादी की पहली किरण का गवाह बना प्रभात। अपनी शैली और अंदाज के लिए जाने जाने वाला प्रभात, अपने 77 वर्ष पूरे कर आगामी वर्ष के लिए अपने पाठकों के सम्मुख एक नए तेवर में उनकी आवाज बनकर खड़ा है।

व्यावसायिक पत्रकारिता के बीच तमाम झंझावतों को झेलता हुआ अपनी ही शैली में पाठको की आवाज को बुलंद करता रहा है। पत्रकारिता के मानदंडो को पूरा करते हुए समाचार पत्र ने पाठको की आवाज को प्राथमिकता दी। चीन से फैला वायरस इटली में किस कदर माहामारी का रुप ले चुका है और दुनिया को अपने शिकंजे में जकड़ रहा है। भारत में कोरोना की आहट की दस्तक का एहसास सर्वप्रथम प्रभात ने ही अपने पाठकों को कराया। कोरोना काल में समाचार पत्र का निरंतर प्रकाशन किसी भी चुनौती से कम नहीं रहा जिसके लिए समाचार पत्र के प्रबंध संपादक डा.अतुलकृष्ण व संपादक देशपाल सिंह पंवार साधुवाद के प्रतीक है। जिन्होंने समाचार पत्र को सभी संस्करणों के साथ पाठकों की आवाज बुलंद करने का हौंसला बनाए रखा। सीमित संसाधन और अल्प संपादकीय टीम का मनोबल बढ़ाए रखा। ऐसा नहीं की कोरोना संक्रमण का प्रभाव प्रभात के कर्मयोगियों पर नहीं पड़ा हो वह भी इस की पीड़ा से गुजरे परंतु संक्रमण को हरा कर उस पर विजय प्राप्त कर पुन: अपने कर्म में जुट गए।

गुजरे वर्ष की खटी-मीठी यादों के बीच प्रभात का स्तम्भ रहे कर्मयोगी, इस दुनिया से विदा हो गए सरल स्वभाव के यजवेंद्र सिंह पंवार, लखनऊ संस्करण के संपादक प्रमोद सिंह,और मशीनों के ज्ञाता सय्यद नसीम अहमद, जिन्होने प्रभात को अपनी सेवाएं व समाचारपत्र की उपलधि में अपना योगदान दिया। ऐसे पुरोधाओं को नमन! परिर्वतन दुनिया का नियम है जिसको मानना और समझना पड़ता है। आधुनिक युग में हालांकि प्रिंट मीडिया को इलैट्रिोनिक मीडिया से चुनौती अवश्य मिली, वहीं सोशल मीडिया ने भी अपना एक नया मुकाम हासिल किया परंतु समाचार पत्र की विश्वसनीयता पाठक वर्ग में अपना ही स्थान रखती है। जिसका स्थान अन्य माध्यम नहीं ले सकते यह एक दस्तावेज है, इसके माध्यम से नई सोच और शोध की श्रंृखला तैयार की जा सकती है। प्रभात ने बीते वर्षो में जहां तमाम नए आयाम स्थापित किए,वहीं पठनीय विषयों से कभी समझौता नहीं किया। पत्रकारिता के आयाम को नई दिशा देने के लिए नए कलेवर में अपने पथ पर अग्रसर प्रभात फिर एकबार वरिष्ठता क्रम में एक और कदम बढ़ाते हुए अपने 78 वें वर्ष की ओर बढ़ चला है। जिसका मूलमंत्रशिक्षा-स्वास्थ्य-संस्कार है। ”कभी पढ़कर देखना मेरे लिखे हर एक लज को, खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह जाते है हम”

रविन्द्र भटनागर
वरिष्ठ पत्रकार

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