प्रतिभाहीनों का ‘गैग्स ऑफ बॉलीवुड’

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सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत से बॉलीवुड का स्याह पक्ष सामने आ गया है। अब बॉलीवुड ऐसा नाम नहीं रहा जिसे बहुत लोग पसंद करते हों। अगर मैं सही हूं तो शायद सबसे पहले अमिताभ बच्चन ने कहा था कि यह सुनने में ठीक नहीं लगता और इसे हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री कहना चाहिए। अब अनुभव सिन्हा, सुधीर मिश्रा और हंसल मेहता जैसे कुछ अच्छे निर्देशक भी यही कह रहे हैं। यह सब शब्द के अर्थ का विवाद लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। भारतीय फिल्म उद्योग और उसकी संतानें- हिन्दी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, मलयालम, कन्नड़ फिल्म उद्योग और मराठी, गुजराती और पंजाबी जैसी अन्य क्षेत्रीय भाषाएं बहुत सम्मानित हैं, जबकि बॉलीवुड को निहित हितों वाले गुट की तरह देखा जाता है, जो नेपोटिज्म, दादागीरी और मीडिया की तिकड़मबाजी के सहारे चलता है। इसके अवॉर्ड्स पर सवाल उठते हैं, दावों पर संदेह होता है और इसके व्यापार के तरीके भी अस्पष्ट रहे हैं। जब नई सदी में इससे कॉर्पोरेट जुड़े तो लगा चीजें सुधरेंगी लेकिन क्लब बॉलीवुड को अस्पष्टता पसंद है।

इसीलिए सुशांत जैसे हुनरमंद युवा यहां प्रताड़ित होते हैं। कई लोग कभी उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाते, जिन्हें कंगना रनोट ‘माफिया’ कहती हैं। कंगना ने इसका सामना किया और सफल कॅरिअर बनाया। उन्हें प्रताड़ित करने वाले एक व्यक्ति ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहा था कि कंगना को बॉलीवुड छोड़ देना चाहिए। मैं उनकी सभी बातों से सहमत नहीं हूं, लेकिन खुलकर बोलने के साहस की सराहना करता हूं। इससे कई और लोगों को ऐसा करने का प्रोत्साहन मिला है।

गायिका सोना मोहपात्रा ने हाल ही बताया कि कैसे एक ‘अनपढ़, अंहकारी गैंग’ ने उनके संगीतकार पति राम संपत का पेशेवर जीवन दयनीय बना दिया। सोनू निगम अक्सर शिकायत करते हैं कि बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री उन्हें परेशान करती है। परोपकार का नया आइकन बन चुके अभिनेता सोनू सूद भी बताते हैं कि एक बाहरी के लिए बॉलीवुड में जगह बनाना कितना मुश्किल है। हुनर तो कोई मुद्दा ही नहीं है, आपको संपर्कों की जरूरत है। अगर आपके पास ये नहीं हैं तो बॉलीवुड माफियाओं के सामने गिड़गिड़ाने का हुनर सीख लीजिए।

ऐसा कहते हैं कि अमिताभ बच्चन भले ही इंदिरा गांधी की चिट्‌ठी के साथ बॉलीवुड आए थे, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। उन्हें भी चौपाटी की बेंच पर सोना पड़ा। ऐसी जिद बहुत लोगों में नहीं होती। वे बहुत कोशिशें करते हैं, असफल होते हैं और टूटकर वापस लौट जाते हैं। या कोई छोटा-मोटा काम करने लगते हैं ताकि आराम नगर और अंधेरी के जंगलों में बचे रहें।

लेकिन हम सभी तब चौंक गए जब शर्मीले एआर रहमान भी मैदान में उतर आए। ऑस्कर विजेता संगीतकार रहमान ने बताया कि कैसे बॉलीवुड में ‘पूरा गैंग’ झूठी अफवाहें फैलाकर उन्हें काम पाने से रोक रहा है। एक और ऑस्कर विजेता, साउंड डिजाइनर रेसुल पूकुट्‌टी ने कहा कि जबसे उन्होंने ऑस्कर जीता है, उन्हें बॉलीवुड में काम नहीं मिला। ऑस्कर में सात नॉमिनेशन पाने वाली फिल्म एलिजाबेथ के निर्देशक शेखर कपूर ने इसका सार एक ट्वीट में दिया, ‘बॉलीवुड में ऑस्कर मिलना मौत के समान है। यह साबित करता है कि आप में इतना हुनर है, जिसे बॉलीवुड संभाल नहीं सकता।’

यही समस्या है। बॉलीवुड उत्कृष्टता को नकारता है, साधारण को बढ़ावा देता है। सही भीड़ के साथ पार्टी कीजिए और आप इसका हिस्सा बन जाएंगे। अगर आप प्रतिभाहीनों के एक्सक्लूसिव क्लब में शामिल होना चाहते हैं तो मूर्ख बने रहिए। क्लब के बॉस से झगड़ना आपको भारी पड़ेगा। मैंने फिल्मफेयर का संपादक रहते हुए यह सब दूर से देखा और इसका सामना करना पड़ा जब मैंने फिल्मफेयर अवॉर्ड्स की जिम्मेदारी ली।

कई साल बाद, जब हमने एक टीवी ब्रैंड द्वारा प्रायोजित अपना खुद का अवॉर्ड शो शुरू किया, तब मुझे समझ आया कि यहां कैसे काम होता है। एक स्व-घोषित सुपरस्टार, जो ब्रैंड एम्बेसडर भी था, हर बार बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मांगता था, जब उसकी फिल्म आती थी। स्पॉन्सर के साथ लगातार मतभेद इतना निराशाजनक था कि हमें सात साल बाद अंतत: अवॉर्ड्स बंद करने पड़े, जबकि यह टीवी का दूसरा सबसे ज्यादा देखा जाने वाला शो था। ब्रैंड दूसरा फिल्म अवॉर्ड स्पॉन्सर करने लगा लेकिन वहां से भी जल्द हट गया। अब वह ब्रैंड बिजनेस से बाहर है और वह सुपरस्टार भी ढलान पर है।

सुशांत की त्रासद मौत का एक गंभीर असर होगा। उन जैसा कोई भी युवा अभिनेता अब कभी सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा नहीं किया जाएगा। अब कंगना के शब्दों में ‘नेपोटिज्म का झंडा लेकर चलने वालों’ को अपने खुद के प्रोडक्शन हाउस के पसंदीदा लोगों को अपने ही शो में निर्लज्जता से प्रमोट करना मुश्किल हो जाएगा। अब समय है कि हम फिर वैसे ही बनें, जैसे हम थे। भारतीय फिल्म उद्योग, दुनिया की सबसे अच्छी सौम्य शक्तियों में से एक। याद रखें, 55 वर्षों से सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली हर किसी की सबसे महान 10 फिल्मों की सूची में है। और महंगाई दर के हिसाब से देखें तो शोले का बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड अब भी सबसे पसंदीदा बना हुआ है।

प्रीतीश नंदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म निर्माता हैं)

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