गिरते हैं सहसवार ही मैदान-ए-जंग में। वो तिल क्या गिरे, जो घुटनों के बल चले। सफलता के इस तरह के अनेक उदाहरण हमारे देश में भी हैं, जिन्हें पहले तो कई बार असफलता मिली, लेकिन बाद में उन्होंने सफलता के झंडे गाड़ते हुए आसमान की बुलंदियों को छुआ। ऐसे ही उदहारण के रूप में हम अपने पैरालंपिक खिलाडिय़ों को गिन सकते हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा से देश का नाम विश्व पटल पर जगमग कर दिया है। इन खिलाडिय़ों ने सोमवार को टोयो पैरालंपिक में धूम मचा दी। भारत ने इस दिन में दो गोल्ड समेत कुल १० मेडल जीते। अवनि लेखारा ने शूटिंग में और समित अंतिल ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल किया। देवेंद्र झाझरिया ने जेवलिन में और योगेश कनिया ने डिस्कस थ्रो में सिल्वर मेडल जीता। सुंदर सिंह गुर्जर को ब्रांज मेडल हासिल हुआ। भारत ने सोमवार को इतने मेडल जीते, जितने किसी एक पैरालंपिक में कभी नहीं जीते। अब तक टोयो पैरालंपिक गेम्स में भारत कुल सात मेडल जीत चुका है। यह भारत का अब तक का सबसे सफल पैरालंपिक बन गया है। इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक और 1984 ओलंपिक में भारत ने 4-4 मेडल जीते थे। सुमित ने एफ 64 कैटेगरी में वल्र्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उन्होंने फाइनल में 68.55 मीटर के बेस्ट थ्रो के साथ मेडल जीता।
वहीं 19 साल की अवनि ने पैरालंपिक के इतिहास में भारत को शूटिंग का पहला गोल्ड मेडल दिलाया। ओलंपिक में भी किसी महिला शूटर ने गोल्ड नहीं जीता है। अगर इनके जीवन के संघर्ष की चर्चा करें तो सबसे पहला आता है जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल झटकने वाले सुमित अंतिल का। छह साल पहले हुए सड़क हादसे में एक पैर गंवाने के बाद भी सुमित ने जिंदगी से कभी हार नहीं मानी और बुलंद हौसले से हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला किया। वह उनका हौसला ही था कि पैरालंपिक के अपने ही विश्व रिकॉर्ड को तोड़ दिया। सुमित ने पहले प्रयास में 66.95 मीटर का थ्रो किया, जे वल्र्ड रिकॉर्ड बना। दूसरे थ्रो में 68.08 मीटर दूर भाला फेंका। सुमित ने अपने प्रदर्शन में और सुधार किया और इवें प्रयास में 68.55 मीटर का भी किया, जो नया वल्र्ड रिकॉर्ड बन गया। उनका तीसरा और चौथा थ्रो 65.27 मीटर और 66.71 मीटर का रहा था, जबकि छठा थ्रो फाउल रहा। वहीं राजस्थान के जयपुर की रहने वाली अवनि लेखरा पैरालिंपिक गेम्स में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला एथलीट बन गई। पैरालिंपिक के इतिहास में भारत का शूटिंग में यह पहला गोल्ड मेडल भी है।
उन्होंने महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफला के लास एसएचा के फाइनल में 249.6 पॉइंट स्कोर कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इससे पहले उन्होंने वालिफिकेशन राउंड में 7 वें स्थान पर रहकर फाइनल में जगह बनाई थी। अवनि बचपन से ही दिव्यांग नहीं थीं, बल्कि उनका और उनके पिता प्रवीण लेखरा का 2012 में जयपुर से धौलपुर जाने के दौरान एसीडेंट में घायल हो गए थे। कुछ समय बाद उनके पिता स्वस्थ हो गए, परंतु अवनि को तीन महीने अस्पताल में बिताने पड़े, फिर भी रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से वह खड़े होने और चलने में असमर्थ हो गई। तब से व्हीलचेयर पर ही हैं। उसे जब कोपोडियम पर गोल्ड मेडल दिया गया, तब राष्ट्रगान से भारत का हर नागरिक गर्व से भर उठा। इससे पहले टोयो ओलंपिक में जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को गोल्ड मेडल मिलने के समय भी ऐसा ही माहौल था। दो बार के पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट देवेंद्र झाझरिया ने टोयो में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। टोयो पैरालंपिक में हिस्सा लेने वाले हर खिलाड़ी का जीवन कष्टों और संघयों से भरा रहा है, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और संघर्ष को ही कामयाबी की राह बना लिया। ऐसे महान खिलाडिय़ों पर पूरे देश को गर्व है।