पेड़ ही ग्रह की आखिरी उम्मीद

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हमारे ग्रह के संपूर्ण जीवन के लिए पेड़ों के कई लाभ हैं। हमारे वायुमंडल में ऊंची जगह अख्तियार करके वे कार्बन सोखने और ऑक्सिजन छोड़ने में जुटे रहते हैं। यही वह प्रक्रिया है जो मनुष्य जैसे सभी वायुनिर्भर जीवों का जीवित रहना संभव बनाती है। उनकी जड़ें धरती में गहरे धंसी रहती हैं, जहां राइजोस्फेयर (सूक्ष्म जीवों वाला भू-स्तर) के आसपास से पोषक तत्व खींचकर वे उन्हें रिसाइकल करते रहते हैं। पेड़ धरती की ठोस सतह का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा घेरे हुए हैं लेकिन फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया से पूरे ग्रह की कोई दो तिहाई कार्बन राशि के संग्रहण के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। यह चमत्कार पेड़ों की पत्तियों द्वारा अंजाम दिया जाता है, जो इनके तनों और शाखाओं के साथ ही पर्यावरण में अपनी जगह बनाती हैं।

बचे रहें जंगल खास बात यह कि पेड़ों की पत्तियां अन्य जमीनी पौधों की तुलना में प्रति इकाई भू-क्षेत्रफल के अनुपात में कहीं ज्यादा सतह घेरती हैं। कार्बन संग्रहण के मामले में पेड़ों की इतनी बड़ी भूमिका होने का मुख्य कारण यही है। लेकिन मामले का एक और विशिष्ट पहलू पेड़ों का दीर्घ जीवन भी है। अपनी फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया में वे कार्बन डाईऑक्साइड से जो कार्बन सोखते हैं, वह उनके समूचे जीवनकाल में उनके भीतर ही जमा रहता है। जनसंख्या बढ़ने के कारण पैदा हुई तमाम जरूरतों के चलते जब हम पेड़ काटते हैं तो कार्बन जमा करने के इतने बड़े ठिकानों से हाथ धो बैठते हैं। इसीलिए शहर, पार्क और जंगली इलाकों में जहां जिस भी प्रजाति के पेड़ उपयुक्त हों, जहां वे ठीक से फल-फूल सकें, वहां हमें इनको लगाना जारी रखना चाहिए।

गिफोर्ड पिंचोट ने सोलन ग्रेव्ज के साथ मिलकर येल यूनिवर्सिटी फॉरेस्ट्री स्कूल की स्थापना की थी। वे एक जगह कहते हैं, ‘जंगलों का प्रबंधन दीर्घकालिक रूप से अधिकतम लोगों की अधिकतम भलाई को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।’ एक स्वस्थ ग्रह का जीवित रहना निश्चय ही ‘अधिकतम भलाई’ के कामों में से एक है। और भलाई के इस चक्र में पेड़ों की पत्तियां धरती की ऊर्जा का केंद्रीय तत्व हैं। ये आपस में मिलकर पेड़ों का शिखर बनाती हैं और पेड़ों के शिखर मिलकर जंगल की कैनोपी (चंदोवा) को आकार देते हैं। यह कैनोपी एक सतह वाली भी हो सकती है, और कई सतहों वाली भी हो सकती है।

यह इस पर निर्भर करता है कि जंगल में पेड़ों की कौन-कौन सी प्रजातियां हैं और उनमें पेड़ों की संख्या कितनी है। कैनोपी और वन में इससे ऊपर जाने वाले और नीचे रह जाने वाले पेड़-पौधे एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसकी हर परत में उस पर निर्भर असंख्य जीव-जंतु रहते हैं, जैसे कीट-पतंगे, पक्षी, स्तनपायी और दूसरे जीव। ये पेड़ों और जंगलों की जैव विविधता को और बढ़ाते हैं। कैनोपीज का रहना यह भी बताता है कि किस तरह जंगल वातावरण से नाइट्रोजन जुटा लेते हैं और बिना किसी उर्वरक के पूरी शान से जीवित रहते हैं। इसके विपरीत खेती के काम आने वाले मैदान बार-बार अपनी नाइट्रोजन गंवा देते हैं और उत्पादन के लिए उन्हें खाद की जरूरत पड़ती रहती है। कई फलीदार और गैर-फलीदार पेड़ सूक्ष्मजीवियों (राइजोबिया, फ्रैंकिया) के साथ सहजीविता का संबंध कायम करके अपने लिए सीधे वातावरण से नाइट्रोजन का जुगाड़ कर लेते हैं। यह प्रकृति की एक और अद्भुत व्यवस्था है।

जंगल खुद अपने वातावरण को सुधारते भी रहते हैं। 1930 के दशक में अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी.रूजवेल्ट ने धूल का कटोरा कहे जाने वाले उत्तरी डकोटा से टैक्सस के इलाके में वायुरोधी वन लगाना शुरू किया ताकि सतह की मिट्टी को उड़ने से रोका जा सके। इसमें असल भूमिका पेड़ों की चोटियां निभाती हैं। जाड़ों में जंगल में गर्मी महसूस होती है क्योंकि हवा कम चलती है। लेकिन गर्मियों में जंगल ठंडे रहते हैं क्योंकि पेड़ों के शिखर वनभूमि को ढककर उसे सूर्य के सीधे विकिरण से बचाते हैं।

यह चीज बर्फ पिघलने के मामले में भी देखी जाती है, जो खुले मैदानों और चरागाहों में पहले पिघलती है और यहां के जानवरों को भी प्रभावित करती है। पेड़ पिछले करीब 40 करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर हैं जबकि इंसानों की सबसे पुरानी जड़ भी महज 10 करोड़ साल पुरानी है। किसी समय यहां कोनिफर्स (शंकु वृक्ष) और अन्य जिम्नस्पर्म (अनावृतबीजी वृक्ष) की बहुलता थी। लेकिन क्रिटेशस युग में फूल वाले पौधों का उद्भव हुआ और वे आज पृथ्वी की प्रमुख वनस्पति हैं। जिम्नस्पर्म समूह के ज्यादातर पेड़-पौधे विलुप्त हो गए। कई वृक्ष प्रजातियां तो बिल्कुल हाल में विलुप्त हुई हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी चेस्टनट (छोटा अखरोट) एक समय उत्तर-पूर्वी अमेरिका के जंगलों में छाए हुए थे, पर चेस्टनट ब्लाइट नाम की एक फफूंद ने इस उत्कृष्ट और उपयोगी प्रजाति का लगभग पूरी तरह सफाया कर डाला।

ग्रीम पी बर्लिन
(लेखक येल यूनिवर्सिटी में वन प्रबंधन और वृक्ष क्रियाशास्त्र के ईएच हैरिमन प्रोफेसर हैं)

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