पुलवामा, वैंकुवर और शांतिपाठ

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बेटा दफ्तर गया था। अतः हम दोनों नहा धोकर तैयार हो गए व त्यागी दंपत्ति के घर आने पर उनकी कार में बैठकर चल दिए। वे हमें यहां चर्चित लक्ष्मी नारायण मंदिर ले गए। यूं तो मैं इस मंदिर में पहले भी गया था मगर आज के दिन वहां के प्रांगण में खड़ी कारों की कतार बता रही थी कि अंदर काफी भींड़ होगी।।

पिछले दो महीने से ज्यादा समय से विदेश में हूं। इस बीच मैंने दो देशों कनाड़ा व अमेरिका की सैर भी की व उन्हें काफी करीब से देखा। पर सच कह रहा हूं कि कल मैं जिस जगह व घटना से ज्यादा प्रभावित हुआ वह अहसास मुझे पिछले दो महीनों में कभी नहीं हुआ था। हुआ यह कि अपने मित्र डॉ. त्यागी का फोन आया कि तैयार रहना 12 बजे हम लोगों को कहीं चलना है। बेटा दफ्तर गया था। अतः हम दोनों नहा धोकर तैयार हो गए व त्यागी दंपत्ति के घर आने पर उनकी कार में बैठकर चल दिए। वे हमें यहां चर्चित लक्ष्मी नारायण मंदिर ले गए। यूं तो मैं इस मंदिर में पहले भी गया था मगर आज के दिन वहां के प्रांगण में खड़ी कारों की कतार बता रही थी कि अंदर काफी भींड़ थी। बाई और आगे की तरफ कुछ कुर्सियां रखी थी। हॉल में बिछे कालीन पर कई लोग बैठे थे।

कुछ मिनटों बाद प्रवक्ता ने बताया कि यहां हम सब लोग कुछ दिन पहले भारत के पुलवामा में हुई सीआरपीएफ के निर्दोष जवानों की मृत्यु का दुःख जताने व उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शान्ति पाठ रख रहे है। बताया कि तमान अन्य शहरों जैसे टोरंटो, ओटावा में भी इस तरह के आयोजन हो रहे हैं। वहां तमाम हिन्दी व भारतीय संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। कई वक्ता थे जो कि बहुत संक्षिप्त शब्दों में अपना दुःख व वेदना प्रकट कर रहे थे। मुझे तब काफी दुःख हुआ जब भारतीय दूतावास से आए एक आला अफसर अभिलाषा जोशी ने अपने संवेदना पूरी तरह से अंग्रेजी में व्यक्त की और जानते हुए भी कि वहां मौजूद तमाम लोग हिन्दी जानते थे उन्होंने हिन्दी का एक शब्द भी नहीं कहा।

तब समझ में आया कि इस भाषा कि इतनी दुर्गति क्यों हो रही है। माहौल व मौका कुछ अलग था अन्यथा मैं उठकर उनसे यह सवाल जरूर पूछता कि क्या आपको हिन्दी नहीं आता है? अथवा अपनी मात्र भाषा में बात करने में आपको शर्म आती है? एक सच्चे सरकारी अफसर होने का प्रमाण देते हुए उन्होंने इस हमले के लिए पाकिस्तान का नाम लेने से बचा। बार-बार पड़ोसी देश शब्द का इस्तेमाल किया। वे वहीं भाषा बोल रही थी जोकि भारत के सत्तारुढ़ दल के नेता बोलते रहते हैं।।

उसके बाद वहां विधायक रचना सिंह की बारी आई जिन्होंने अपना भाषण अंग्रेजी में शुरू किया व बाद में कभी-कभार पंजाबी के कुछ शब्द बोलने लगी। जब उन्होंने यह कहा कि हम लोग किसी धर्म या देश को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं तो जबरदस्त हंगमा हुआ।

आयोजकों ने उन्हें माइक से हटा कर बैठाने में ही अपनी भलाई समझी। लोग इतने उत्तेजित थे कि यह नहीं चाहते थे कि वे सिद्दू की तरह कोई बर्ताव करे। आदित्य तेवतिया नामक सज्जन ने इस घटना के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। वे प्रवासी भारतीयों की संस्था कनाडा ग्लोबल के प्रधान है व उन्होंने धार्मिक ग्रंथो का हवाला देते हुए पाक को उसी की भाषा मे जवाब देने की मांग की। उनके संक्षित भाषण में उसका गुस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था। उन्होंने कहा कि हम लोग आज कनाडा में भले ही हो पर मूल रूप से हम सभी भारत में जन्में हुए हैं व अपने लोगों के दुःख दर्द को अच्छी तरह से महसूस कर सकते हैं।

विवेक सक्सेना
(लेखक पत्रकार हैं।)

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