करतारपुर-समारोह अपने आप में इतना बड़ा अवसर था, जिसका फायदा भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों को नए दरवाजे खोलने के लिए मिल सकता था। लेकिन मुझे बड़ा दुख है कि इमरान खान-जैसे शरीफ और सज्जन नेता ने करतारपुर में ऐसा भाषण दे दिया, जिसने उस समारोह के असर को ही फीका नहीं कर दिया बल्कि उनकी छवि और समझदारी पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
वे करतारपुर में कश्मीर को घसीट लाए। उन्होंने कह दिया कि अब कश्मीर सिर्फ क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है। वह इंसानियत-विरोधी मुद्दा बन गया है। वह मूर्खता की हद पार कर गया है। उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और भी आगे बढ़ गए। उन्होंने कह दिया कि भारत सरकार ने राम मंदिर का फैसला भी 9 नवंबर को इसीलिए घोषित करवाया कि करतारपुर समारोह पर पानी फिर जाएं।
मैं कुरैशी से पूछता हूं कि इन दोनों मामलों को उन्होंने जोड़ा किस आधार पर? वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कारण लोगों ने करतारपुर पर दिए गए मोदी तथा अन्य सिख नेताओं के भाषणों पर उचित ध्यान नहीं दिया। जितना इमरान और कुरैशी का नुकसान हुआ, उससे ज्यादा मोदी का हो गया। इसी प्रकार कुरैशी के विदेश मंत्रालय ने अयोध्या-फैसले पर ऊटपटांग बयान जारी कर दिया।
यह भारत का आतंरिक मामला है और इसका शांतिपूर्ण हल निकल आया है। पाकिस्तान को इसका स्वागत करना चाहिए था। राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और भी आगे निकल गए। उन्होंने अदालत के फैसले को हिंदुत्ववादी बताया और सर्वोच्च न्यायालय की निष्पक्षता पर शक जाहिर किया। इमरान ने मोदी को भी नहीं छोड़ा।
उन्होंने नाम लिये बिना मोदी को ‘नफरत का सौदागर’ कहा जबकि नरेंद्र मोदी ने अपने करतारपुर भाषण में इमरान खान को धन्यवाद दिया था कि उन्होंने भारतीयों की भावनाओं का सम्मान किया। मोदी का रवैया परिपक्व और उदारतापूर्ण रहा जबकि इमरान ने एक अच्छा मौका खो दिया। यदि इमरान और कुरैशी नकारात्मक बातें नहीं करते तो भारत की जनता के दिलों में उनके लिए ऊंची जगह बन जाती।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं