पाकिस्तान सरकार की इस घोषणा का कि वह मसूद अजहर के बेटे और भाई को नजरबंद कर रही है और हाफिज सईद के संगठनों पर फिर से प्रतिबंध लगा रही है, स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि इन टोटकों से आतंकवाद खत्म कैसे होगा? 2014 में जब पेशावर के सैनिक स्कूल के डेढ़ सौ बच्चों को आतंकियों ने मार डाला था तब क्या नवाज शरीफ सरकार इसी तरह की घोषणाएं नहीं करती रही थी? उस समय मैं स्वयं इस्लामाबाद में था। प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ मक्का-मदीना की यात्रा पर गए थे। वे पाकिस्तान लौटते उसके पहले ही पाकिस्तानी फौज ने सैकड़ों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। पूरे पख्तूनख्वाह-प्रांत में भगदड़ मच गई।
अब जो आतंकियों की नजरबंदी की घोषणा इमरान सरकार ने की है, यदि उसे भरोसे लायक बनाना है तो मैं तो यह नहीं कहूंगा कि वह हजार-दो हजार लोगों की हत्या कर दे बल्कि यह तो करे कि उनके सरगनाओं से सरे-आम टीवी चैनलों पर माफी मंगवाए, उनसे अपने गुनाहों को कुबूल करवाए और वे खुद अपने अपराधों के लिए सजा मांगें।
अगर इमरान खान यह चमत्कारी काम करवा सकें तो एक क्या, सैकड़ों नोबेल पुरस्कार उनके चरण में लोटेंगे। तब ही वे ‘नए पाकिस्तान’ की नींव रखेंगे। तभी वे जिन्ना के स्वप्नों को साकार करेंगे। उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हामिद मीर को जो इंटरव्यू दिया है, वह इस दृष्टि से लाजवाब है लेकिन मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाने के सवाल पर उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी। क्यों ? क्योंकि उन्हें विरोधी नेताओं का उतना नहीं, जितना फौज का डर है। फौज ने आतंकवादियों को अपना अग्रिम दस्ता बना रखा है। यह खेल बहुत मंहगा पड़ सकता है।
2014 में पाकिस्तानी संस्थानों में मेरे भाषणों के दौरान मैंने पाकिस्तान के सभी बड़े नेताओं, विशेषज्ञों और पत्रकारों से उस समय कहा था कि यह नरेंद्र मोदी हैं, अटलजी या मनमोहनजी नहीं हैं। इमरान भी इमरान हैं। वे चाहें तो नई लकीर खींच सकते हैं। उन्होंने पिछले दिनों अपने वाणी-संयम और उदारता से अपनी इज्जत बढ़ाई है। उन्होंने अपने पंजाब के सूचना और संस्कृति मंत्री फय्याजुल हसन चौहान को बर्खास्त करके अपनी छवि में चार चांद लगा लिये हैं। चौहान ने भारतीय हिंदुओं को ‘पत्थर पूजक और गौमूत्र पीने वाला’ कहा था। धार्मिक सहिष्णुता की शायद यह अद्भुत और पहली मिसाल पाकिस्तान ने पेश की है। यह आतंक की नहीं, प्रेम की भाषा है।
यदि अब भी आतंकी खेल बंद नहीं हुआ तो हमारे दोनों देश तबाह हुए बिना नहीं रहेंगे। अब यदि दुबारा कोई पुलवामा हो गया तो वह मुठभेड़ संक्षिप्त और सीमित नहीं होगी। भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के ज्यादातर लोग शांति, सदभाव और उन्नति चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि इमरान और कुरैशी, जो मेरे पुराने परिचित हैं, मेरी बातों पर कुछ ध्यान देंगे।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)