पराली का धुआं

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यह वाकई चिंताजनक स्थिति है कि पराली के धुएं ने हवा को जहरीला बना दिया है। इस बाबत अमेरिका एजेंसी नासा ने जो हालिया तस्वीर जारी की है, उससे पता चलता है कि जिस तरह पराली के धुएं ने लगभग पूरे उत्तर भारत को अपने आगोश में ले लिया है। हालात यह है कि दशहरे के बाद बाद भी पंजाब, हरियाणा और इससे सटे इलाको में पराली जलाने का सिलसिला नया नहीं है। इस संकट को सीमापार पाकिस्तान से आ रहा पराली का धुआं गंभीर बना रहा है। हवा में प्रदूषण का सीधा मतलब जीवन की गुणवत्ता का कम होना है। एक तो वैसे ही अनियोजित शहरीकरण के कारण बेतरतीब विकास के चलते सीधे तौर पर चीजें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। पहली हवा और दूसरा पानी। जबकि जीवन के लिए ये दोनों तरल कितने महत्वपूर्ण हैं, सबको पता है। विकास के क्रम में मशीनीकरण के चलते प्रदूषण की उभरती चुनौती से निपटने का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं होता और यदि कहीं इसकी चर्चा होती भी है तो उसका क्रि यान्वयन नहीं होता। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संभाषणों में पर्यावरण के प्रति चिंता साफ ध्वनित होती है।

उनके कार्यकाल का विशेष आग्रह है कि पर्यावरणीय हितों को ध्यान में रखते हुए विकास हो। ऐसा विकास ही किस समाज व राष्ट्र के लिए हितकारी होता है। हालांकि उनकी जब कृजब सामने आती चिंताओं से इतना फर्क तो पड़ा है कि प्रदूषण के कारणों का सहज ही ध्यान आ जाता है। लेकिन इसके संस्कार ना बन जाने के कारण स्थितियां जटिल होती चली जाती हैं। खासतौर पर स्वच्छता अभियान की इस संदर्भ में चर्चा की जा सकती है। लेकिन अभी यह रफ्तार बहुत धीमी है। यह समझना पड़ेगा कि प्रदूषण से निपटने के उपायों पर ध्यान देना होगा और एहतियात बरतने का अर्थ किसी और के लिए तो बाद में, पहले खुद के लिए अर्थपूर्ण है। गांवों में लोगों को यह समझना पड़ेगा कि पुरानी पराली का धुआं कितना नुक सानदेह होता है। हवा के खराब होने से असमय टीबीए दमा जैसे गंभीर रोगों का लोग बाग शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा जो मानसिक व्याधियां पैदा होती हैं सो अलग। हर बार जाड़े की शुरुआत में यह समस्या सामने आती है और उस पर चर्चा भी होती है लेकिन वक्त बीतने के बाद सारी चिंता हवा हो जाती है।

यह नहीं होना चाहिए। पराली के धुएं से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के क ई इलाकों में एक्यूआई 299 पाया गया। इससे सटे इलाकों मसलन गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा और अन्य जगह एक्यूआई 300 से ऊपर जा चुका है। यूपी के भी कई शहरों में हवा का प्रदूषण समस्या बना हुआ है। लखनऊ, कानपुर और आगरा से तो इस तरह की खबरें प्राय: समाने आती रहती हैं। वृक्षारोपण के लिए जन-जागरूकता अभियान चलता है। लेकि न जमीन पर कि तना उतरता है, यह कि सी से छिपा नहीं है। खुद यूपी के सीएम येागी आदित्यनाथ की भी यह पीड़ा है कि सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएं धरातल पर पूरी तरह से लागू ना हो पाने के कारण अर्थहीन हो जाती हैं। निश्चित तौर पर इसमें तंत्र की अपनी भूमिका है लेकिन समाज के तौर पर हमारी भी तो भूमिका है, यह हम क्यों भूल जाते हैं। हवा और पानी जिंदगी में कितना अहम है, यह जानते हुए भी बेरुखी पीड़ादायक होती है। पर्यावरण के लिए हवा और पानी की हिफाजत जरूरी है।

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