परम वचन यदि ठीक से सुन लिए जाएं तो निर्णयों में स्पष्टता और दूरदर्शिता आसानी से उतर आएगी

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कहते हैं थके हुए इंसान को साफ सुनाई देना भी बंद हो जाता है। मतलब जब शरीर थकता है तो श्रवणशक्ति भी बाधित हो जाती है। लेकिन, यह भी सच है कि जब हम बहुत अधिक उत्साह में होते हैं, तब भी सुनाई देना कम हो जाता है। किसी की बात सुनने के लिए एक आंतरिक धैर्य की जरूरत होती है। कहते जरूर ऐसा हैं कि सुना कानों से जाता है, लेकिन कान तो दरवाजे हैं। सुना तो दिल से और उसके बाद बुद्धि से जाता है।

तो जिंदगी में कुछ ऐसा भी सुना जाए, कुछ ऐसी बातें भीतर उतारी जाएं जो असाधारण हों। गीता में कृष्ण जब अर्जुन को समझा रहे थे तो दबाव के साथ कहा था- ‘मैं फिर तुझसे कहता हूं..। कृष्ण जानते थे अर्जुन को बार-बार समझाना पड़ेगा, क्योंकि वह बार-बार प्रश्न कर रहा था। इसलिए दसवें अध्याय के आरंभ में उन्होंने एक शब्द दिया- ‘परम वचन’। कहा- ये मेरे परम वचन ध्यान से सुनो। देखिए, मधुर वचन होता है, कठोर वचन भी होता है। सत्य और असत्य वचन भी होता है। लेकिन, यहां कृष्ण ने एकदम नया शब्द दिया- परम वचन। कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जो परम के निकट होते हैं। जब इनको सुन लो तो सारे तर्क गिर जाते हैं, विरोध समाप्त हो जाते हैं।

——पं. विजयशंकर मेहता

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