परम पूज्यदेव श्रीगणेश जी का प्राकट्य महोत्सव

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वरद् विनायक श्री गणेश जी के व्रत एवं दर्शन-पूजन से होगी मनोरथ की पूर्ति
श्रीगणेश जी प्रसन्न होते हैं दूवा एवं मोदक से
आज रात्रि में है चन्द्रदर्शन का निषेध

सनातन धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान श्रीगणेश जी को प्रथम पूज्यदेव माना जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रयायक सुखदाता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान श्रीगणेशजी के जन्मोत्सव का महापर्व हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ मनाने की धार्मिक परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि गणेशपुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान श्रीगणेश जी का प्राकट्य हुआ था। मध्याह्र के समय रहने वाली चतुर्थी तिथि के दिन शास्त्रों में इस चतुर्थी तिथि के दिन रात्रि में चन्द्रदर्शन का निषेध बतलाया गया है। यगि भूलवश चन्द्रदर्शन हो भी जाए तो आरोप-प्रत्योरोप व मिथ्या कलंक लगने की सम्भावना रहती है। भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तकमणि की चोरी का आरोप लगा था। चन्द्रदर्शन के दोष के शमन के लिए श्रीमद्भावगत महापुराण के दशम स्कन्ध के सत्तावनवें अध्याय में वर्णित स्यमन्तकहरण के प्रसंग का कथन व श्रवण करना चाहिए। अथवा ‘ये श्रुण्वन्ति आख्यानम् स्यमन्तक मनियकम्। चन्द्रस्य चरितं सर्वं तेषां दोषो ना जायते।।’ इस मन्त्र का अधिक से अधिक संख्या में जप करना चाहिए।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी एवं सिद्ध विनायक श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से भी जानी जाती है। इस बार भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि 2 सितम्बर, सोमवार को पड़ रही है। चतुर्थी तिथि 2 सितम्बर, सोमवार को दिन में 9 बजकर 01 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 सितम्बर, मंगलवार को प्रातः 6 बजकर 50 मिनट तक रहेगी। मध्याह्र व्यापनी चतुर्थी तिथि का मान 2 सितम्बर, सोमवार को होने से श्रीगमेशजी का व्रत उपवास एवं दर्शन-पूजन इसी दिन किया जाएगा। इसके साथ ही श्रीगणेशजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके सर्वज्ञन लाभान्वित होंगे। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला पुरुष तता विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है।

ऐसे करें श्रीगणेश अर्चना – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल अपने समस्त दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर अपने अराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीगणेशजी का मननोहक अलौकिक श्रृंगार करना चाहिए। श्रीगणेश जी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, जिनसे श्रीगणेश जी अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। श्रीणेशजी को दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू) अन्य मिष्ठान्न ऋतुफल आदि अर्पित करने चाहिए। विशेष तौर पर शुद्ध देशी घी एवं मेवे से बने मोदक अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करना चाहिए। श्रीगणेश जी की विशेष अनुकम्पा प्राप्ति के लिए उनकी महिमा में श्रीगणेश स्तुति श्रीगणेश चालीसा श्रीगणेश सहस्त्रनाम श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए। श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विविध मन्त्रों का जप करना भी लाभकारी रहता है। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।

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