कोरोना वायरस के दुनिया भर में फैलने से न केवल नागरिक जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है बल्कि इसका खतरा हजारों परमाणु हथियारों के साथ नागरिक परमाणु केंद्रों पर भी मंडराने लगा है। जिन हाथों को इनकी जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे निष्क्रिय होते दिख रहे हैं। ब्रिटेन के सैकड़ों परमाणु बमों और मिसाइलों का बटन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के पास है लेकिन वे खुद कोरोना की चपेट में आ गए। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन एक तरह से बाल-बाल बच गए हैं। उनके कोरोना ग्रसित होने का शक तो पैदा हो ही गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बारे में भी कोई कैसे आश्वस्त हो सकता है? सचाई यह है कि जिनके भी पास न्यूक्लियर हथियारों का बटन है, वे सब खतरे के बीच हैं।
कौन लेगा जिम्मेदारी
भले ही पूतिन और ट्रंप का कोरोना परीक्षण निगेटिव रहा हो, पर जैसे ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हुए, सामरिक हलकों में यह सवाल पूछा जाने लगा कि वह ब्रिटेन का परमाणु सूटकेस किसे सौंप गए हैं। दुनिया भर के सैन्य और असैन्य परमाणु केंद्रों के संचालकों को यह चिंता सताने लगी है कि परमाणु केंद्रों और हथियारों का सुरक्षित प्रबंध और संचालन कैसे हो। जो परमाणु वैज्ञानिक या इंजीनियर या तकनीशियन परमाणु केंद्रों की देखरेख करते हैं, वे कोरोना वायरस से ग्रसित होने लगे हैं और बाकी भी इसके कोप से दूर रहें, इसकी चिंता परमाणु प्रबंधकों को सताने लगी है।
सनकी स्वभाव के राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस की वजह से हो रही हजारों मौतों के सामने अपने को काबू में नहीं रख पा रहे हें। अमेरिका के 150 से अधिक सैन्य अड्डों पर, जिनमें से अधिकतर पर परमाणु बम और मिसाइलें तैनात रहती हैं, कोरोना वायरस ने अपना तांडव दिखाना शुरू कर दिया है। परमाणु केंद्रों का संचालन करने वाले विशेषज्ञों की गतिविधियां प्रभावित होने लगी हैं और अपने या परिवार की सुरक्षा को लेकर उन पर मानसिक दबाव बढ़ने लगा है। वास्तव में, परमाणु हथियारों के कमांड के सुरक्षित प्रबंध की जिम्मेदारी जिन राजनीतिक हाथों में सौंपी गई थी, वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर परेशान दिख रहे हैं और जिन हाथों को परमाणु पोतों का सीधा संचालन सौंपा गया वे अचानक कोरोना से बीमार पाए जा रहे हैं।
एक लाख टन भार-क्षमता वाले अमेरिकी विमानवाहक पोत रूजवेल्ट और इतनी ही क्षमता के फ्रांसीसी परमाणु विमानवाहक पोत चार्ल्स द गाल पर सवार पांच हजार नौसैनिकों में से कुछ सौ को जब कोरोना ने डंसा तो अमेरिका और फ्रांस के नौसैनिक हलकों में हडकंप मच गया। चार्ल्स द गाल और इसके साथ चलने वाले एक विध्वंसक पोत को उसी तरह क्वारंटीन करना पड़ा है जैसे जापान में फंसे यात्री जहाज डायमंड प्रिंसेज को करना पड़ा था।
परमाणु बिजली से संचालित अमेरिकी विमानवाहक पोत रूजवेल्ट के रिएक्टर कक्ष में तैनात स्टाफ को जब कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई और इसकी रिपोर्ट पोत के कैप्टन ने अमेरिकी नौसैना मुख्यालय को दी तो उन्हें ही बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि बाद में पूरा मामला सामने आने पर अमेरिकी नौसेना प्रमुख को इस्तीफा देना पडा। जाहिर है, कोरोना की वजह से सैनिक और राजनीतिक नेतृत्व में जबर्दस्त अफरा-तफरी देखने को मिल रही है।
इधर कोरोना वायरस के फैलते प्रकोप की वजह से परमाणु बिजली घरों के रिएक्टर संचालक भी अपने स्टाफ को इस बीमारी से दूर रखने के सारे उपाय लागू करने में जुटे हैं। कोशिश है कि परमाणु केंद्रों के संवेदनशील हिस्सों में तैनात स्टाफ को संक्रमण न हो। उन्हें चिंता है कि परमाणु रिएक्टर चलाने वाले विशेषज्ञों की नई भर्ती वे अचानक कहां से करेंगे। अमेरिकी परमाणु बिजली घरों के संचालकों ने आपात योजना बनानी शुरू कर दी है कि उनके रिएक्टरों में काम करने वाले अति उच्च कोटि के विशेषज्ञ यदि कोरोना की चपेट में आए तो उनके स्थान पर नए लोगों की भर्ती कैसे करेंगे।
परमाणु बिजली घरों के चिंतित प्रबंधक अपने इन विशेषज्ञों से कह रहे हैं कि वे ड्यूटी के बाद अपने घर न जाएं और परमाणु केंद्रों पर ही रहें। कई परमाणु घरों के प्रबंधक अपने केंद्रों पर बिस्तर, भोजन आदि की व्यवस्था कर रहे हैं। अमेरिकी न्यूक्लियर रेगुलेटरी कमीशन ने कहा है कि यदि फिर भी ऐसे जरूरी स्टाफ संक्रमित हुए तो उसकी यह भी योजना है कि रिएक्टरों को अस्थायी तौर पर निष्क्रिय कर दिया जाएगा। ब्रिटेन ने सेलाफील्ड स्थित अपने परमाणु रिप्रॉसेसिंग प्लांट को ऐसी रिपोर्टों के बाद बंद कर दिया है कि उसके 11,500 स्टाफ वाले केंद्र के आठ प्रतिशत स्टाफ के ऊपर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है।
इन कर्मचारियों को आइसोलेट होने को कहा गया। इस केंद्र ने कहा है कि वह अपने स्टाफ के समुचित इस्तेमाल की योजना बना रहा है। उधर फ्रांस ने अपने फ्लेमविले न्यूक्लियर प्लांट पर तैनात आठ सौ में से केवल एक सौ चुनिंदा स्टाफ से ही काम चलाने की योजना तब बनाई जब इनमें से कुछ को कोरोना संक्रमित पाया गया। समस्या यह है कि परमाणु केंद्रों के ऑपरेटरों को लाइसेंस लेना होता है और जरूरत पड़ने पर भारी संख्या में अचानक इनका विकल्प खोजना मुश्किल होगा। इसलिए इन केंद्रों के कंट्रोल सेंटर के ऑपरेटरों को बाकी स्टाफ से पूरी तरह अलग रहने को कहा जा रहा है। कोरोना वायरस ने सैनिक और असैनिक परमाणु केंद्रों के सुरक्षित रख-रखाव और संचालन के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। समस्या का हल केवल इन केंद्रों के सीमित संचालन या फिर इन्हें बंद कर देने से ही नहीं निकलेगा।
सतर्क रहना होगा
वास्तव में किसी देश का कोई भी परमाणु केंद्र केवल बिजली सप्लाई के स्रोत के तौर पर ही नहीं देखा जाता है, बल्कि ये उस देश के अत्यधिक संवेदनशील सामरिक ढांचागत केंद्र की तरह देखे जाते हैं। कोविड-19 इन परमाणु केंद्रों के लिए बड़ा खतरा बन कर आया है। कोरोना ग्रसित होने से इन केंद्रों के सुरक्षित संचालन में कोई कमी रह गई तो इसके कितने भयावह नतीजे होंगे, यह अकल्पनीय है।
रंजीत कुमार
(लेखक रक्षा विश्लेषक हैं ये उनके निजी विचार हैं )