पत्रकार फर्जी : सरजी लो थामो अर्जी, वरना…

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बदलते वक्त की नजाकत को भले ही असली पत्रकार ना पहचान पाते हों लेकिन जो हालात सामने हैं उन्हें देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश के हर कस्बे व शहर में इस समय फर्जी पत्रकारों की भी बाढ़ आई हुई है और साथ ही पत्रकारिता में ठीक-ठाक ओहदों पर मौजूद पत्रकारों ने भी गिरावट की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। भारत में कोई भी आंकड़ा ऐसा नहीं है जो ये बाता सके कि भारत में कितने पत्रकार फर्जी हैं लेकिन हर शहर व कस्बे में पत्रकारों की बिरादरी ही ये बता सकती है कि कितने फर्जी हैं और कितने असली पत्रकारिता को ही आए दिन गिरवी रखकर घर भर रहे हैं। जहां पैसा है वहां फर्जी पत्रकार अगर मधुमक्खी की तरह 100 भिनभिना रहे हैं तो 5-10 असली भी इस शहद का स्वाद चखने से बाज नहीं आ रहे हैं।

भारतीय प्रेस परिषद अंकुश लगा नहीं पाती, सरकारें जो नियम बनाती है वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाते, लिहाजा पुलिस के साथ मिलकर फर्जी पत्रकारों ने हर शहर व कस्बे में नेक्सस बना लिए हैं। कोई ऐसा बुरा काम इस धरती पर अब नहीं बचा है जहां किसी ना किसी कथित पत्रकार की भूमिका सामने ना आती हो। जहां पैसा-वहां ये फौज। खुदगर्जी की कोई सीमा नहीं बची, दिन निक लते ही हाथ में अर्जी और फ र दर्जी की तर्ज पर किसकी इज्जत के साथ खेलेंगे ये वही जानता है जो झेलता है। रंगदार खुलेआम घूम रहे हैं। हर इजज्तदार को इज्जत बचानी मुश्किल हो रही है। गिरावट का अंदाजा इसी से हो जाता है कि अब रंडी पेशे से कमाई खाने वालों में भी कलमकार मिलने लगे हैं। भोपाल हनी ट्रैप केस इसका जीता जागता उदाहरण है। एक पत्रकार ने स्टीक टिप्पणी प्रभात को भेजी कि चोर का माल चंडाल खा रहे हैं। यानी फर्जी पत्रकारों को चंडाल उन्होंने माना है।

प्रभात की इस मुहिम को देश के तमाम हिस्सों से समर्थन मिला है। जगह और नाम बदल लीजिए तो हर जगह लूटने का स्टाइल एक जैसा ही है। जहां पर कोई गलत काम वहां पर ये गैंग बनाकर तुरंत धमक जाते हैं। फिर होती है अवैध वसूली। इतना ही नहीं नौ नकटे मिलकर नाक वाले की नाक पर भी कैमरा व कलम का खौफ दिखाकर काटने की जुगत बिठाए रहते हैं। हद तो ये है कि ये बेरोजगारों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। नोएडा में मोदीनगर और आसपास के ऐसे ही गैंग ने सैंकड़ों बेरोजगारों को कथित पत्रकार होने के नाम पर ठग लिया। आगरा में नक ली खाद्य तेल और घी के कारोबारी को कथित पत्रकार लूट ले गए। मेरठ में तो असली व नकली पत्रकारों ने हाल ही में तेल में मिलावट करने वालों से खूब उगाहा। बुलंदशहर, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, देहरादून, सहारनपुर, शामली, बागपत, लखनऊ , मुरादाबाद, संभल कहीं का भी उदाहरण ले लीजिए असली दो मिलते और नकली दस पत्रकार आपको टकराते मिलेंगे।

ऐसे क थित पत्रकार केवल एक राज्य या शहर में पाएं जाते हों, ऐसा नहीं है हर जगह यही हाल है। असली को कहीं भी किसी भी कार्यक्रम में सीट तक अमूमन नसीब नहीं होती और फर्जी की भीड़ शान से जमी रहती है। नेपाल से लगी सीमा पर अजब हाल : सोनोली से एक पत्रकार आकाश भट ने मेल किया है कि भारत-नेपाल की संवेदनशील सीमा सोनौली व उसके आसपास के सीमाई कस्बों में कथित पत्रकारों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। पुलिस, कस्टम व एसएसबी कार्यालयों में कुर्सी पर वही विराजमान रहते हैं जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक नाता नहीं। यहां रोटी-बेटी रिश्ता, तस्क री, नशा कारोबार, आतंकी घुसपैठ, हथियार तस्करी, विदेशी विषयक नियम कानून, पर्यटन व व्यापार जैसे महत्वपूर्ण मसलों से परिपूर्ण नेपाल-भारत सीमा पर पत्रकारिता निश्चित रुप से एक महत्वपूर्ण व जिम्मेवारी भरा कार्य है। ऐसे में इनकी बढ़ती तादाद देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई है।

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