निहायत अकडू नेता हैं डोनाल्ड ट्रंप

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की एक पहेली हैं। बतौर राष्ट्रपति वे अमेरिकी राष्ट्र-राज्य के सांचे में एक ऐसे सांड़ हैं, जिन्होंने सांचे में उधम के फूफकारों पर चुनाव जीता। बेधड़की, अपने उत्पातों से जो तहस-नहस करना था वे कर चुके हैं लेकिन उन्हें खुद को भी अब समझ नहीं आ रहा होगा कि उससे अमेरिका का सध क्या रहा है? उनका वादा था कि वे अमेरिका को लल्लू राष्ट्रपतियों की विरासत से मुक्त कराएंगे। दुनिया में अमेरिका का वापिस डंका बजेगा। वे इस्लाम को दुरूस्त करेंगें। सीमा पार से घुसपैठियों का आना मुश्किल बनेगा। ‘अमेरिका फर्स्ट’ में नए सिरे से अमेरिकी विकास की गौरव गाथा लिखी जाएगी। और तीन साल बाद आज, दुबारा चुनाव लड़ने से पूर्व क्या स्थिति है? एक चिड़िमार (ड्रोन मार) ईरान को ट्रंप प्रशासन ठोक नहीं पा रहा है! न ही उत्तर कोरिया के किम लाइन हाजिर हैं। मेक्सिको को दबाते-दबाते उन्होंने अमेरिका-कनाड़ा-मेक्सिको में खुले व्यापार की नाफ्टा संधि पर दस्तखत किए।

तभी दुनिया में अमेरिका के गौरव में श्रीवृद्धि नहीं है। अमेरिका क्योंकि दुनिया का नंबर एक ताकतवर देश और ‘फ्री वर्ल्ड’ याकि आजाद ख्यालों वाले देशों का रक्षक है इसलिए विदेश यात्राओं में भले डोनाल्ड़ ट्रंप के लिए लाल कालीन बिछते हों लेकिन जापान, ब्रिटेन, यूरोप में वे कहीं भी जाते हैं तो उन पर सार्वजनिक-मीडियागत नैरेटिव यहीं होता है कि एक मूर्ख, अकड़ू और बिना विजन वाला नेता!

और ट्रंप का ताजा किस्सा उनकी कमान में अमेरिका के अशक्त होने की नई दास्तां है। डोनाल्ड ट्रंप तीन साल से ईरान को खलनायक बता रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा कैसे ढीले, दुश्मन के आगे मिमियाते हुए समझौतापरस्त थे, इसे साबित करने के लिए ट्रंप ने ईरान के साथ एटमी मामले के समझौते को एकतरफा रद्द किया। ईरान पर नई पाबंदियां लगाईं। ट्रंप का हल्ला था कि वे ईरान को झुका कर मानेंगे। लेकिन तेहरान की सेहत पर असर नहीं हुआ। पिछले दिनों ईरान की करतूतों के वीडियो जारी कर ट्रंप प्रशासन ने दुनिया को बताया कि देखो, ईरान ने तेलवाहक टैंकर में कैसे आग लगाई है। उसके गुंडा होने के फलां-फलां प्रमाण। अति तब हुई जब ट्रंप की नाक काटते हुए ईरान ने अमेरिका की जासूसी चिड़िया याकि ड्रोन को मार गिराया। ईरान ने कहा कि ड्रोन उसकी वायु सीमा का उल्लंघन करते हुए था तो ट्रंप प्रशासन ने प्रमाण जारी कर बताया कि नहीं, वह अंतरराष्ट्रीय सीमा में था। मतलब ईरान झूठ बोल रहा है और उसे सबक मिलेगा।

सो, ट्रंप ने अमेरिकी सेना को ईरान पर हमले का आदेश दिया लेकिन उसे ऐन पहले वापिस ले कर अपनी जग हंसाई कराई। ट्रंप की बाद में दलील थी कि हमले से ईरान के डेढ़ सौ लोग मर सकते थे। और वे लड़ाई से दूर रहने, अपनी सेनाओं को स्वदेश लौटाने का चुनावी वादा लिए हुए थे तो ईरान से पारंपरिक अंदाज में लड़ाई नहीं लड़ सकते।

तब जंग का पहले आदेश क्यों? सैनिक ऑपरेशन में लोग न मरें यह भला कैसे हो सकता है? यदि ईरान की कठमुल्लाई सरकार, इस्लामी गार्ड सचमुच एटमी हथियार प्रोग्राम लिए हुए हैं, उत्तर कोरिया का तानाशाह किम एटमी मिसाइल और बम से लैस है तो ट्रंप वादा अनुसार व्यवहार करेंगे या किम को खुश करने की कूटनीति करेंगे और ईरान की नाक सीधी पकड़ने के बजाय इधर-उधर (जैसे ईरानी सेना के कंप्यूटरों की हैकिंग) के पैंतरे चलेंगे?

पर डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की वह पहेली हैं, जिसे सामान्य पैमानों में नहीं समझा जा सकता है। वे एक ऐसे चतुर, धंधेबाज व्यापारी हैं, जिन्होंने अपनी मार्केटिंग से अपनी दबंगता बनवाई। उन्हें धंधा और मार्केटिंग आता है मगर दूरदृष्टि, विजनरी, बुद्धिमत्ता, कल्पनाशीलता, मौलिकता का नितांत टोटा है इसलिए ईरान के मौलानाओं और उत्तर कोऱिया के किम जैसों के आगे भी वे लाचार दिख रहे हैं। ‘फ्री वर्ल्ड’ इन दिनों सचमुच लीडरशीप के गहरे संकट में है।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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