चुनाव के तीसरे चरण में ईवीएम के खराब होने का मामला सामने आया है। यूपी के रामपुर में 300 ईवीएम के गड़बड़ी की शिकायत सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने की है। उन्होंने इसे साजिश बताते हुए भाजपा और चुनाव आयोग को निशाने पर लिया है। हालांकि रामपुर के जिला निर्वाचन अधिकारी ने सिर्फ दो दर्जन मशीनों के गड़बड़ होने की बात ही है, जिसे बाद में रिप्लेस कर दिया गया। इस मामले की शिकायत जिस अंदाज में ट्वीट हुई है, उससे चुनाव बाद की संभावित सियासत का अनुमान लगाया जा सकता है। अब तक के चुनावों में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के बाद यह दूसरा मौका है जब सपा ने शिकायत की है। खुद आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम ने भी इसी तरह के सवाल उठाए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर एक व्यवस्था दी है जिसके तहत किसी भी बूथ पर रैण्डम वोटिंग के लिए ईवीएम और वीवीपैट की पर्चियों से मिलान की जा सकती है।
इसके बाद भी विपक्ष ईवीएम को ही खारिज करने पर तुला हुआ है। इसके बाद भी विपक्ष की तरफ से जिस तरह एक संदेह का आवरण तैयार करने की कोशिश हो रही है, उससे नहीं लगता यह मसला शान्त रहने वाला है। नायडु के बाद अखिलेश यादव की तरफ से उठाई गई आपत्ती का यही निहितार्थ है। जहां तक मशीन के गड़बड़ होने का सवाल है तो यह टेस्टिंग के बाद भी काम नहीं कर सकता ऐसे ना जाने कितने मामले मशीनों से जुड़े होते हैं। उन कारणों को दूर किया जाना चाहिए। पहले से बेहतर और कार्यशील ईवीएम की दिशा में काम किया जाना चाहिए। लेकिन उसके मॉडीफिकेशन की बजाय यह कहने की कोशिश हो रही है कि ईवीएम से निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकता इसलिए उसे रिप्लेस क रते हुए बैलेट पेपर युग की तरफ लौट जाना चाहिए। उस बैलेट पेपर के दौर में लौटने की बात कही जा रही है जिसका इतिहास बूथ कैप्चरिंग और बैलेट बॉक्स लूटे जाने का रहा है।
इसीलिए ईवीएम की तरफ देश आकृष्ट हुआ, इससे निर्वाचन प्रक्रिया को पूरी मदद भी मिली। एक ही दिन में नतीजे उपलब्ध होने लगे। पहले कई दिन लगते थे। जहां तक ईवीएम की बात है तो इसको लेकर दुनिया के दूसरे मुल्कों से सराहना भी मिली। मुद्दा यह है कि निर्वाचन की जो व्यवस्था अभी है उसमें और सुधार किया जाना चाहिए, ना कि उसके इर्द-गिर्द संदेह खड़ा किया जाना चाहिए। विपक्ष जाने- अनजाने इसी वजह से मुद्दा भी बन रहा है। ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतों के बीच चिंताजनक यह है कि शहरी इलाकों में मतदान का प्रतिशत गिर रहा है जबकि ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है। देश के स्तर पर वोटिंग ट्रेंड यह है कि उत्तर भारत के शहरों से ज्यादा पूर्वोत्तर के इलाकों के लोगों में भारी उत्साह देखने को मिला है। यहां विसंगति यह है राजनीतिक चर्चाएं सबसे ज्यादा शहरी इलाकों में होती है लेकिन बूथों पर ग्रामीण लाइन लगाए दिखाई देते हैं। तीसरा चरण तो यही तस्वीर पेश कर रहा है। इस चरण में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से एक वोटर के हिंसा में मौत की खबर आई है, जो निहायत चिंताजनक है। शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव हो, इसके लिए सियासी दलों को भी अपनी तरफ से प्रयास करते दिखना चाहिए।