पिछले दिनों एक मित्र युवा पत्रकार ने मुझे एक निमंत्रण पत्र भेजते हुए कहा कि इसमें आप खुद व अपने दोस्तों को साथ लेकर आइएगा। मैं उसे आगे पढ़ कर चौंका। यह जाने माने लेखक व साहित्यकार डॉ. मोहम्मद अलीम द्वारा उर्दू में लिखी रामायण को लेकर तैयार किए गए नाटक ‘इमाम ए हिंद-राम’ के मंचन के बारे में था। यह उर्दू में देश की पहली रामायण है।
उन्होंने महज दो घंटों में पूरी रामायण को समेट दिया है। राम को ‘इमाम ए हिंद’ संबोधन से संबोधित करने से मैं चौंका। थोड़ी बहुत उर्दू की जानकारी मैं भी रखता हूं। मैंने अपने कुछ मुस्लिम दोस्तों व उर्दू के विद्वान माने जाने वाले हिंदी के पत्रकारों से पूछा तो वे भी यह कहने लगे कि यह तो भगवान राम का अपमान है। वास्तव में तो इमाम शब्द बहुत छोटा होता है। आम तोर पर इमाम नमाज पढ़ाने का काम करते हैं।
इंडियाज मोस्ट वांटेड कार्यक्रम तैयार करने वाला शोएब इलियासी भी खुद को इमाम कहता था। पूर्व कांग्रेसी सांसद व गूजर नेता अवतार सिंह भड़ाना खुद को ‘गूजर इमाम’ के नाम से संबोधित करते थे। उनका कहना था कि हिंदुओं द्वारा भगवान माने जाने वाले राम को इन सज्जन ने महज एक मौलवी बनाकर उनका अपमान किया है। अतः तय किया कि खुद डा. मोहम्मद अलीम से इस बारे में बात करुंगा।
मैंने जब उनसे कहा कि उर्दू के जानकारों का मानना है कि आपने राम का पद छोटा करके उनका अपमान किया है तो हंसकर कहने लगे लोगों का ऐसा सोचना गलत है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से किस तरह हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत व फसाद बढ़ रहे थे उसे देखते हुए मैंने उन्हें भगवान राम के असली स्वरुप के बारे में बताने का फैसला किया। मालूम हो कि यह रामायण वाल्मीकि रामायण के आधार पर तैयार की गई है।
डॉ. अलीम के मुताबिक वे राम को भगवान से ज्यादा एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में पेश करना चाहते हैं। आज इसकी ही जरुरत है। वाल्मीकि रामयण में उन्हें बहुत अच्छे तरीके से मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में प्रस्तुत किया गया था। इमाम शब्द इसलिए दिया क्योंकि इमाम का काम नेतृत्व देना होता है। मुझे लगा कि सांझी विरासत वाले हिंदू-मुसलमानों के बीच उन्हें ईश्वर के रुप में प्रस्तुत करने की तुलना में एक बहुत अच्छा नेतृत्व देने वाले व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करना ज्यादा अच्छा रहेगा।
मैं वैसे भी शायद अलाम इकबाल को बहुत पसंद करता हूं। उन्होंने भी अपनी रचना हमारे हिंद-राम में उन्हें ‘इमाम-ए-हिंद’ लिखा था। है राम के वजूद पर हिंद को नाज, अहले वतन समझता है उनको इमाम। वे बहुत दूरदृष्टि वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्होंने कहा कि यह हमारी बदकिस्मती है कि आज हम मुसलमानों में ही कुछ लोग राम से नफरत करते हैं। मैं दोनों धर्मों के लोगों की खामी दूर करने के लिए प्रयास कर रहा हूं। मेरा पूरा विश्वास है कि मंचन के दौरान लोग मन लगाकर नाटक देखेंगे व उसका विरोध नहीं करेंगे।
यह नाटक दोनों धर्मों के बीच सदभावना के पुल के रुप में काम करेगा। उन्हें पूरा विश्वास है कि यह मुसलमानों को नाराज नहीं करेगा। उन्होंने इस आरोप को गलत बताया कि वे भाजपाई है व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा को खुश करने के लिए उन्होंने यह नाटक लिखा है। जैसे कि कुछ लोगों ने लालू के सत्ता में आने पर लालू चालीसा लिखी थी यह कहना गलत है कि मैं राम को इमाम संबोधित कर मानो डीजी को दरोगा कह दिया है।
यहां एक घटना याद दिलानी जरुरी हो जाती है। हरियाणा के एक गरीब जाट महिला के किराएदार ने उसके मकान पर कब्जा कर लिया था। वह अदालत में गई व मुकदमे का फैसला उसके हक में हुआ तो वह खुशी से जज की बलैया लेती हुई उसे दुआएं देने लगी कि बेटा तूने मुझ जैसे गरीब पर जो उपकार किया है। भगवान इससे खुश होकर तुझे पटवारी बना देगा। उसके लिए पटवारी ही सबसे बड़ा सरकारी पद हुआ करता था।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्राध्यापक मो. अलीम ने तमाम विवादास्पद विषयों पर लिखा हैं। उन्होंने मुसलमानों के तीन तलाक की प्रथा का काफी पहले ही विरोध करते हुए लेख लिखा था कि वह इस्लाम विरोधी है। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं व वामपंथी विचारको में भी उनके विचारों की तारीफ करते रहे हैं। अब वे उन्हें उदधृत करते हुए यह दावे करते हैं कि उनका भाजपा से कुछ लेना देना नहीं है।
यह बात अलग है कि रामायण के मंचन के समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान व डा. महेश चंद्र शर्मा भी मौजूद रहेंगे। इसके मंचन में अरबी काकटेल सरीखी जानी मानी संस्था सहयोग दे रही है। जिससे टाम आल्टर व निदा फाजली सरीखी हस्तियां जुड़ी रही है। नाटक का उर्दू भाषा में मंचन व किताब को विमोचन 11 सितंबर को दिल्ली के कांस्टीटयूशन कल्ब में 3 बजे होगा। वो कहावत है ना कि राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट, अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छूट। देखते इस मंचन से उनके हाथों क्या लगता है।
विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं