नहीं जाना चाहिए गर्मी में घूमने!

0
385

मुझे बचपन से ही गर्मी की तुलना में जाड़े ज्यादा पसंद है। वैसे कहा जाता है कि जो व्यक्ति जिस मौसम में पैदा होता है वह उस मौसम को ज्यादा पसंद करता है। शायद यही वजह है कि दिसंबर के अंत में पैदा होने के कारण मैं सर्दियां ज्यादा पसंद करता हूं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आप इस मौसम में जहां एक ओर अपने मन मुतााबिक अपने शरीर व कमरे का तापमान तय कर सकते हैं। आपको ठीकठाक भूख लग जाती है व खाने की तरह-तरह की चीजें मिलती है।

हालांकि एक बच्चे के लिहाज से गर्मियां मेरे लिए ज्यादा अच्छी होनी चाहिए थी। हमारे समय में गर्मी की छुट्टियों का मतलब सिर्फ मजे करना ही होता था। तब आज की तरह छुट्टियों में हमें होमवर्क नहीं मिलता था व सारा समय मौज मस्ती करने में ही बीतता था। मगर तब घरो में कूलर व एसी नहीं होते थे व आज की तरह सफर करना भी आरामदाय नहीं होता था। ठंडे पानी के लिए हम सुराही साथ लेकर चलते थे। जिन्हें स्टेशन पर भरना बहुत मुश्किल काम होता क्योंकि यात्रियों की भीड़ नल घेर लेती थी।

रात के लिए लोग छतों पर पानी छिड़क कर सोते थे व आंधी के कारण मौसम में आने वाली ठंड के मजे लेते थे। पिछले दिनों अखबारों में कुछ पहाड़ी शहरों की तस्वीरे छपीं देखी जिनमें गाड़ियों का भयंकर जाम लगा हुआ था। नीचे लिखा था कि वहां आने जाने वाले लोगों की संख्या अचानक बढ़ जाने के कारण सड़कों पर चल फिर पाना तक मुश्किल हो गया है व लंबे जाम लग गए है।

मैं अक्सर छुट्टियों में पहाड़ों पर नैनीताल, शिमला आदि जाता था और देखता था कि गर्मी बढ़ जाने से जब वहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती थी तो होटल मालिकों के हाथ पैर फुल जाते थे। वहां गरम पानी से लेकर ठहरने के कमरों व खाने पीने के समान तक का संकट खड़ा हो जाता था। लोगों को होटलों के गलियारों में अपनी कारो में सोने के लिए बाध्य होना पड़ता था।

रेस्तरा में खाने पीने के सामान के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। कभी रोटी कम हो जाती तो कभी दाल जिसके आने में हमे लंबा इंतजार करना पड़ता और उसके आने तक भूख और बढ़ जाती थी। वैसे भी मेरा मानना है कि पहाड़ के लोग बहुत उत्साही नहीं है व पर्यटकों की बढ़ती हुई संख्या को संभाल नहीं पाते हैं और तय नहीं कर पाते हैं कि उनकी बड़ी संख्या का कैसे फायदा उठाने के साथ ही अपने धंधे की बरकत करें।

ऐसे ही महाराष्ट्र को ले कर मेरी राय है। मैं जब काफी पहले मुंबई गया तब जुहू बीच गया तो मैंने वहां अच्छे रेस्तरां की जगह मराठी लोगों को भुट्टे भूनकर बेचते देखा। मुझे लगा कि अगर यह हिस्सा पंजाब में होता तो वहां सरदार पंजाबी होते तो माहौल व पर्यटकों का लाभ उठाते हुए नान वेज व बियर के स्टाल लगा चुके होते। वे लोग तो दुनिया के न जाने कितने शहरो में बढ़ियां खाने के रेस्तरां चला रहे हैं।

सिद्धांतरुप में मैं गर्मियों में कहीं भी बाहर घूमने जाने के खिलाफ हूं। सबसे पहले तो जगह मिलने में दिक्कत होती है। जहां कहीं भी घूमने जाओ तो खाने-पीने से लेकर देखने वालों तक की भीड़ लगी होती है। अब तो पानी का संकट तक होने लगा है। ज्यादा पैसे खर्च करने पर भी पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता है। सबसे दुखद बात तो यह है कि हम 8-10 दिन की छुट्यिां पहाड़ों पर बिताकर वापस घर लौटते है तो कुछ समय के बाद पुनः गरर्मी महसूस होने लगती है जो कि हमारे सहन से बाहर होती जाती है।

अतः मेरा निजी मानना है कि हमें गर्मियों में कहीं बाहर जाना ही नहीं चाहिए। अगर वहां बिजली चली जाए तो और भी ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ता है। मेरा मानना है कि हमें अपनी गर्मियां घर पर ही बितानी चाहिए। अब तो दिल्ली में बिजली को आपूर्ति भी अच्छी हो गई है। वैसे भी जब पारा 44-48 डिग्री सेंटीग्रेड तक जा रहा हो तो बाहर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। अब तो यहां भी लू चलने लगी है।

हम लोग बचपन में घर से बाहर निकलते समय लू से बचने के लिए अपनी कमीज की जेब में छोटा सा प्याज रख लेते थे। इनके अलावा आम का पना व बेल का शरबत भी हमारा लू व गर्मी से बचाव करता था। अब यह बहुत कम ही देखने को मिलता है। अतः गरमी में घर पर ही रहना अच्छा रहता है क्योंकि सुबह से ही लू चलने लगती है। मेरा मानना है कि गर्मी में घर पर ठंडी हवा में रहते हुए हमें अपनी मनपसंद खाने की चीज़े बाहर से मंगवा लेना चाहिए। इससे हम छुट्टियों का मजा भी ले सकते है और किसी बाहर जाने की जगह कम खर्च में होटल में रहने का माज लेते हुए छुट्टियां बिता सकते है। गर्मी में अपनी वजह से क्यों छुट्टियां व पैसा बरबाद करने धक्के खाना?

विवेक सक्सेना
लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here