धामी के समक्ष होंगी कठिन चुनौती

0
118

चुनावी साल में किसी अनुभवहीन नेता को राज्य की कमान कांटों भरा ताज से कम नहीं है। भाजपा ने उाराखंड में यह साहस 5 बार दिखाया है। राज्य में संवैधानिक संकट से बचने के लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उत्ताराखंड में तीरथ सिंह रावत से इस्तीफा लेकर युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को नया मुख्यमंत्री बनाया है। दरअसल, तीरथ सिंह रावत सांसद थे, मुख्यमंत्री बनने के बाद छह माह के भीतर उन्हें विधानसभा सदस्य बनना था। उत्ताराखंड विधानसभा का 5 साल का कार्यकाल 17 मार्च 2022 को पूरा हो रहा है। यहां अगले साल फरवरी 2022 में चुनाव होने हैं। निर्वाचन आयोग के नियमों के मुताबिक 1 साल के कम कार्यकाल बचने के दौरान संवैधानिक रूप से उपचुनाव नहीं हो सकते। तीरथ रावत ने इस साल 10 मार्च को शपथ ली थी। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेना अनिवार्य है। रावत जब सीएम बने तब कोई सीट खाली नहीं थी, जहां से वो चुनाव लड़ सकें। ये अलग बात है कि पार्टी नेतृत्व किसी सेफ सीट को खाली करवाती और उन्हें 17 मार्च 2020 से पहले विधानसभा पहुंचाती, ताकि उनकी कुर्सी संवैधानिक रूप से सुरक्षित रहे।

हालांकि ऐसा हुआ नहीं। भाजपा विधायकों के निधन से राज्य में गंगोत्री (23 अप्रैल को)और हल्द्वानी (13 जून को) दे सीटें खाली हुई थीं, लेकिन ये सीटें एक साल से कम समय में खाली हुई थी, इसलिए संवैधानिक नियमों के मुताबिक यहां चुनाव करवाना नहीं था। ऐसे में रावत को पद छोडऩा पड़ा। इसके अलावा रावत अपने विवादित बयानों व सुस्त कामकाज के चलते उाराखंड में भाजपा की चुनावी नैया पार लगा पाते, पार्टी नेतृत्व को इसकी उम्मीद कम लग रही थी। बतौर मुख्यमंत्री 114 दिन के कार्यकाल में तीरथ सिंह फटी जींस से लेकर 20-20 बच्चे वाले अपने बयान के चलते विवाद में रहे। हरिद्वार कुंभ में कोरोना फैलने से भी रावत सरकार की छवि खराब हुई। तीरथ सिंह ने त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के गैरसैण मंडल बनाने के विवादित फैसले को पलटकर कुमायूं मंडल में उपजे विरोध को जरूर शांत किया, लेकिन चारधाम देवस्थानम बोर्ड को खत्म करने के बारे में घोषणा करने के बावजूद अमल नहीं कर सके। इससे ब्राह्मण समुदाय खुद को ठगा सा महसूस करने लगा। चुनावी वर्ष के चलते भाजपा रिस्क नहीं लेना चाहती थी। अब पुष्कर सिंह धामी के सामने तेज फैसले करने की चुनौती होगी।

चरधाम देवस्थानम बोर्ड को खत्म करने के फैसले पर अमल करना होगा। राज्य में पुष्कर की छवि तेज तर्रार बेदाग नेता के रूप में हैं, उनसे सीनियर जितने भी नेता है, जो इस बार सीएम पद के दावेदार भी थे, उनके कामकाज से लोग परिचित हैं। चूंकि भाजपा सता में है, इसलिए उस पर खासा दबाव है। उत्तर प्रदेश में भी साथ ही चुनाव होगा जहां भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। कोरोना के चलते उाराखंड के पर्यटन को गहरा धक्का लगा है। राज्य में बेरोजगारी एक बड़ा प्रश्न है। नए सीएम पुष्कर के सामने न केवल कोरोना से लडऩे व युवाओं समेत सभी वर्गों को साधने की चुनौती होगी, बल्कि राज्य में पर्यटन को गति देने, नए उद्योग लगाने, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने संबंधी भी तेज फैसले करने होंगे। उन्हें वरिष्ठ असंतुष्ट नेताओं से भी पार पाना होगा। अगले विस चुनाव में समय कम है, इसलिए उन्हें अपनी अनुभवहीनता से जल्द बाहर निकल कर ऐसे दूरदर्शी फैसले करने होंगे, जिन्हें पार्टी अपने कामकाज के रूप में गिना सके। वे भाजपा के लिए कितने उपयोगी साबित होंगे, यह तो फरवरी में होने वाले चुनाव के बाद ही पता लगेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here