दूसरी पारी में बस राजनीतिक एजेंडा!

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प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल में बहुत साफ और स्पष्ट तरीके से दो रूपों में दिखे थे। पहला रूप एक समाज सुधारक का था और दूसरा आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल देने वाले नेता का था। सरकार में आते ही उन्होंने स्वच्छता अभियान को मिशन बनाया था। हर घऱ में शौचालय बनवाने का संकल्प किया था और देवालय से पहले शौचालय का नारा दिया था। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इसके समानांतर उन्होंने सही या गलत दो बड़े आर्थिक फैसले किए। नवंबर 2016 में देश की लगभग सारी नकदी को चलन से बाहर कर दिया और अगले साल जुलाई में जीएसटी लागू किया। भले कम तैयारी के साथ लागू किया गया पर जीएसटी बड़ा आर्थिक सुधार था। इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि वे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाएंगे।

दूसरे कार्यकाल में ऐसा लग रहा है कि सामाजिक और आर्थिक सुधारों के प्रयासों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और सरकार सिर्फ राजनीतिक एजेंडे पर काम कर रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह चर्चा सही तो नहीं है कि इस बार सरकार नरेंद्र मोदी नहीं बेल्कि अमित शाह चला रहे हैं और अमित शाह की बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है इसलिए वे सामाजिक व आर्थिक सुधार के पचड़े में नहीं पड़ने वाले हैं? एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि सरकार आर्थिकी के मोर्चे पर बुरी तरह से पिट रही है। उसके सारे प्रयास नाकाम हैं तो वह उनसे ध्यान हटाने के लिए एजेंडा सेटिंग के तहत राजनीतिक मुद्दों को चर्चा के केंद्र में ला रही है?

कारण चाहे जो हों पर सरकार का पहले दो महीने का कार्यकाल राजनीतिक एजेंडे से भरा हुआ है। खास कर ऐसे राजनीतिक एजेंडे से जो भाजपा के विचार के केंद्र बिंदु रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा, समान नागरिक संहिता, कश्मीर का विशेष दर्जा, अयोध्या में राम मंदिर, कांग्रेस मुक्त भारत आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर भाजपा पिछले करीब 40 साल से विचार करती रही है। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार बरसों और दशकों तक विचार के स्तर पर रहे मुद्दों पर अमल करती दिख रही है।

मोदी 2.0 सरकार ने भाजपा के कुछ बड़े राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने की दिशा में ठोस पहल की है। मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक के खत्म होने और उसे अपराध बनाने का कानून पास होना कितना बड़ा कदम है, उसका अंदाजा मीडिया में हो रही व्य़ाख्याओं से नहीं लगाया जा सकता है। जमीनी स्तर पर इसका असर हिंदू और मुस्लिम दोनों के दिल दिमाग में हलचल मचाने वाला है। हिंदू मानस में यह बात बैठी है कि सरकार अंततः समान नागरिक संहिता की दिशा में बढ़ गई है तो मुस्लिम समाज को लग रहा है कि यह उनकी धार्मिक आस्था और निजी जीवन में सरकार का सीधा दखल है और वह इसलिए है क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है। इसका अगला चरण निकाह हलाला पर रोक का होगा और उसके बाद जनसंख्या नियंत्रण का कठोर कानून बन सकता है।

अयोध्या में राम मंदिर का मामला निर्णायक चरण में पहुंच गया है। सर्वोच्च अदालत में छह अगस्त से रोजाना सुनवाई शुरू होगी और फैसला होने तक जारी रहेगी। एक बार सुप्रीम कोर्ट से फैसला हो जाए फिर सरकार जरूरी होने पर इसमें दखल देगी और मंदिर निर्माण का काम अगले साल शुरू करा सकती है। इसी तरह कश्मीर मामले में भी सरकार निर्णायक फैसला करने की दिशा में काम कर रही है। भले विपक्षी पार्टियां कहें कि सैन्य नीति से कश्मीर के संचालन से वहां के स्थानीय लोग अपने को अलग थलग महसूस कर रहे हैं पर असलियत यह है कि कश्मीर घाटी में बड़ा बदलाव आया है। यह ऐसा मुकाम है, जब कश्मीर में हुई ऐतिहासिक गलतियों को ठीक किया जा सकता है।

सो, यह माना जा सकता है कि समान नागरिक संहिता, राम मंदिर और कश्मीर का मसला इस कार्यकाल में हल हो जाएगा। भाजपा का एक बड़ा एजेंडा कांग्रेस मुक्त भारत का है। पर उसके लिए सरकार को कुछ खास करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कांग्रेस खुद ही अपने को खत्म करने में गंभीरता से लगी है।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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