दिल्ली जैसी अराजकता और कहां?

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जी हां, दिल्ली दुनिया की सबसे अराजक राजधानी बन गई है। ईरान, इराक, सीरिया, लेबनान जैसे युद्धग्रस्त देशों को छोड़ दें तो पाकिस्तान से लेकर मालदीव, तुर्की और वेनेजुएला से लेकर नाइजीरिया तक किसी देश की राजधानी में ऐसी अराजकता नहीं हो रही है, जैसी भारत महान की राजधानी में हो रही है। वह भी आजाद भारत के इतिहास में सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद बने सबसे ताकतवर गृह मंत्री की नाक के नीचे!

यह कितना शर्मनाक है, जो राष्ट्रीय राजधानी में स्थित देश के सबसे बेहतरीन शिक्षण संस्थान में नकाबपोश गुंडे घुस जाएं और तीन घंटे तक हिंसा का तांड़व करते रहें! जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के जिस कैंपस को पिछले तीन साल से अलग-अलग कारणों से चल रहे विवादों की वजह से सबसे सुरक्षित कैंपस बनाया गया है, उसमें रविवार की शाम को 50 नकाबपोश गुंडे घुस गए। उनके हाथों में लाठी, डंडे और हॉकी स्टिक्स थीं। उन्होंने लड़कियों के छात्रावास में जाकर तोड़फोड़ की। छात्राओं और यहां तक की शिक्षकों को बेरहमी से पीटा। उनके हाथ-पैर तोड़ दिए और सर फोड़ डाले। करीब तीन घंटे तक हिंसा का यह तांडव होता रहा और इस दौरान न पुलिस पहुंची और न जेएनयू के सिक्योरिटी गार्ड्स पहुंचे। छात्रों और शिक्षकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस वाइस चांसलर को सौंपी गई है, उनका भी अता पता नहीं था। घंटों हिंसा का तांडव होने और उसकी वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची।

दिल्ली की यहीं पुलिस, जो सीधे देश के गृह मंत्री के अधीन काम करती है, वह 15 दिसंबर की रात को देश के एक और बेहद प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जामिया मिलिया इस्लामिया के कैंपस में घुस गई थी। बिना किसी से अनुमति लिए या बिना पूर्व चेतावनी के पुलिस फोर्स यूनिवर्सिटी के कैंपस में घुसी और छात्रों को बड़ी बेरहमी से पीटा। सड़क पर कथित रूप से दंगा कर रहे लोगों को खोजने कैंपस में घुसी पुलिस ने लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे और हॉस्टल में रहने वाले छात्रों पर हमला किया और उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया। जेएनयू की हिंसा अगर अराजकता का एक स्तर है तो जामिया में पुलिस का घुस कर हिंसा कर अराजकता का दूसरा स्तर था।

उससे पहले अराजकता का तीसरा स्तर तब देखने को मिला था, जब गृह मंत्री की नाक के नीचे राजधानी दिल्ली में वकीलों की फौज सड़क पर उतरी थी और दिल्ली पुलिस के जवानों को पीट-पीट कर उनका भुर्ता बना दिया था। कई दिनों तक अदालतों में पुलिस वाले पीटते रहे थे। पुलिस के जवानों और उनके परिजनों ने रो-रोकर सड़कों पर प्रदर्शन किया था और बचाने की गुहार लगाई थी। क्या दुनिया में और कहीं ऐसा हुआ होगा कि वकील अदालतों में पुलिस की पिटाई कर रहे हों, पुलिस शिक्षण संस्थानों के कैंपस में घुस कर छात्रों की पिटाई कर रही हो और पुलिस व सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में गुंडे यूनिवर्सिटी कैंपस में घुस कर छात्रों और शिक्षकों की पिटाई कर रहे हों?

इसमें अगर नागरिकता कानून के विरोध में हुए आंदोलन और उस दौरान हुई हिंसा को जोड़ दें तो दिल्ली की अराजकता की तस्वीर पूरी हो जाती है। पुलिस ने आंदोलन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं और इस सचाई से साफ मुकर गई। जब जांच में गोली चले होने का पता चला तो 20 दिन के बाद पुलिस ने माना कि हां, उसने 15 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई थीं। क्या आज के समय में किसी भी सभ्य या बर्बर देश में भी ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है? शायद नहीं! पर जिन चीजों की कल्पना नहीं की जा सकती है, वह सब कुछ दिल्ली में हो रहा है। राजधानी दिल्ली में हफ्तों तक सड़कें बंद रह रही हैं, आम आदमी की परेशानी की चिंता किए बगैर आए दिन मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए जा रहे हैं, डिजिटल इंडिया में ऐसी स्थिति है जो अक्सर इंटरनेट बंद करने की नौबत आ जा रही है और यह सब कुछ प्रदर्शन कर रहे अपने ही लोगों को काबू में करने के नाम पर किया जा रहा है।

यह सब आज की दिल्ली की वास्तविक तस्वीर है। पर बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली ऐसी क्यों हो गई है? क्या यह सरकार की विफलता है या किसी ग्रैंड डिजाइन के तहत ऐसा किया जा रहा है? वकीलों द्वारा पुलिस की पिटाई के मामले को छोड़ दें तो बाकी सब कुछ एक ग्रैंड डिजाइन की हिस्सा दिख रहा है। इस सरकार को, सत्तारूढ़ पार्टी को जवाहर लाल नेहरू और उनके नाम से बनी संस्थाओं से चिढ़ है। इस सरकार को हार्वर्ड की विरासत यानी शिक्षा से भी नफरत है। तभी नेहरू के नाम से जुड़ी संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है और शिक्षण संस्थानों को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए ऐसा नैरेटिव बनाया जा रहा है, जैसे पढ़े-लिखे तमाम लोग शहरी नक्सल हैं और नेहरू के नाम से बनी संस्थाओं के शिक्षक, शोधकर्ता और छात्र सब टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा हैं।

शहरी नक्सल और टुकड़े-टुकड़े गैंग के नैरेटिव का सब प्लॉट मुस्लिम विरोध का है। तभी दिल्ली के जेएनयू या जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंसा होती है तो पूरे देश में एक राजनीतिक मैसेज जाता है। इससे मुस्लिम विरोध का नैरेटिव मजबूत किया जाता है। दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं उसमें भी यह मैसेज कारगर होगा। जेएनयू और जामिया दोनों में हुई हिंसा अंततः मुस्लिम विरोध के लोकप्रिय विमर्श को मजबूत करेगी। हो सकता है कि दिल्ली के चुनाव में भाजपा को इसका कुछ फायदा मिल जाए पर अंततः इसका विस्तार पूरे देश में होगा और फिर पूरा देश ही एक युद्धक्षेत्र में तब्दील हो जाएगा।

अजीत द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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