दिलों को जोड़े यह बरामदा

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सिखों के तीर्थ कर्तारपुर साहब पर भारत और पाकिस्तान के अफसरों के बीच बातचीत हुई, यह अपने आप में बड़ी बात है, खास तौर से पुलवामा-हत्याकांड और उसके बाद हुई भारत-पाक मुठभेड़ के बाद ! कर्तारपुर बरामदा जब चालू होगा, तब होगा लेकिन उसने भारत और पाकिस्तान को अभी तो तुरंत एक-दूसरे से जोड़ दिया है। इसे भारत-पाक संवाद नहीं कहा जा रहा है लेकिन यह तो संवाद से भी बड़ी चीज़ है। यह कोरा संवाद नहीं, ठोस सहयोग है। दोनों देशों के अधिकारी मिलकर यह तय कर रहे हैं कि भारतीय तीर्थयात्रियों की कर्तारपुर-यात्रा को कैसे सुविधाजनक बनाया जाए।

इस तरह की योजना क्या दो युद्धरत देशों के बीच हो सकती है ? क्या दो दुश्मन देश इस तरह की किसी योजना पर काम कर सकते हैं ? दूसरे शब्दों में यह पहल अत्यंत ही स्वागत योग्य है। इससे एक संदेश यह भी मिलता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जो सीमित और संक्षिप्त मुठभेड़ हुई थी, वह अब पीछे छूट गई है। दोनों देशों के बीच इस नए दौर की शुरुआत अभिनंदनीय है। यह एक एतिहासिक क्षण है और ऐसा शायद बंटवारे के बाद पहली बार हो रहा है कि पाकिस्तान की भूमि पर भारत अपने करोड़ों रु. खर्च करके एक तीर्थ का निर्माण कर रहा है। ऐसा ही काम यदि पाकिस्तान भी भारत के जमीन पर करवाए तो सारी दुनिया को एक जबर्दस्त संदेश जाएगा। वह भारत का एक उत्तम पड़ौसी जाना जाएगा। यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी तो आतंकवाद और कश्मीर की समस्याएं भी परस्पर सहयोग से हल होंगी। यदि भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी खत्म हो तो दक्षेस की किस्मत चमक उठेगी। दक्षेस पर छाए बादल अपने आप छंट जाएंगे।

कर्तारपुर बरामदे की बातचीत के बाद दोनों देशों के अधिकारियों ने खुशी जाहिर की है और बातचीत को सदभावपूर्ण बताया है लेकिन जो भी मतभेद है, उन्हें दो अप्रैल को होनेवाली अगली बैठक में हल किया जाएगा। भारत चाहता है कि रोज 5000 यात्रियों के जाने की व्यवस्था हो लेकिन पाकिस्तान सिर्फ 500 चाहता है। भारत का कहना है कि उन यात्रिओं को वीजा वगैरह किसी कागजी अनुमति की जरुरत नहीं होनी चाहिए। उन्हें तीन-चार किलोमीटर के इस बरामदे में पैदल यात्रा की सुविधा हो। भारत यह भी चाहता है कि प्रवासी भारतीय और सभी धर्मो के लोगों को कर्तारपुर जाने की अनुमति हो। जाहिर है कि भारत की ये मांगे ऐसी है कि जिन्हें पाकिस्तान पूरी कर सकता है। मैं तो यह कहता हूं कि कर्तारपुर का यह बरामदा दोनों देशों के दिलो-दिमाग को जोड़नेवाला बरामदा सिद्ध हो।

डा. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

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