आजादी के बाद हुए तीन आम चुनावों में कांग्रेस पश्चिम बंगाल में छाई रहीं, परंतु पश्चिम बंगाल कांग्रेस में आरंभ से ही अनेक महत्वपूर्ण आंतरिक समस्याएं थीं। जहां अतुल घोष तथा प्रफुल चंद्र सेन एक और थे, वहीं अरुण चंद्र गुहा, सुरेंद्र मोहन बोस और प्रफुल्ल चंद्र घोष दूसरी तरफ थे। मेरे पिता ने अतुल घोष के साथ काम किया था। वे 1948 से पश्चिम बंगाल कांग्रेस की कार्यकारी कमेटी के सदस्य थे। अंतत: 1966 में पश्चिम बंगाल कांग्रेस में दरार आई। अजय मुखर्जी के नेतृत्व में एक दल अलग से काम करने लगा। एक मई 1966 को औपचारिक रूप से बांग्ला कांग्रेस की स्थापना हुई। इस दल के गठन की प्रक्रिया के दौरान के दौरान ही अजय बाबू ने श्याम स्वायर कोलकाता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक सभा बुलाई थी। मैंने भी उस में हिस्सा लिया, हालांकि तब मैं नियमित कांग्रेसी नहीं था। 8 जून 1966 को मैं अजय बाबू के साथ राज्य के दौरे पर था। उसी दौरान मैंने उन्हें संयुक्त मोर्चा के गठन का सुझाव दिया था, ‘अजय दा, यदि हम कांग्रेस को पराजित करना चाहते हैं तो हमें सभी दलों को एक करना होगा।
यदि हम एक संयुक्त मंच से चुनाव लड़ेंगे तो हम कांग्रेस को परास्त कर सकते हैं।’तब अजय बाबू इस दिशा में प्रयास करने लगे। सभी गैर कांग्रेस दलों को एक साथ लाने का प्रयत्न किया गया, परंतु ये प्रयास सफल नहीं हो सका। उस दौरान चुनावों में मुकाबला तीन धड़ों के बीच हुआ- पीपल्स यूनाइटेड लेकट फ्रंट (पीयूएलएफ), यूनाइटेड लेकट फ्रंट (यूएलएफ) तथा कांग्रेस। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), रेवलूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, द रेवलूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी तथा सोशलिस्ट यूनिटी आदि ने ज्योति बसु के नेतृत्व में यूएलएफ का गठन किया था जबकि अजय बाबू के नेतृत्व में पीयूएलएफ का गठन हुआ था, जिसमें बांग्ला कांग्रेस, फारवर्ड ब्लॉक और कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया मुख्य रूप से शामिल थे। इस त्रिकोणीय मुकाबले में पीयूएलएफ को 63, यूएलएफ को 68 सीटें प्राप्त हुईं। चुनाव के बाद ये दोनों दल 18 सूत्रीय कार्यक्रम के अधीन एक हो गए तथा कुछ अन्य दलों के साथ मिलकर अजय बाबू के नेतृत्व में सरकार बनाई।
हालांकि संयुक्त मोर्चा सरकार के गठन की खुशी पूरे राज्य में समारोहपूर्वक मनाई गई, परंतु सीपीआई (एम) के प्रतिनिधि यूनाइटेड फ्रंट में समस्याएं खड़ी करने लगे, जो अजय बाबू के लिए परेशानी का कारण बनने लगीं। अजय बाबू इस आंतरिक कलह तथा असंतोष से बहुत ही कुंठित होते जा रहे थे। कुछ कांग्रेसी उन्हें दल में वापस आने के लिए मनाने लगे। उनका सुझाव था कि यदि बांग्ला कांग्रेस के 34 विधायक कांग्रेस के 127 विधायकों से हाथ मिला लें तो इस दल का बहुमत हो जाएगा और इस तरह वे सरकार बना सकते हैं। मैं यहां केवल वही थोड़ी सी बात दोहरा रहा हूं जो हमें अजय बाबू ने बताई थी। यह तय पाया गया था कि 2 अटूबर को महात्मा गांधी के जन्मतिथि पर अजय बाबू मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे। कांग्रेस के साथ जो नई सरकार बनेगी उसके मुख्यमंत्री भी अजय बाबू होंगे। यह योजना फलीभूत हो पाती कि आनंद बाजार पत्रिका के एक प्रतिनिधि बरुण सेन गुप्त को इसकी हवा लग गई और इसे उन्होंने छाप दिया। उन्हें कहीं से अजय बाबू की त्यागपत्र देते समय दिए जाने वाले भाषण की प्रति भी मिल गई।
इस कहानी ने एक सनसनी पैदा कर दी और पूरी तरह से कोलाहल मच गया। इस बारे में चर्चा करने के लिए कनाई भट्टाचार्य के आवास पर एक बैठक बुलाई गई। सभी यूनाइटेड फ्रंट के नेता कनाई बाबू के घर पहुंचे। अजय बाबू ने विस्तार से बात की, जिसके बाद यह तय किया गया कि सीपीआईएम अपनी आवेश मुद्रा पर रोक लगाएगी और अजय बाबू का अनादर नहीं किया जाएगा। इस बैठक के बाद अजय बाबू ने बांग्ला कांग्रेस में ही रहने का फैसला किया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा न देने के लिए मान गए। इसके बावजूद बांग्ल कांग्रेस के 34 में से 17 विधायकों ने प्रफुल्ल घोष के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल होने का फैसला कर लिया। राज्यपाल ने उनके पत्र स्वीकार करने में बिल्कुल देरी नहीं की और अजय बाबू से कहा गया कि वे अपना बहुमत साबित करने को तत्काल असेंबली का सत्र रखें। अजय बाबू ने राज्यपाल से कहा कि यह पहले ही सत्र बुला चुके हैं, इसलिए उसकी तिथि में कोई फेरबदल नहीं करेंगे। वैसे भी यह अधिकार कैबिनेट को है कि असेंबली का सत्र कब बुलाया जाना चाहिए।
राज्यपाल नहीं माने, उन्होंने अजय बाबू से कहा- मुझे लगता है कि आपके पास अब असेंबली में बहुमत नहीं रहा। पहले आपको प्रमाणित करना होगा कि आपके पास अनिवार्य सदस्य हैं। 21 नवंबर को अजय बाबू को राज्यपाल की तरफ से लिखित संदेश मिला कि उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई है। कारण यह दिया गया कि उन्होंने असेंबली में अपना बहुमत साबित करने से इनकार कर दिया है। इसके बाद आधी रात को प्रफुल्ल घोष को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। अगले दिन संयुक्त मोर्चा ने एक सार्वजनिक सभा बुलाई और एक चुनी हुई सरकार को इस तरह बर्खास्त करने पर विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि पुलिस ने लाठी चार्ज कर इसे समाप्त करवा दिया। इस घटना ने स्वाभाविक रूप से आग में घी का काम किया और रोष बढ़ता गया। इस दौरान प्रफुल्ल घोष को बहुमत साबित करने का मौका देने के लिए असेंबली का सत्र रखा गया। सत्र प्रारंभ होते ही स्पीकर बनर्जी ने कहा, यह पूरी तरह अलोकतांत्रिक है, विधानसभा के बाहर मंत्रिमंडल नहीं बदल सकता। सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। विधानसभा स्थगन के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।