थमी धड़कनों और रोमांच के बीच

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भारतीय टीम ने 135 करोड़ देशवासियों की उमीदों पर खरा उतरकर 41 सालों से ओलंपिक पदक से चली आ रही दूरी को ख़त्म करके देश को ख़ुशी से झुमा दिया है। भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता। 1928 से 1956 तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर अपनी बादशाहत कायम की थी। पर 1980 के मॉस्को ओलंपिक के बाद भारत से सफलता रूठ गई थी। कई बार भारतीय टीम खोई प्रतिष्ठा को पाने के इरादे से गई, लेकिन अपने इरादों में सफल नहीं हो सकी। पर मनप्रीत की अगुआई वाली भारतीय टीम आखऱिकार भारत की पदक से दूरी ख़त्म करने में सफल हो गई। भारत की ज़्यादातर आबादी ने हॉकी में पदक जीतने की कथाएं सुनी ही थीं लेकिन अब भारतीय नागरिक ख़ासतौर से युवा पीढ़ी ने पहली बार भारतीय टीम को पदक जीतते देख लिया है। भारतीयों का इस खेल से भावनात्मक लगाव रहा है, इसलिए इस पदक के अन्य पदकों के मुक़ाबले अलग ही मायने हैं। सही मायनों में इस सफलता ने देश को खुशी से सराबोर कर दिया है।

खेल समाप्ति से साढ़े चार मिनट पहले जर्मनी टीम ने पैनिक बटन दबाकर अपने गोलकीपर स्टेडलर को बाहर बुलाकर सभी 11 खिलाडिय़ों को हमलों में उतार दिया। खेल समाप्ति से छह सेकेंड पहले जर्मनी को मैच का दसवां पेनल्टी कॉर्नर मिल जाने से भारतीय टीम और खेल प्रेमियों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं। लेकिन भारतीय डिफ़ेंस ने शानदार बचाव करके भारत का पोडियम पर चढऩा पक्का कर दिया। इससे ढाई मिनट पहले भी जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला पर भारतीय डिफ़ेंस की मुस्तैदी से जर्मनी को अपने इरादों में सफल नहीं होने दिया। भारतीय टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें वापसी करने की क्षमता है। दूसरे वार्टर की शुरुआत में दो गोल खा जाने से एक बार तो लगा कि भारत मुकाबले से बाहर होने जा रहा है लेकिन टीम ने धीरेधीरे खेल पर नियंत्रण बनाकर बराबरी करके जता दिया कि भारतीय खिलाड़ी भी किसी से कम नहीं हैं। वैसे भारतीय डिफ़ेंस ने बेल्जियम के खिलाफ़ की गई ग़लतियों को एक बार दोहराकर टीम को शुरुआत में ही मुश्किल में डाल दिया।

जर्मन हमलों के समय भारतीय डिफ़ेंडरों ने गेंद को लियर करने में देरी करके उनके फ़ॉरवर्ड को गेंद पर कब्ज़ा जमाने के मौके देकर उन्हें गोल पर निशाने साधने के मौके दे दिए। सही मायनों में जर्मनी के पहले तीनों गोल भारतीय डिफ़ेंस की ग़लतियों के नतीजे रहे। आमतौर पर श्रीजेश दीवार की तरह डटे नजऱ आते हैं लेकिन जब वो फ़ुल बैक और मिडफ़ील्डर हमलावरों को सर्किल से पहले रोकने में कामयाब नहीं रहे, तो उन पर अतिरित दवाब आने लगा, लेकिन फिर भी वह डटे रहे। भारत ने ज़ोरदार वापसी करके तीसरे वार्टर की शुरुआत में बढ़त बनाकर जर्मनी पर दवाब बना दिया। भारत के इससे पहले हाफ़ में बराबरी पाने से मनोबल ऊंचा हो गया और हमारे खिलाड़ी स्वाभाविक खेल खेलने लगे। भारत ने दूसरे हाफ़ यानी तीसरे कवार्टर की बहुत ही आक्रामक अंदाज़ से शुरुआत की और जर्मनी के डिफ़ेंस को छितराकर उन्हें दवाब में ला दिया। भारत ने शुरुआत में ही दो गोल जमाकर 5-3 की बढ़त बना ली। जर्मन टीम के गोलकीपर की दुनिया के बेहतरीन गोलकीपरों में गिनती होती है।

लेकिन भारत के दो गोल जमाकर बराबरी पाने के बाद वह अपनी धड़कनों को काबू रखने में असफल रहे। उनके ऊपर इसके बाद लगातार दवाब रहा और भारत के चार गोल जमाने के दौरान उनका स्वाभाविक बचाव नहीं नजऱ आया। वहीं चौथा गोल करके जर्मनी की टीम जब वापसी करने का प्रयास कर रही थी, तब ही हाउके पीछे से ग़लत टैकल करने की वजह से पीला कार्ड लेकर बाहर चले गए। इससे उनकी वापसी की लय बिगड़ गई। दरअसल जर्मनी टीम ने पहले वार्टर में दबदबा बनाने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा ऊर्जा लगा दी। इससे उनका खेल पर दबदबा तो बन गया पर उनके खिलाड़ी इसके बाद इस गति का प्रदर्शन करने में असफल रहे। इसका भारत ने भरपूर फ़ायदा उठाया और हमलावर रुख़ अपनाकर जर्मनी को हमले बनाने के बजाय बचाव में व्यस्त कर दिया।

भारत की यह रणनीति कारगर साबित हुई और जर्मनी के हमलों में कमी आ गई और जो हमले हुए भी उनमें पैनापन नजऱ नहीं आया। जर्मन टीम तेज़ गति की हॉकी खेलने के लिए जानी जाती है। भारत को इसके लिए गेंद को नियंत्रण में रखकर खेल की गति को धीमा करने की ज़रूरत थी। लेकिन जर्मन खिलाडिय़ों ने अपनी गति से भारतीय खिलाडिय़ों को आपस में पासिंग नहीं करने दी। इससे जर्मनी पहले वार्टर में पूरा दबदबा बनाने में सफल रही। भारतीय खिलाड़ी सही ढंग से आपस में पासिंग तक नहीं कर सके। इस क्वार्टर के खेल को देखकर लग नहीं रहा था कि भारत की हॉकी पदक से दूरी ख़त्म भी हो पाएगी। लेकिन भारतीय खिलाडिय़ों के बुलंद इरादों ने मैच की तस्वीर ही नहीं बदली बल्कि देशवासियों को जीत की भावनाओं में भी बहा दिया।

मनोज चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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