डिफेंस कारीडोर से उम्मीद

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही उम्मीद जताई है कि यूपी अब रक्षा निर्माण का हब बनेगा। इससे हमारे रोजगार बढ़ेंगे और मेक इन इंडिया का सपना भी पूरा होगा। डिफेंस एसपो 2020 में पांच दिनों के लिए प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दुनिया के कई हिस्सों से रक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग शाामिल हैं। लक्ष्य है अगले पांच वर्षों में भारत से 35 हजार करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात हो सके। इससे एक लाभ और है कि देश पर रक्षा खरीद का भार भी कम होगाए जिसका शैक्षणिक-सामाजिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस एसपो के जरिये 50 हजार करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है। तीन लाख से ज्यादा लोगों को काम मिलने की उम्मीद है। बेरोजगारी के बढ़ते संकट के बीच ये संभावित आंकड़े राहत देते हैं। इसके लिए आवश्यकता बस इस बात की है कि कुछ होए कौशल विकास मिशन के नाम पर सिर्फ प्रमाण-पत्रों के वितरण तक ही प्रयास सीमित ना रहे।

इससे भला कौन इनकार कर सकता है कि तकनीक के युग में इसके बिना ना तो देश आगे बढ़ सकता है और ना ही समाज। अबए जरा हमारा लक्ष्य क्वांटम कप्यूटिग की समझ को बढ़ाने और उसका चिकित्सा समेत अन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल करने का सपना है तो वो शिक्षण के साथ ही प्रशिक्षण की भी मांगक करता है। उत्पादन के बल पर ही चीन ने दुनिया भर में आर्थिक महाशक्ति की दौड़ में अपनी धाक जमाई है। तकनीक ने जब दिनचर्या की भूमिका ग्रहण कर ली है, तब स्वाभाविक मानव श्रम का सार्थक उपयोग हो सकता है। ऐसे समय में जब देश की 65 फीसदी आबादी इस वक्त युवा हैए इसका बेहतर उपयोग उत्पादन के पारंपरिक खांचे से बाहर निकल कर ही हो सकता है। इसका अर्थ हुआ शिक्षा की बुनियाद में तकनीक को भी श्रेय देना ही उस लक्ष्य को आकार दे सकता है। मेक इन इंडिया इस दौर की बड़ी अहम मांग है। वैश्विक स्पर्धा के अवसरों के बीच उत्पादों की विश्व स्तरीय गुणवत्ता की तरफ ध्यान दिये बिना निर्यात का सपना पूरा नहीं हो सकता।

क्या हम इसके लिए तैयार हैं। और हैं तो उस दिशा में कार्यस्थगन की रफ्तार कैसी है, इस ओर समय रहते ध्यान दिये जाने की जरूरत है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसके महत्व को रेखांकित करते हुए स्पष्ट किया है कि आयात का अर्थ सिर्फ सामानों का आयात नहीं है बल्कि उसके यहां उत्पादन की व्यवस्था को गति देने की समान जरूरत है ताकि संबंधित तकनीक अपरिचित ना रह जाये। राफेल सौदे में इस पहले को ध्यान में रखा गया है। ऑफ सेट व्यवस्था में यहां लोगों को काम भी मिल सकेगा। हालांकि इस विषय पर मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में काफी सियासी बखेड़ा खड़ा हुआ था। यह सच है कि रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत के लिए बड़ी संभावना हो सकती है। रक्षामंत्री को भी उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में देश पॉवर हाउस बनेगा।

यह सब तभी संभव है जब सही अर्थों में प्रशिक्षित नौजवानों की लम्बी कतार होगी। मौजूदा स्थिति इंजीनियरिंग के क्षेत्र में चंद संस्थानों को छोड़ दें जहां पढ़ाई पूरी करने से पहले ही लाखों के पैकेज पर चुन लिए जाते हैं पर ज्यादातर की स्थिति यह है कि नौकरी की पात्रता पूरी कर पाने में सक्षक नहीं हो पाते। दुनिया की नामीकृगिरामी कंपनियों की नजर में एक-डेढ़ फीसदी के आसपास ही इंजीनियरिंग संस्थानों से ऐसा स्टाफ तैयार होता है, जिसका चयन हो पाता है। तो ऐसी स्थिति में इंजीनियरिंग छात्रों की संख्या बढ़ाने से हल नहीं निकलता, उलटे बेरोजगारी का आंकड़ा ही बढ़ जाता है। इसीलिए मेक इन इंडिया की राह में आधारभूत दुश्वारियों को दूर किये बिना पॉवर हब की उम्मीद करना सांत्वना ही दे सकती है।

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