डिजिटल तो बन गये, अब कहां की बारी

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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट पेश किया। इस बजट ने पिछले एक सौ अट्ठावन सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। क्योंकि अब से पहले जितने भी बजट पेश हुए वे एक ब्रीफकेस में हुआ करते थे। परंतु अबकी बार का बजट एक बही खाते की तरह है। वैसे भी विश्लेषकों का भी कहना है कि यह बजट कम बहीखाता ज्यादा दिख रहा है। आजादी के बाद अब तक हुए चुनावों ने भी रिकॉर्ड तोड़ दिये। यह हम सब देशवासियों के लिए बड़ी खुशी की बात है। आगे देश की हर समस्याओं से जूझ रहे देशवासियों के रिकॉर्ड टूटनें के असार हैं। इससे तो यही बात प्रतीत होती है कि क्या वास्तव में हम डिजिटल इंडिया में पहुंच गये हैं। पिछले सत्तर सालों से हमारा यही सपना था कि हम कब डिजिटल होंगे लो यह सपना भी पूरा होता दिख रहा है। इसमें कोई दिखावे की बात नहीं रह गई। डिजिटल इंडिया यानी सबका साथ, सबका विकास यह बहुत ही अच्छा हो रहा है और आगे भी यही उम्मीद की जा सकती है।

अब हमारे देश में न तो कोई किसान प्राकृतिक आपदा के कारण आत्महत्या नहीं करेगा। हर नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य का भरपुर लाभ मिलेगा जिसका वह हकदार है। बेरोजगारों को अब चिंता करने की आवश्यकता नहीं हैं। अब हमारी सरकारों के पास पेंशन देने की सुविधाएं हैं। अब हर वर्ग का ख्याल रखा गया है। चाहे वह बुजूर्ग हो, नवयुवक हो, विधुर-विधवा, बेराजगार हो। अब ऐसे में जब बिना कमाये ही घर बैठे पेंशन मिलेगी तो काम करने की जरूरत क्या है। पेंशन भी इतनी कि यदि कोई पढ़ा-लिखा बेरोजगार युवक-युवती किसी संस्थान में पांच-छह हजार महीनेवार कमा लेता है उससे ज्यादा तो उसे पेंशन तो हमारी सरकारे देंगी। यह तो रही तरक्की की बात। इससे भी अच्छी बात हमारे लिये यह है कि हमारे देशवासी राष्ट्रवाद को भूल गये थे अब हम सबके पास राष्ट्रवाद हैं यानी अब हम पूर्ण रूप से राष्ट्रवादी हैं।

अब दूसरी बात गौर करने वाली यह है कि हमारी सरकारे जबरन रिटायरमेंट कर रही हैं। अब तक लाखों लोगों को सरकार ने बाहर रास्ता दिखा चुकी हैं। वहीं दूसरी तरफ कर्मचारी की रिटायरमेंट उम्र सत्तर साल करने की योजना चल रही है। तीसरी बात यह है कि अधिकांश सरकारी संस्थाओं को प्राइवेट सेक्टर में तब्दील कर रही है करने जा रही है। बात कुछ समझ नहीं आ रही है। वास्तव में अब भारत डिजिटल तो बन ही जायेगें। परंतु कहीं इससे भी ऊपर पहुंचने के सपने हमारी लिये सरकार ढूंढ रही है। क्योंकि हम चांद पर तो सत्तर साल पहले ही पहुंच चुके हैं। पता नहीं अबकी बारी कहां की न्यारी। क्योंकि सरकार ने जो बजट पेश किया है उसमें बीस करोड़ बेराजगार युवाओं को रोजगार दिलाने की कवायद बरकरार है। इसमें बहुत अपार ऐसी संभावनाएं दिखाई देती हैं जो जमीन से जुड़ी हैं। इसमें गरीबजन को न्यायिक प्रक्रिया के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। जन स्वास्थ्य संबंधी बातों पर विशेष ध्यान रखा गया है। देश में जितने भी केंद्रीय विद्यालय हैं उन सब में 25 प्रतिशत गरीब वर्ग का जो कोटा है उसमें अब गरीबों के बच्चों को भी प्रवेश मिल सकेगा जिससे वे भी केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे।

देश में नारी के सम्मान से जुड़ी बातों का भलीभांति ख्याल रखा गया है। क्योंकि हमारा देश डिजिटल हो गया है। अब ऐसे में हम सबका दायित्व भी बनता है कि इस बजट का स्वागत करें। बजट से यह बात बिल्कुल साफ दिखती है कि विगत पांच सालों में आर्थिक विकास दर धरातल पर कितनी फलफूल रही है। वैसे भी हमारा देश जितना कमाता है उससे तीन सौन सौ गुणा व्यय होता है। ऐसे में सरकार में वास्तव में ही बेहतर कार्य कर रही है। क्योंकि जो कर्मचारी साठ-बासठ साल में रिटायरमेंट हो जाता था उसकी उम्र सत्तर साल करने की उम्मीद की जा रही है। अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है हम सबने जो बेहतर भविष्य अपने बच्चों के संवार रखे हैं उनका क्या होगा। दूसरी बात यह है कि सरकारें काम नही ंतो नौकरी नहीं के तहत रिटायरमेंट उम्र से पहले ही लाखों कामगारों को घर पर भेज दिया है। वैसे हमारी सरकार साठ करोड़ युवाओं को नये-नये सपने रोजगार के दिखा रही है। ऐसे में बा तपच नहीं रही कि रोजगार को लेकर हमारी सरकारें कितनी चिंतित हैं।

बजट में कामगाजी महिलाओं के साथ-साथ आम महिलाओं को पांच रुपये तक कम बैलेंस पर भी अपने बैंक खाते से निकाल सकती है। यह बहुत ही अच्छी बात हो सकती है। परंतु यह बात इसलिये हजम नहीं हो रही है कि सरकारी पैसा आदमी जल्दी से हजम नहीं कर सकता है। क्योंकि बैंक मरे हुए पर भी ब्याज लगाती है। उसके आने वाली जनरेशन से वसूलती है। अब ऐसे समय में हमारे बैंक इतने मेहरबान कैसे हो गये। विगत वर्षों से सड़क से लेकर यह बात उठती आई है कि विदेशी में काला धन इतना जमा है जिससे आम आदमी की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी समस्याओं के साथ-साथ नवयुवकों का भविष्य बेहतर होगा। अब कहां गया वह कालाधन जब हमारे रहनुमा चुनावों से पहले गली-गली मौहल्लों यह कहते हुए नहीं थकते थे कि यदि हमारी सरकार बन गई तो हम विदेशों में जमा कालाधान वापस लायेंगे। इस पर अब संसद में कोई जिक्र तक नहीं होता। हम गोल तो मुद्दे भी गोल हो गये। यानी मौसम के साथ मुद्दे भी बरसात में बह गये। जबकि होना तो यह चाहिए था कि साठ करोड़ नौजवानों को रोजगार के नये अवसर मिलने चाहिए थे।

अब ऐसे में जब रिटायरमेंट सत्तर सालों में होगा तो हमारी आने वाली नई जनरेशन कहां जायेगी। सबका साथ, सबका विकास का नारा पूरे विश्व में गूंजा। इससे नई जनरेशन को लगा कि वास्तव में हम नये भारत की ओर बढ़ रहे हैं। डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहे हैं। यह कहने वाले ही इस बात को धराशाही करने वाले हमारे रहनुमा ही हैं। पिछले कुछ सालों में देश के कुछ उद्योगपतियों को इससे बहुत कुछ मिला है। परंतु आज भी देश आज भी शिक्षा प्राप्त करने के लिये हमारे पास डिग्री कालेज नहीं हैं। क्योंकि हमारे बच्चे मेहनत करके इंटर तक की शिक्षा तो प्राप्त कर लेते हैं। परंतु उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये इधर-उधर भटकना पड़ता है और यदि वास्तव में ही सरकार को महिलाओं की इतनी फिक्र है तो उन्हें भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर मिलने चाहिएं। और तो और ऐसे समाचार मिलें हैं कि 2030 तक 3.5 करोड़ रोजगार ग्लोबल वार्मिंग के चलते कम हो जायेंगे। क्योंकि इस बीच ग्लोबल वार्मिंग का खतरा पूरे संसार पर मंढरा रहा है। अब ऐसे में आप ही सोच समझ सकते हैं आखिर हमारी नई जनरेशन का भविष्य क्या होगा इसे तो आने वाला समय ही बतायेगा। परंतु हम सबको मिलकर अपने उद्धेश्य से नहीं भटकना चाहिए।

– सुदेश वर्मा,
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेखक के निजि विचार हैं

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