विवेकानंद रॉक मेमोरियल तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर में स्थित प्रसिद्ध स्थल है। सन 1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैरकर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस सुनसान स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए मार्ग दर्शन मिला था। यहां बहुत ही सुंदर मंदिर के रूप में विवेकानंद स्मारक भवन बनाया गया है। विवेकानंद जयंती पर बहुत से लोग यहां आते हैं। इस बार स्वामी विवेकानंद जयंती रविवार 12 जनवरी यानी आज है। जानते हैं स्वामी विवेकानंद से जुड़ी इस जगह की खास बातें। वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि 1893 में विश्व धर्म सभा में शामिल होने से पहले विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैरकर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें वन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ था। स्वामी विवेकानंद के संदेशों को साकार रूप देने के लिए ही 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया से लोग समुद्र की लहरों से घिरी इस विरासत को देखने के लिए आते हैं। अप्रैल में पडऩे वाली चैत्र पूर्णिमा पर यहां चन्द्रमा और सूर्य दोनों एकसाथ एक ही क्षितिज पर आमने-सामने दिखाई देते हैं। इस स्मारक का प्रवेश द्वार अजन्ता तथा एलोरा गुफा मन्दिरों के समान है जबकि इसका मण्डपम बेलूर (कर्नाटक) के श्री रामकृष्ण मन्दिर के समान है। 70 फीट ऊंचा गुंबद: यह विवेकानंद स्मारक भवन बहुत ही सुंदर मंदिर के रूप में बनाया गया है। इसका मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प अजंता-एलोरा की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। नीले तथा लाल ग्रेनाइट के पत्थरों से निर्मित स्मारक पर 70 फीट ऊंचा गुंबद है। यह समुद्रतल से करीब 17 मीटर की ऊंचाई पर एक पत्थर के टापू की चोटी पर स्थित है। यह स्थान 6 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। यह स्मारक 2 पत्थरों के शीर्ष पर स्थित है और मुख्य द्वीप से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है। जो समुद्र के भीतर दूर से ही दिखाई देता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय बहुत ही सुंदर लगता है।
याददाश्त थी तेज: स्वामीजी के बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि उनकी याददाश्त बहुत तेज थी। वे बहुत ही जल्दी पूरी किताब पढ़ लेते थे और किताब की हर बात उन्हें याद रहती थी। स्वामीजी की याददाश्त के संबंध में एक प्रसंग काफी प्रचलित है, जिसमें उन्होंने अपनी तेज याददाश्त का रहस्य बताया है। जानिए ये प्रसंग-बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद देश भ्रमण में थे। साथ में उनके एक गुरु भाई भी थे। स्वाध्याय, सत्संग और कठोर तप का अविराम सिलसिला चल रहा था। जहां कहीं अच्छे ग्रंथ मिलते, वे उनको पढऩा नहीं भूलते थे। किसी नई जगह जाने पर उनकी सब से पहली तलाश किसी अच्छे पुस्तकालय की रहती थी। एक जगह एक पुस्तकालय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया। उन्होंने सोचा, क्यों न यहां थोड़े दिनों तक डेरा जमाया जाए। उनके गुरु भाई उन्हें पुस्तकालय से संस्कृत और अंग्रेजी की नई-नई किताबें लाकर देते थे। स्वामीजी उन्हें पढ़कर अगले दिन वापस कर देते। रोज नई किताबें वह भी बहुत अधिक पृष्ठों वाली इस तरह से देते और वापस लेते हुए उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हो गया।
उसने स्वामीजी के गुरु भाई से कहा, क्या आप इतनी सारी नई-नई किताबें केवल देखने के लिए ले जाते हैं। यदि इन्हें देखना ही है तो मैं यूं ही यहां पर दिखा देता हूं। रोज इतना वजन उठाने की क्या जरूरत है? लाइब्रेरियन की इस बात पर स्वामीजी के गुरु भाई ने गंभीरतापूर्वक कहा कि जैसा आप समझ रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है। हमारे गुरु भाई विवेकानंद इन सभी पुस्तकों को पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं। फिर वापस करते हैं। इस उत्तर से लाइब्रेरियन हैरान हो गया। उसने कहा, यदि ऐसा है तो मैं उनसे जरूर मिलना चाहूंगा। अगले दिन स्वामीजी उस लाइब्रेरियन से मिलने पहुंचे और कहा महाशय, आप हैरान न हों। मैंने न केवल उन किताबों को पढ़ा है, बल्कि उनको याद भी कर लिया है। इतना कहते हुए स्वामीजी ने वापस की गई, कई किताबों के महत्वपूर्ण अंशों को शब्द सहित सुना दिया। लाइब्रेरियन चकित रह गया। उसने उनकी याददाश्त का रहस्य पूछा। स्वामीजी बोले, अगर पूरी तरह एकाग्र होकर पढ़ा जाए, तो चीजें दिमाग में अंकित हो जाती हैं। मगर इसके लिए जरूरी है कि मन की धारण शक्ति अधिक से अधिक हो और वह शक्ति ध्यान और अभ्यास से आती है। जो लोग तेज याददाश्त चाहते हैं, उन्हें रोज ध्यान करना चाहिए और एकाग्र होकर पढऩा चाहिए।