देश में जाति के आधार पर जनगणना कराये जाने का मुद्दा केंद्र की मोदी सरकार के लिए थोड़ा पेचीदा होता जा रहा है क्योंकि अब बिहार बीजेपी के बड़े नेता भी इस मसले पर विपक्षी दलों के साथ आ गए हैं. हालांकि सरकार इसे कराने के नफे-नुकसान के हर पहलू से सोच रही है और शायद यही वजह है कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में राज्य की 11 पार्टियों के नेताओं की बातों को गौर से सुना तो जरूर लेकिन कोई आश्वासन नहीं दिया. इस प्रतिनिधमंडल में बीजेपी के कोटे से बिहार सरकार में मंत्री बने जनक राम भी शामिल थे.
दरअसल, बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में हुए चुनावों में अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी के वोट बैंक में बेहद तेजी से सेंध लगाते हुए उसे अपने पक्ष में किया है. लिहाज़ा, बीजेपी व संघ को एक खतरा ये लगता है कि जातिगत जनगणना कराने से कहीं ये वोट बैंक उससे छिटककर फिर से क्षेत्रीय पार्टियों की झोली में न चला जाये. हालांकि संघ ने अभी तक इस पर अपनी कोई राय जाहिर नहीं की है.
ये भी सच है कि राज्यों के जातीय समीकरण के लिहाज से बीजेपी को वहां तो ये मुद्दा रास आता है लेकिन केंद्र के स्तर पर अगर वह जातिगत जनगणना के समर्मथ में खुल कर सामने आती है, तो इससे देश भर में उसका अगड़ी जातियों का यानी ‘अपर कास्ट’ वोट बैंक छिटकने का खतरा भी हो सकता है. क्योंकि जातिगत जनगणना कराने का मतलब है कि आरक्षण के मुद्दे को एक बार फिर से तूल देना और हक़ीक़त यही है कि ‘अपर कास्ट’ ने आरक्षण के मुद्दे का हमेशा विरोध किया है. उनको लगता है कि जातिगत जनगणना से आरक्षण बढ़ेगा, जिसका सबसे ज़्यादा नुक़सान ‘अपर कास्ट’ को ही होगा. इसलिये मोदी सरकार के लिए ये मुद्दा फिलहाल गले की फांस बनता नज़र आ रहा है, लेकिन सियासत के लिए इसे निगलने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं और वहां ये एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि सपा नेता अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुलकर इसकी वकालत की है. हालांकि संसद में कांग्रेस भी जातिगत जनगणना का समर्थन कर चुकी है. इसलिये राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बीजेपी को इस मुद्दे पर समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. लिहाज़ा, आज हुई इस मीटिंग के बाद एक संभावना ये बनती भी दिख रही है कि केंद्र सरकार इस पर राजी हो सकती है. चूंकि यूपी के चुनावों में बीजेपी इसे अपने लिए ‘गेम चेंजर’ बनाना चाहेगी, इसलिये हो सकता है कि पीएम मोदी इसका ऐलान करने के लिए किसी खास मौके का इंतज़ार कर रहे हों.
जातिगत जनगणना के समर्थन में बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के सांसद सुशील कुमार मोदी ने जिस तरह से कई ट्वीट किए हैं, उससे भी इशारा मिलता है कि केंद्र सरकार इस रास्ते पर आगे बढ़ रही है. क्योंकि ऐसे नाजुक मसले पर किसी सांसद की अकेले इतनी हिम्मत नहीं कि वह पार्टी आलाकमान की मर्ज़ी के बगैर लगातार छह ट्वीट करके अपनी ही सरकार के लिए मुसीबत पैदा कर दे. उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा, “भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही, इसलिए हम इस मुद्दे पर विधान सभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं.”
वैसे यह बताना भी जरूरी है कि केंद्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के वक़्त साल 2011 में भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने जाति जनगणना के पक्ष में संसद में पार्टी का पक्ष रखते हुए इसकी जोरदार वकालत की थी. तब अन्य दलों ने भी इस मुद्दे पर बीजेपी का साथ देते हुए सरकार को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया था. उस समय केंद्र सरकार के निर्देश पर ही ग्रामीण विकास और शहरी विकास, इन दो मंत्रालयों ने सामाजिक, आर्थिक व जातीय सर्वेक्षण कराया था लेकिन तब उसमें करोड़ों त्रुटियां पाई गईं. क्योंकि सर्वेक्षण अभियान से जुड़े लोगों को पर्याप्त ट्रेनिंग ही नहीं दी गई थी. उसका नतीजा ये हुआ कि जातियों की संख्या लाखों में पहुंच गई. ऐसी अनेकों गड़बड़ियों व गलतियों के कारण उस सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. लिहाज़ा, उसे वह जनगणना का हिस्सा नहीं माना गया था.
नरेंद्र भल्ला
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)