जवाहरलाल नेहरु वि.वि. के सैकड़ों छात्रों ने जो शिक्षा मंत्री डा. रमेश निशंक को कल घंटों घेरे रखा है, यह बड़ी खबर बनी। आजकल मैं मुंबई में हूं। यहां के अखबारों में भी इस खबर को काफी प्रमुखता मिली है। कुछ दिन पहले कलकत्ता में भी यही हुआ था। वहां भी विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक मंत्री को कई घंटों घेरे रखा था। राज्यपाल जगदीप धनखड़ के सीधे हस्तक्षेप से वह घेराबंदी खत्म हुई।
ज.ने.वि. में उप-राष्ट्रपति वैंकय्या नायडू अगर थोड़ी देर और रुक जाते तो वे भी घंटों घिरे रहते। वे दीक्षांत समारोह में पीएच.डी. की उपाधियां बांटने गए थे। दीक्षांत समारोह में मर्यादा का पालन कैसे हुआ है, यह सारे देश ने देखा है। मैं स्वयं ज.ने.वि. के सबसे पहले पीएच.डी. छात्रों में से हूं। हमारा सबसे पहला दीक्षांत समारोह 1971 में हुआ था। उसकी भव्यता और गरिमा मुझे आज भी मुग्ध करती है लेकिन यह दीक्षांत समारोह क्या संदेश दे रहा है ?
मेरी यह समझ में नहीं आया कि उप-कुलपति जगदेशकुमार ने छात्र प्रतिनिधि मंडल से मिलने से मना क्यों किया ? मान लें कि छात्र संघ के चुनाव में जीते हुए ज्यादातर पदाधिकारी वामपंथी और भाजपा-विरोधी हैं तो भी क्या हुआ ? यदि वे अपने छात्रावास की अचानक बढ़ी हुई फीस पर अपना विरोध जताना चाहें तो उन्हें क्यों नहीं जताने दिया जाता ?
ज.ने.वि. के लगभग आधे छात्र गांव, गरीब और पिछड़ी जातियों के हैं। उनके लिए हजार-दो हजार रु. महिने का बढ़ा हुआ खर्च भी भारी बोझ है। उनकी बात सुनकर उन्हें समझाया-बुझाया जा सकता था। कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता था। छात्रों को भी सोचना चाहिए कि छात्रावास के एक कमरे का किराया सिर्फ 20 रु. माहवार हो तो इसे कौन मजाक नहीं कहेगा ?
आज से 50-55 साल पहले सप्रू हाउस (बाद में ज.ने.वि.) छात्रावास के कमरे का किराया मैं 40 रु. माहवार देता था और भोजन का 80 रु. माहवार ! किराए और भोजन का भुगतान तो निश्चित ही बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन उसे एक दम कई गुना कर देना भी ठीक नहीं है।
ज.ने.वि. शिक्षा और अनुसंधान का श्रेष्ठ केंद्र है। वहां से आजकल इसी तरह की खबरें आती रहती हैं। यह चिंता का विषय है। ज.ने.वि. मेरा विश्वविद्यालय है। मुझे इससे बहुत लगाव है। मैं इस विश्वविद्यालय को विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में ऊंचा उठते हुए देखना चाहता हूं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं