राजस्थान प्रकरण को लेकर कांग्रेस आन्दोलित है। सोमवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने देश के सभी राजभवनों पर प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया। विपक्ष का आरोप है कि मध्यप्रदेश में विधानसभा का सत्र बुलाया जा सकता है तो राजस्थान में यों नहीं हो सकता। विपक्ष का यह भी आरोप है कि महाराष्ट्र में आननफानन में सुबह 6 बजे शपथ दिला दी गई। मध्यप्रदेश, गोवा व कर्नाटक में ही जोड़तोड की राजनीति से सरकार बनायी गई थी। राजस्थान में जो हो रहा है वह स्वस्थ लोकतान्त्रिक नहीं हो सकता। हर पक्ष अपना हित साध रहा है। सबसे त्रुटिपूर्ण परपरा शुरू हुई है कि विधायकों को किसी दूसरे प्रदेश में ले जाकर रखा जाता है। भले ही विधायक अपनी मर्जी से रहे परन्तु मात्र अपने पाले में रखे जाने के लिए दूसरे प्रदेश में इकट्ठा रखना कहां तक उचित है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विपरीत ही कहा जा सकता हैं जनप्रतिनिधि जनता का प्रतिनिधि होता है। जनता ने उसे अपने प्रतिनिधित्व के लिए चुना है। और पांच साल के लिए अवसर दिया है।
परन्तु अपने राजनीतिक प्रतिबद्धता के चलते चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना जनता के समझ से परे है। इस पर विराम लगाना चाहिये।
जब सरकार अस्थिर होती है तो सभी पक्ष अपने हित साधने के फिराक में लग जाते हैं। बसपा ने अपने विधायकों को गहलौत सरकार के खिलाफ मत देने का आदेश जारी किया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति से हैं। अनुसूचित जाति की रहनुमा बनने वाली बसपा आज अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री के खिलाफ है। राजस्थान में कांग्रेस नेता सचिन पायलट के नेतृत्व में कुछ कांग्रेसी विधायकों ने बगावती तेवर अपना रखा है। कांग्रेस ने राजस्थान के राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाया है। साथ में यह आरोप भी लगाया है कि वे दिल्ली के इशारे पर काम कर रहे हैं। राहुल गांधी ने भी जनता से आवाज उठाने की अपील की है। इसी तरह कुछ दिन पूर्व ही मध्यप्रदेश में कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमलनाथ की कुर्सी चली गई। यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आने के कारण सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा की सरकार बन गई। कांग्रेस का आरोप है कि यही खेल अब राजस्थान में खेला जा रहा है। इस समय देश कोरोना की महामारी झेल रहा है।
हजारों की तादात में लोग रोज संक्रमित हो रहे हैं। ऐसे में अस्थिर सरकार होने के कारण व्यवस्थाओं में शिथिलता आ सकती है। मध्य प्रदेश में अस्थिरता के कारण व्यवस्था में शिथिलता का आरोप लग चुका है। राजनीतिक कारणों से संक्रमण के बचाव व इलाज में कही कोई कमी नहीं आनी चाहिये। इसके लिए इस प्रकरण का जितनी जल्दी पटाक्षेप हो उतना ही अच्छा है। नहीं तो राजनीतिक उठा-पटक का खामियाजा राजस्थान की जनता को न भुगतना पड़ जाय। राजनीतिज्ञों को भी सोचना चाहिए कि आपदा की घड़ी में सरकार बनाने व बिगाडऩे से जरूरी जनता को कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाना है। अत: इस प्रकरण के पटाक्षेप के लिए संविधान में जो भी व्यवस्था दी गई हो उसके तहत निपटारा किया जाना चाहिये। राज्यपाल को भी चाहिये कि संवैधानिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत अपना निर्णय त्वरित ले। बहुमत का परीक्षण कराकर जिसका बहुमत हो वो सरकार बनाये। संवैधानिक प्रक्रिया व संविधान के अनुसार निर्णय को सभी पक्षों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिये।