जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अंग्रेज को सबक सिखाया

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

बात उस समय की है जब भारत गुलाम हुआ करता था। एक दिन की बात है भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नाव पर सवार हो कर अपने गांव जा रहे थे। नाव में और भी कई लोग सवार थे। राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बगल में एक अंग्रेज बैठा हुआ था। वह बार-बार राजेन्द्र बाबू की तरफ हेय दृष्टि से देखता और मुस्कराने लगता। अभी कुछ ही वक्त बिता ही था की अंग्रेज ने एक सिगरेट जला ली और उसका धुआं जानबूझकर राजेन्द्र बाबू की ओर फेंकता।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

कुछ देर तक तो राजेन्द्र बाबू उनसे हरकतों को चुपचाप देखते रहे। जब अंग्रेज कुछ ज्यादा ही ज्यादती करने लगा तब उन्हें लगा कि अब उसे सबक सिखाना जरूरी है। कुछ सोचकर राजेन्द्र बाबू अंग्रेज से बोले ‘महोदय, यह जो सिगरेट आप पी रहे हैं क्या आपकी है?’ यह प्रश्न सुनकर अंग्रेज व्यंग्य से मुस्कराता हुआ बोला मेरी नहीं तो क्या तुम्हारी है? ‘महंगी और विदेशी सिगरेट है।’

अंग्रेज के इस वाक्य पर राजेन्द्र बाबू मुस्कराकर बोले, जी बिल्कुल यह महंगी सिगरेट आपकी ही है। तो फिर इसका धुंआ भी तो आपका ही हुआ न। उस धुएं को आप हम पर क्यों फेंक रहे हैं? आपकी सिगरेट आपकी चीज है। इसलिए अपनी हर चीज संभाल कर रखे। इसका धुआं हमारी और नहीं आना चाहिए। अगर इस बार धुआं मेरे ओर मुड़ा तो सोच लेना की आप अपने जबान से ही मुकर जायेंगे। आपकी चीज आपके पास ही रहना चाहिए, चाहे वह सिगरेट हो या धुआं।

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