भ्रष्ट मनमोहन सरकार से मुक्ति के लिए अन्ना हजारे ने सभी के हाथ में राष्ट्रीय ध्वज पकड़ा दिया था। जिस से देश में कांग्रेस के खिलाफ क्रान्ति की ज्वाला पैदा हुई और कांग्रेस भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार सब से निचले पायदान पर चली गई। कांग्रेस समर्थक वामपंथी दलों का पश्चिम बंगाल का किला तो पहले ही ढह गया था।उनकी ताकत सिर्फ जेएनयू में बची थी, वहीं से विचारधारा की लड़ाई नए सिरे से शुरू करने के लिए हताश कयुनिस्टों ने युवाओं को आकर्षित करने वाला भूख-गरीबी-अशिक्षा से आज़ादी का नारा दिया। अपनी ताकत को बढाने के लिए वामपंथियों ने अपने साथ उन मुस्लिम युवकों को भी जोड़ लिया , जिनके दिमाग में भारत के खिलाफ जहर भरा था। नतीजतन आज़ादी का वह नारा बिगड़ कर कश्मीर की आज़ादी से होता हुआ , हिन्दुओं से आज़ादी तक जा पहुंचा। आज हालत यह है कि राष्ट्रवादी अन्ना हजारे का पकडाया राष्ट्रीय ध्वज और वामपंथी कन्हैया का दिया आज़ादी का नारा भारत के खिलाफ भारत की एकता तोडऩे के लिए इस्तेमाल हो रहा है।
शाहीन बाग़ से एक नया वीडियो सामने आया है , जहां धरने पर बैठी औरतें कह रही हैं कि संसद और सुप्रीमकोर्ट हिन्दुओं के लिए काम कर रही हैं , जिस दिन हम बहुसंख्यक हो गए , उस दिन हिन्दुओं को पटक पटक कर मारेंगे। पहले कुछ बच्चियों का वीडियो सामने आया था और अब इन महिलाओं का वीडियो, यह धरने पर बैठे लोगों की मानसिक सच्चाई है , जो मेन लाईन मीडिया को दिखाई नहीं दे सकती, दिखाई देती है तो दिखा नहीं सकते। क्योंकि मेन लाईन मीडिया सांप्रदायिक हिंसा और विद्वेष को बढावा देने से अभी भी बचता है। शाहीनबाग़ को राष्ट्रीय आन्दोलन बताने औरम लोगों को आकर्षित करने के लिए जन गन मन गाया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाते हैं। भारत का नक्शा और शहादत का प्रतीक इंडिया गेट भी बनाया गया है। जिस में 15 दिसबर को नागरिकता क़ानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करते हुए मारे गए मुस्लिमों के नाम लिखे हैं। दिल्ली के जामिया मिलिया और उत्तर प्रदेश के अनेक स्थानों पर हिंसा और आगजनी की वारदातें हुई थीं , जिन के पीछे मुस्लिम संगठन पीएफआई की भूमिका की जांच हो रही है।
भारत के बहुसंख्यक हिन्दू मानते हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि यह बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता देने का रास्ता रोकता है। सच यह है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस नागरिकता संशोधन क़ानून विरोधी आन्दोलन को खड़ा नहीं किया। उसकी तैयारी पहले से पारित दो कानूनों और अयोध्या पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद से चल रही थी। ट्रिपल तलाक क़ानून की कुछ धाराओं और 370 हटाए जाने के तरीके पर भले ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल संसद में सहमत नहीं थे , लेकिन इन दोनों मुद्दों के मूल पर उन की सहमति थी। अयोध्या पर आए रामजन्मभूमि सबन्धी सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर भी किसी राजनीतिक दल को कोई आपत्ति नहीं थी , इसलिए कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल को राष्ट्रहित में मुसलमानों को समझाने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन उस ने 14 दिसबर को नागरिकता संशोधन क़ानून को आधार बना कर मुसलमानों को भडकाने में अहम भूमिका निभाई।
उनके दिलों में संसद और सुप्रीमकोर्ट के खिलाफ पहले से जहर भरा जा रहा था , जो शाहीन बाग़ में हिन्दुओं के खिलाफ नफरत और आज़ादी के नारों में दिखाई दे रहा है। जेएनयू से शुरू हुआ आज़ादी का नारा जहां मौजूदा सरकार विरोधियों को आकर्षित करता है तो वहीं देश के एक बड़े तबके के लिए नफरत का नारा बन गया है। वह नफरत इतनी ज्यादा है कि गुरूवार को एक हताश हिन्दू युवक पिस्तौल लेकर धरने में घुस गया और ये लो आज़ादी कहते हुए गोली चला दी। भाजपा संघ विरोधियों को छोड़ कर आम हिन्दू नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ नहीं है। शुरू शुरू में आन्दोलन के साथ जुड़े हिन्दू युवक युवतियां भी अब समझ गए हैं कि आन्दोलन धर्मनिरेपक्षता के लिए नहीं बल्कि हिन्दू विरोध की मानसिकता से ग्रस्त है। शहर शहर में धरने पर बैठी काले बुर्कों की भीड़ अब उन्हें आकर्षित नहीं करती , अलबत्ता उन्हें आन्दोलन के पीछे खिलाफत-2 की भनक दिख रही है। उन्हें लगने लगा है कि यह आन्दोलन नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ नहीं , बल्कि भविष्य में आने वाले नागरिकता रजिस्टर और जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून के खिलाफ है, क्योंकि उनका मकसद बहुसंख्यक बन कर पटक पटक कर मारना है।
अजय सेतिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)