चीन में सच बोलने की सजा

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वामपंथी लोगों व सरकारों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आम आदमी व उसके अधिकारों को लगातार दुहाई देने वाले यह लोग सच सुनना पसंद नहीं करते हैं। अगर यह सच उनके खिलाफ हो तो फिर पूछना ही क्या। सच बोलने वाले को हर कीमत पर चुप करवाने की कोशिश होती है। नवीनतम मामला चीन का है। जहां की वामपंथी सरकार ने कोरोना वायरस की मौजूदगी का खुलासा करने वाले वहां के 34 वर्षीय युवा डॉक्टर ली वेनलियांग की बात को अहमियत देने की जगह उन पर झूठ बोलने का आरोप लगा दिया था। वह खुद भी इस रोग का शिकार होकर दुनिया छोड़ गए। डा. ली आंखों के डाक्टर थे। उन्होंने सबसे पहले अपने साथी डाक्टरों को चेतावनी भेजी थी। उन्होंने 30 दिसंबर को अपने साथी डाक्टरों को एक संदेश भेजा था जिसमें लिखा था कि वे रोगग्रस्त होने से बचने के लिए विशेष ध्यान दें। क्योंकि उनकी नजर में सार्स बीमारी सरीखा ही वायरस आम है जिसमें 2003 में महामारी फैलायी थी। इस घटना के चार दिन बाद उसे वुहान के जन सुरक्षा ब्यूरो में बुलवाया गया।

वहां उससे एक पत्र पर दस्तखत करवाए गए, जिसमें लिखा था कि उसने झूठी टिप्पणी करके समाज में दहशत फैलाई है। पुलिस ने उसके उन सात साथियों से भी यही लिखवाया जिसमें कि उसके पत्र को अपने दूसरों दोस्तों को भेजा था। वहीं 10 जनवरी को डा. ली खुद इस बीमारी का शिकार हो गए। उन्हें पहले खांसी आने लगी व अगले दिन उन्हें तेज बुखार हो गया व उन्हें इसके अगले दिन अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। यहां डाक्टरों को यह पता लगाने में 20 दिन लग गए कि उन्हें कोरोना वायरस के कारण रोग हो गया व गुरुवार को उनका इस रोग के कारण निधन हो गया। अब पूरे चीन में उनकी मौत के बाद इस मामले का खुलासा करने को लेकर सरकार का विरोध शुरू हो गया। लोग सोशल मीडिया पर और ज्यादा पारदर्शिता बरते जाने की मांग कर रहे हैं। लोग सरकार से पूछ रहे हैं कि उसे बीमारी को गंभीरता समझने में इतना समय क्यों लगा? वह उस पर नियंत्रण पाने में नाकाम क्यों रही? हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो।

एक ने कहा है कि इस देश में सच को हमेशा झूठ की तरह प्रस्तुत किया जाएगा। ऐसा कब तक चलता रहेगा। हम लोग बहुत गुस्से में हैं। हमारा चीन की सरकार से विश्वास उठ गया है। हमें नहीं पता कि इस मौत को लेकर सरकार क्या महसूस करती है मगर हम लोग बहुत गुस्से में हैं। आप लोग कब तक झूठ बोलते रहेंगे। आपको हम लोगों से और क्या छिपाना है? मालूम हो कि डा. ली की मृत्यु को लेकर भी सरकार को फैसला करने में काफी समय लगा। पहले उसे गुरुवार में डेढ़ बजे मरा घोषित किया गया। जब वहां पर लोगों की नाराजगी देखने को मिली तो सरकार ने उन्हें जिंदा घोषित कर दिया।

फिर उनकी हालात गंभीर बताई जाने लगी। उन्हें दोबारा जिंदा साबित करने के लिए मशीनों के जरिए उनके दिल का धड़कना शुरू करके उन्हें फेफड़ों के बिना ही ऑक्सीजन दी जाने लगी। वहां सरकारी अधिकारी लगातार मौजूद रहकर डाक्टरों को बता रहे थे कि उन्हें क्या करना है। उन्हें तड़के 2.58 मिनट पर मृत घोषित किया गया। चीन की सुप्रीम कोर्ट तक ने इस मामले पर चीन की सरकार द्वारा बरती जाने वाली ढील की आलोचना की है। एक ने कहा है कि सरकार हमें न तो सच बोलने देगी और न ही सच का खुलासा करने पर जिंदा रहने देगी। हम लोग कोई कीड़े-मकौड़े नहीं है।

चीन में सच बोलने वालों को अफवाह फैलाने वाला कहा जाता है। डा. ली तो हमारे लिए एक सच बोलने का साहस रखने वाला हीरो था। उनकी मौत ने पूरे देश को गुस्से से भर दिया है। यहां के साहित्यकार, वकील व दूसरे बुद्धिजीवी खुलकर सरकार के खिलाफ बोलने लगे हैं। एक वकील ने कहा है कि लोग हाल की घटना से बेहद आहत है। मगर डरे हुए नहीं है। पूरा चीन यह खुलासा करने वाले दिवंगत डाक्टर की प्रशंसा कर रहा है। वहीं अपनी सरकार की नीतियों की ऐसी-तैसी कर रहे हैं। वहां अब तक इस रोग के कारण 1011 लोग मारे जा चुके हैं व करीब 4000 लोग इससे बुरी तरह से प्रभावित हैं।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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