चीन को कब तक बर्दाश्त करेगा हांगकांग

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हांगकांग पर दुनिया की निगाहे है? जानकार समझना चाह रहे है कि हांगकांग के नौजवान चीन की कम्युनिस्ट सत्ता की नाक में कब तक दम किए रहेंगे या बींजिग के कामरेड, राष्ट्रपति शी की सरकार हांगकांग को अंततः कब थ्येनआनमन चौक में बदलेगी? जैसा चीन है वैसा हांगकांग होगा या हांगकांग की आबोहवा चीन को भी बदलेगी? फिलहाल हांगकांग में जनता और खासकर नौजवान उद्दंडता, गुस्से में चीन की बदनामी वाले विरोध से बाज नहीं आ रहे है। वहां चीनी जनसंपर्क दफ्तर के बाहर दीवारे क्रांति के, उकसाने वाले नारों से भरी है। जैसे ‘रेवोल्युशन ऑफ द सेंचुरी’ और ‘चाइनीज कम्युनिस्ट ब्रिंग्स केऑस टू हांगकांग’।

ये नारे चीन के खिलाफ उसी के एक इलाके के लोगों का वह गुस्सा हैं जिससे दुनिया यह सोचते हुए हैरान है कि बीजिंग के कम्युनिस्टो पर इसका क्या असर हो रहा होगा? दुनिया वाकई हैरान है। कई लोग मान रहे है कि यह सदी की क्रांति है और चीनी कम्युनिस्टों को आगे यह सब बहुत भारी पड़ेगा जो हांगकांग को अशांति की ओर धकेला और नौजवानों को स्थाई बागी बना दिया।

हमेशा चमक-दमक बिखेरता बहुमंजिली इमारतों वाला एक महानगर जैसा चीन अधिकृत हांगकांग आज राजनीतिक क्रांति के केंद्र में तब्दील है। यह चीनी सरकार के खिलाफ वह जंग है जिसमें लोग अपनी अलग पहचान के लिए स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं, एक ऐसी क्रांति जिसने लोकतंत्र की अहमियत को लेकर दुनिया का ध्यान खींचा और विचार की जरूरत बनाई।

जनक्रांति का बिगुल 12 जून को तब बजा था जब स्थानीय संदिग्ध अपराधियों को मुख्य देश चीन को प्रत्यर्पित करने वाले एक कानून पर संसद में बहस शुरू हुई। हांगकांग की चीन-समर्थित सीईओ कैरी लैम ने इस कानून का यह कहते हुए बचाव किया कि यह हांगकांग की रक्षा के लिए है और यह देश को शरणार्थियों के रूप में घुसपैठ करने वालों से बचाएगा। लेकिन इस कानून के आलोचकों ने लोगों को याद दिलाया कि यह कानून हांगकांग की स्वायत्ता को कम करेगा और चीन की दखल को और ज्यादा बढ़ा देगा।

इस बारे में हांगकांग की डेमोक्रेटिक पार्टी के वाइस चेयरपर्सन लो किन हेई ने ईमेल के जरिए नया इंडिया से संवाद में बताया कि इस बिल ने लोगों में खौफ पैदा कर दिया है। आखिर इससे हांगकांग में किसी को भी गैर-राजनीतिक अपराध के लिए भी चीन के हवाले कर दिया जाएगा, जहां कानून का कोई शासन नहीं है। लोगों ने इस बात को समझा और फिर हांगकांग में छात्रों से लेकर वकीलों और घरेलू महिलाएं व नागरिक अधिकार संगठन सभी सड़कों पर आ गए। लोगों ने विरोध करते हुए आंदोलन को सिलसिलेवार शुरू कर सड़कों पर क्रांति सा माहौल बना दिया। अप्रैल में सवा लाख से ज्यादा लोगों ने इस कानून के खिलाफ बड़ा मार्च निकाला था। जून के शुरू में जब इस बिल पर मतदान होने जा रहा था, तब कोई दस लाख लोग सड़कों पर उतर आए। बारह जून को प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती देख हांगकांग की सड़कों पर हथियारों और आंसू गैस के गोलों से लैस काले हैलमेट लगाए सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू किया तो भारी मुठभेड हुई। आंसूगैस और रबड़ की गोलियां चली। अस्सी से ज्यादा लोग घायल हुए और कई घायलों को पुलिस ने अस्पतालों से गिरफ्तार किया।

हांगकांग शुरू से ही खास रहा है। शुरुआती डेढ़ सौ साल तक यह ब्रिटेन का उपनिवेश रहा। अंग्रेज यहां से चीन को हांगकांग को ट्रांसफर करके गए। और देश का स्वरूप एक देश, दो शासन प्रणाली (वन कंट्री टू सिस्टम) वाला हुआ। तब हांगकांग की जनता से इस बारे में राय-मशविरा नहीं हुआ था। ब्रिटेन-चीन का समझौता था तो काफी आकर्षक, लेकिन इसमें जमकर खामियां और विरोधाभास थे।

बुनियादी रूप से हांगकांग को एक देश की सीमाओं और अपनी कानून व शासन प्रणाली के रूप में काफी स्वायत्तता मिली हुई है। इसमें स्वतंत्र असेंबली सहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे नागरिक अधिकार भी हैं। लेकिन धीरे-धीरे हांगकांग को चीन का हिस्सा बनने की कीमत चुकानी पड़ी। ध्यान रहे हांगकांग के विदेश और रक्षा संबंधी सारे अधिकार यों भी चीन को मिले ही हुए है।

हांगकांग और वहां के नागरिकों ने अपनी पहचान चीन के साथ नहीं बल्कि एक अलग देश के रूप में कायम रखी और इस पर लोगों को गर्व भी है। अपनी अलग पहचान साबित करने के लिए ही इस देश के लोग हर साल एक जुलाई को (इसी दिन ब्रिटेन ने चीन को यहां की सत्ता सौंपी थी) हांगकांग के निवासी अपने अधिकारों के लिए मार्च निकालते हैं। मतलब हांगकांग की स्वतंत्र असेंबली और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मसला नागरिकों के लिए गौरव है तो चीन के लिए चुनौतीपूर्ण।

फिलहाल प्रत्यर्पण कानून को लेकर चीन के खिलाफ प्रदर्शन अब रोज की बात हैं। हालांकि इस प्रस्तावित बिल को फिलहाल किनारे कर दिया गया है लेकिन आंशकाएं अभी भी कायम है। प्रदर्शन की अगुआई में नौजवान पीढ़ी है। हांगकांग की नौजवान पीढ़ी का रूख दुनिया के लिए प्रेरणादायी हो गया है। इन्होने 2014 में पहली बार शांतिपूर्ण आंदोलन छेडा था। इसे- अंब्रेला मूवमेंट- के रूप में जाना जाता है। तब विश्वविद्यालय के हजारों छात्र छाते खोलकर सड़कों पर बैठते थे। आज के आंदोलन की तरह ही तब उस आंदोलन ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था और उसे भरपूर समर्थन मिला था। लेकिन हांगकांग और बेजिंग की सरकार ने इसकी घोर उपेक्षा की।

इस बार हालात पूरी तरह से अलग हैं। लू किन हेई ने इस बार के आंदोलन जिसमें अब नौजवान पीढ़ी से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं, के बारे कहा- जिस तरह से पांच लोगों ने प्रत्यर्पण कानून के विरोध में ऊंची इमारतों से छलांग लगा कर जान दी, उससे इस आंदोलन के मूड का पता चलता है और जैसा कि मेरा कहना है कि सरकार के रूख से लोग बहुत हताश हैं।

उस नाते प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ आंदोलन को एक जंग के रूप में देखा जा सकता है। हांगकांग के घटनाक्रम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंता जाहिर कर चुका है लेकिन इस चिंता में दम नजर नहीं आता। उलटे अमेरिका तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वाहवाही कर रहा है कि कैसे प्रदर्शनकारियों से निपट लिया गया। आज जब दुनिया में लोकलुभावनवाद का जोर है, लोकतंत्र एक बुरा शब्द हो गया है तो जनता की क्रांति जैसी बात भला कैसे वैश्विक समर्थन पा सकती है?

तभी आशंका है कि चीन क्या अपना ही रास्ता चुनेगा और उसी पर चलेगा, या फिर हांगकांग के लोग नई क्रांति के नए महानायक बनेंगे? एक डर है कि बीजिंग में विरोध आंदोलन करने वाले नौजवानों को चीनी सेना थ्येनआनमन चौक पर जैसा कुचला था क्या वैसा इतिहास दोहरा सकता है? 21 जुलाई को जब हजारों प्रदर्शनकारी बीजिंग दूतावास के एक दफ्तर पर पहुंचे और क्रांतिकारी नारों से उसकी दीवारों को रंग डाला इमारत पर अंडे फेंके और चीनी प्रतीकों को विकृत किया तो इस आंशका ने जोर पकड़ा कि चीन के कम्युनिस्ट नेता इस सबकों कैसे ले रहे होंगे? हांगकांग के लोग अपने अधिकारों और आजादी के लिए दीवाने हुए पड़े हैं और उसे हासिल करने के लिए वे किसी सीमा तक जाते लगते है। प्रदर्शनकारी यह भी मांग कर रहे हैं कि पिछली रैलियों में निहत्थे लोगों पर पुलिस ने जिस तरह से बर्बरता की है, उसकी जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए। इसके अलावा प्रदर्शनकारी कैरी लैम के इस्तीफे की मांग पर अड़े हैं, जबकि लैम पद नहीं छोड़ने की जिद पर अड़ी हुई हैं। राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के नाम पर केंद्रीय सरकार हांगकांग सरकार और पुलिस को पूरा समर्थन दे रही है। जैसे-जैसे हर दिन गुजर रहा है, हाला विकट होते जा रहे हैं। हालांकि लू किन हेई को अभी भी उम्मीदें हैं। वे कहते हैं- ‘कोई नहीं जानता कि नतीजा क्या होगा लेकिन वे पुलिस की गोली खाने या गिरफ्तार होकर जेल जाने को तैयार हैं। जो लोग सड़कों पर उतरे हैं वे हांगकांग को हांगकांग ही बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं, उसे चीन का कोई दूसरा शहर बनने देने के लिए नहीं।‘

श्रुति व्यास
लेखिका पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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