चीन के चौके के जवाब में भारत का छक्का

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चीन ने फिर चौका मारा है। उसकी चीनी महापथ की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना पिछले दिनों कुछ बदनाम होने लगी थी। कुछ राष्ट्रों ने चीनी मदद की कठोर शर्तों पर आपत्ति की थी तो कुछ राष्ट्रों ने उस योजना से अपने आप को अलग करने की घोषणा कर दी थी लेकिन इस बार चीन ने महापथ के दूसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एक दम नया पैंतरा मार दिया है।

उसने कहा है कि वह अरबों-खरबों रु. खर्च करके सिर्फ सड़कें बनाने का काम नहीं करेगा। वह चीन से लगाकर यूरोप तक सड़कें, पुल, बांध वगैरह तो बनाएगा ही लेकिन उसके साथ-साथ वह उन सहयोगी देशों की पोस्टल सर्विस, कीटनाशक औषधियों, सांस्कृति संपदा की रक्षा, भूकंप-निवारण, कला-संग्रहालयों का निर्माण-जैसे कई रचनात्मक कामों में भी सहयोग करेगा।

चीनी विदेश मंत्रालय ने ऐसे 283 मुद्दों की सूची जारी की है, जिनमें वह सक्रिय भागीदारी करेगा। भागीदारी का यह बड़ा प्रयोग सबसे पहले उन देशों के साथ होगा, जो भारत के पड़ौसी हैं। भारत ने इस चीनी महापथ सम्मेलन का पिछले साल भी बहिष्कार किया था और इस साल भी किया है। भारत के बहिष्कार का कारण यह है कि चीन पाकिस्तान के उस कश्मीरी हिस्से में भी अपनी सड़क बना रहा है, जिस पर भारत का वैधानिक दावा है। भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।

इस मामले में मेरी राय शुरु से यह रही है कि भारत को इस सम्मेलन में भाग लेना चाहिए था और अपने दृष्टिकोण को सारे राष्ट्रों के सामने रखना चाहिए था। हो सकता है कि चीन इससे सहमत नहीं होता लेकिन दूसरे क्षेत्रों में चीन के साथ सहयोग के नए आयाम खुल सकते थे। अब क्या हो रहा है ? भारत के अलावा सभी दक्षिण एशियाई देश चीन के चरणों में धोक दे रहे हैं और भारत खड़ा-खड़ा ताक रहा है। इन देशों के साथ चीन ने 13 द्विपक्षीय और 16 बहुपक्षीय समझौते किए हैं। ये समझौते महापथ-निर्माण से अलग हैं।

दूसरे शब्दों में भारत के पूरब और पश्चिम व उत्तर और दक्षिण में अब चीन की चोपड़ जमती जा रही है जबकि यह पहल भारत की तरफ से होनी चाहिए थी। चीन ने सभी देशों को आश्वस्त किया है कि वह उनकी संप्रभुता का सम्मान करेगा और उन्हें कर्ज के तले दबने नहीं देगा। ऐसा लगता है कि चीन भारत का सहयोग प्राप्त करने की भी इच्छा रखता है।

उसने सभी राष्ट्रों की संप्रभुता के साथ उनकी क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की भी बात कही है। कुछ ताजा चीनी नक्शों में पूरे कश्मीर को भारत में भी दिखाया गया है। यदि संभव हो तो चीन के साथ सहयोग का कोई रास्ता खुलना चाहिए, वरना पड़ौसी देशों के साथ भारत को चीन से बड़ी पहल करना चाहिए। चौके पर छक्का लगना चाहिए।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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