चाय की दुकान पर घमासान

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जब चुनाव चल रहे थे तो सारे विपक्ष ने कहा कि चुनावी गणित के हिसाब से मोदी जी चुनाव नहीं जीत सकते लेकिन उन्होंने कह दिया कि चुनाव कि चुनाव गणित से नहीं बल्कि केमस्ट्री से जीतेंगे और हुआ भी यही मोदी जी केमिस्ट्री के दम पर चुनाव जीत गए। जी हाँ केमिस्ट्री जिसे मैंने भी अपने छात्र जीवन में पढा़ था लेकिन हमेशा मेरे सर के ऊपर से गई लेकिन मैं गणित का अच्छा छात्र था और मेरे नंबर गणित में अच्छे थे पर केमिस्ट्री मे मैं औसत दर्जे का ही छात्र रहा और आज यही स्थिति मोदी जी के सामने है जो चुनावी केमिस्ट्री मे तो पास हो गए लेकिन अर्थव्यवस्था के गणित मे सफल होने के लिए जूझ रहे है। आज जब अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं चल रही है तो आज हर आदमी अपने आप को अर्थशास्त्री समझने लगा है हर गली, चौराहे, चाय की दुकान,पान की दुकान जहाँ देखो वही आपको अर्थशास्त्री मिल जायेंगे।

कुछ लोग तो ऐसे सलाह देते है जैसे मोदी जी इन्हीं की बात मान लेगें वो तो ठीक है कि सरकार अर्थव्यवस्था के संबंध मे जनता से आइडिया नही मगाँती नही तो लाखों नही करोड़ों आइडिया आ जाते और उन आइडिया की समीक्षा करने के लिए ही सरकार को एक अलग विभाग तक बनाना पड़ता। ऐसे ही मैं सुबह-सुबह एक चाय की दुकान पर पहुँचा जहाँ पहले से ही कुछ लोग चर्चा लगाए हुए थे और चर्चा चल रही थी देश की अर्थव्यवस्था के बारे मे और उन्हीं लोगों मे से एक सज्जन जिन्हें लोग शुक्ला जी बुलाते थे ने कहा कि देश में भयंकर मंदी आने वाली है और उन्होंने इसका जिम्मेदार सरकार को करार दे दिया। फिर क्या था यह सुनकर पास में बैठे भगत जी का गुस्सा पास में बन रही चाय के जैसे उबाल खाने लगा। भगत जी गुस्से में ऐसे तमतमा उठे कि मानों अब तो शुक्ला जी की खैर नहीं सरकार की बुराई सुनकर उनकी सांस जो मदमस्त हाथी की तरह चल रही थी अचानक से उस मृग की भाँति चलने लगी जिसका कोई सिंह पीछा कर रहा हो।

भगत जी शरीर मे खून का संचार इस कदर बढ़ गया कि अगर आज पाकिस्तान से युद्ध हो जाये तो अकेले भगत जी ही पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए काफी है। भगत जी ने कहा क्यूँ झूठ बोलते हो शुक्ला जी अर्थव्यवस्था तो इतनी अच्छी चल कि इतनी अच्छी किसी देश की नहीं चल रही है। मैं देखता हूँ कि उस चाय बनाने वाले के चेहरे पर कोई भाव नहीं था वो तो बस कडछी से अपनी चाय को शांत करने मे व्यस्त था। कितना निष्ठुर था वह इतने बढ़े मसले पर बात चल रही थी और उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। मैं चुपचाप उन लोगों के विचार सुनता रहा फिर मैंने सोचा कि चुप रहने में कोई फायदा नहीं क्योंकि चुप रहने के चक्कर में तो किसी पार्टी की सरकार चली गई थी। सो मैंने सोचा कि मुझे भी अपने विचार रखने चाहिए क्योंकि ये भारत देश है जहां फेंकने वाले को ही सुना जाता है। लेकिन मैंने बिल्कुल नहीं फेंका और मैंने माँ सरस्वती का ध्यान करके अपने विचार प्रकट किये और मैंने वहाँ उपस्थित सभी बुद्धिजीवी जिन्हें अपने घर के राशन से ज्यादा देश की अर्थव्यवस्था की चिंता थी।

उन सभी के सामने मैंने कह दिया कि अर्थव्यवस्था सुधारने का मेरे पास ऐसा कारगर तरीका है कि मंदी छूमंतर हो जाएगी, कारों की ब्रिकी भी बढ़ जाएगी और वो उपाय है दो करोड़ रोजगार और हर आम आदमी के खाते मे 15-15 लाख रूपये जमा कर दिये जाएं। फिर देखना मंदी कैसे नहीं जाती क्योंकि फि र हर आदमी के पास कार होगी और देखते ही देखते कारों की ब्रिकी आसमान छूने लगेगी और आटो सेक्टर मे व्याप्त मंदी क ई सालों तक दूर हो जाएँगी। मेरा ऐसा उपाय सुनकर सब सन्न रह जाते हैं। फिर भगत जी कहते है कि अच्छा चलता हूँ आज ऑफिस मे मुझे बहुत काम है। ऐसा कहकर वो चल दिये और फिर सभी लोग बहाना बनाकर चल दिए । फिर चाय पीने के लिए नये लोग आ जाते है अर्थव्यवस्था पर अपना ज्ञान देने के लिए। मैं भी चाय का आखिरी घूँट पीकर वहाँ से चला जाता हूँ कहीं और पर मंदी दूर करने के उपाय सुनने के लिए।

अमित कुमार
(लेखक टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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