ग्लोबल वॉर्मिंग हो चुकी है बेलगाम

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कोरोना महामारी के बीच भले जलवायु परिवर्तन की चर्चा दब गई हो, लेकिन ये खतरा टला नहीं है। बल्कि बढ़ता जा रहा है। हाल में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन और अन्य वैश्विक विज्ञान समूहों की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले पांच सालों में दुनिया में चार में से एक बार ऐसा मौका आ सकता है, जब साल इतना गर्म हो जाए कि वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1।5 डिग्री सेल्सियस ऊपर चला जाएगा। साल 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना तय है, ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके। पेरिस समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा हुआ है। साथ ही इस समझौते में सभी देशों को वैश्विक तापमान बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहा गया है। 2018 में आई यूएन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया इससे भी ज्यादा गर्म होती है, तो उससे खतरनाक समस्याओं की संभावना काफी बढ़ जाएगी। हालिया रिपोर्ट ऐसे समय में जारी हुई है जब अमेरिका मौसम की मार झेल रहा है।

कैलिफोर्निया के जंगलों में आग से भारी तबाही मची है। इस राज्य में गर्मी से लोग बेहाल हैं। वहीं हाल में दो शक्तिशाली तूफान भी अमेरिका के कुछ हिस्सों में चिंता का सबब बने रहे। इसी साल डेथ वैली में तापमान 54.4 डिग्री सेल्सियस को छू गया, तो साइबेरिया में तापमान 38 डिग्री के पास जा पहुंचा। हालिया रिपोर्ट रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया 19वीं शताब्दी के अंतिम सालों की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म हो चुकी है। बीते पांच साल अपने पूर्व के पांच सालों से अधिक गर्म रहे हैं। यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी का कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस की संभावना साल दर साल बढ़ रही है। अगर हम अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लाते हैं, तो यह हो सकता कि अगले दशक तक हो जाएगा। हालिया रिपोर्ट में कोयला आधारित अर्थव्यवस्था से हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने, समाज और लोगों को सुदृढ़ बनाने पर जोर दिया गया है। इस रिपोर्ट के बाद इस बात पर फिर जोर दिया जा रहा है कि बड़े प्रदूषणकारी देशों जैसे चीन, अमेरिका और भारत को कार्बन न्यूट्रल बनने की जरूरत है।

भारत को ही देख लीजिए सितंबर में जून जैसी गर्मी के एहसास होते रहे वो भी उत्तर भारत में। जहां अमूमन सितंबर के तीसरे हफ्ते से ये एहसास होने लगता है कि ठंड का मौसम आने ही वाला है। लेकिन इस बार ऐसी गर्मी जो ना देखी, ना सही। ये आलम तो तब है जब कोरोना की वजह से तालाबंदी में सभी कारखाने व वाहन बंद रहे। पर्यावरण को राहत मिलने की खबरें थी लेकिन सितंबर की गर्मी ही बता गई कि कहीं तो कुछ बड़ी गड़बड़ है। अब सरकारों को ही नहीं बल्कि धरती पर हर इंसान को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी वरना झुलसने के लिए तैयार रहिए। ये मसला किसी देश का नहीं बल्कि हर देश और हर इंसान से तालुल्क रखता है तो जाहिर सी बात है जैसे हमें अपनी जान की चिंता रहती है वैसे ही हमें कुदरत की चिंता और देखभाल तो करनी ही होगी, तभी हम चैन से जी सकेंगे।

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