भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के करनाल स्थित गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान केन्द्र ने गेहूं की एक नई किस्म ‘करन वन्दना’ पेश की है। यह किस्म रोग प्रतिरोधी क्षमता रखने के साथ-साथ अधिक उपज देने वाली है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की यह किस्म उत्तर-पूर्वी भारत के गंगा तटीय क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त है। वर्षों के अनुसंधान के बाद विकसित ‘करन वन्दना’अधिक पैदावार देने के साथ गेहूं ‘ब्लास्ट’ नामक बीमारी से भी लडऩे में सक्षम है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम जैसे उत्तर पूर्वी क्षेत्रों की कृषि भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु में खेती के लिए उपयुक्त है।
उनके अनुसार जहां गेहूं की अन्य किस्मों से औसत उपज 55 क्विन्टल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जाती है वहीं ‘करन वन्दना’ से 64.70 क्विन्टल प्रति हेक्टेयर से भी अधिक की पैदावार हासिल की जा सकती है। संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया गेहूं की इस नई किस्म (‘करन वन्दना’-डीबीडब्ल्यू 187) में रोग से लडऩे की कहीं अधिक क्षमता है। साथ ही इसमें प्रोटीन के अलावा जैविक रूप से जस्ता, लोहा और कई अन्य महत्वपूर्ण खनिज मौजूद हैं जो आज पोषण आवश्यकताओं की जरुरत के लिहाज से इसे बेहद उपयुक्त बनाता है।
उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर धान में ‘ब्लास्ट’ नामक एक बीमारी देखी जाती थी लेकिन पहली बार दक्षिण पूर्व एशिया में और अभी हाल ही में बांग्लादेश में गेहूं की फसल में इस रोग को पाया गया था और तभी से इस चुनौती के मद्देनजर विशेषक र उत्तर पूर्वी भारत की स्थितियों के अनुरूप गेहूं की इस किस्म को विकसित करने के लिए शोध कार्य शुरु हुआ जिसके परिणामस्वरूप ‘करन वन्दना’ अस्तित्व में आया। इसमें इस किस्म में इस रोग के साथ कई रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है। उन्होंने बताया कि इस नई किस्म के गेहूं की बुवाई के बाद फसल की बालियां 77 दिनों में निकल आती है और कुल 120 दिनों में यह पूरी तरह से तैयार हो जाता है।