गली के कुत्तों से डर लगता है

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हाल ही योग-दिवस था। तभी भक्तों, मंत्रियों कृपाकांक्षियों, भावी सेवकों, सरकारी अधिकारियों, कर्यकुशलता का प्रमाण देने के लिए जल-थल-नभ जहां भी संभव हुआ ‘योग’ किया। जैसा भी आया, फोटो भी ऊपर-नीचे भिजवाया, छपवाया। हमारे पास यह सुविधा नहीं है। हम तो पिछले सतत्तर वर्षों से शीर्षासन कर रहे हैं लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया, फोटों छपना तो दूर की बात है। सरकार हमारे सातवें पे कमीशन का 31 महीने से बकाया दबाए हुए है। क्या पता, योग-दिवस की उपेक्षा करने के दंडस्वरूप सरकार भविष्य में पेंशन में ही कोई अड़ंहा न डाल दे। इसलिए मोदी जी को देख-देखकर सच्चा-झूठा अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन भी किया। सो हलकी-सी थकान हो गई थी। कहते हैं इस आसन से तोंद नहीं बढ़ती। हमें इस आसन की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हमारा तो निराला जी वाले भिक्षुक की तरह ‘पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक’ वाला हाल है। हां, फटी-पुरानी झोली का मुंह फैलाने की नौबत अभी नहीं आई है।

इसी दिन इंग्लैंड और श्रीलंका का क्रिकेट मैच भी था। कुछ भी हो श्रीलंका है अजब टीम। अपना भला हो या न हो लेकिन बांग्लादेश की तरह किसी का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। आखिर तक रोमांच बना रहा और हमारी धारणा के अनुसार इसने इंग्लैंड का खेल बिगाड़ ही दिया था। कुल मिलाकर दिनचर्या और रात्रिचर्या दोनों ही अस्त-व्यस्त हो गई। सुबह समय पर आंख न खुलना। खुली भी तब जब तोताराम ने जोर से हमारे कान के पास आकर नारा लगया – ‘जय श्रीराम’ सुनते ही हम अपना प्लास्टिक का अढ़ाई फुट का सफेद पाइप संभालते हुए उठ बैठे-क्या बात है, युवराज अंगद, महाराज सुग्रीव, घबराना नहीं। हम आ रहे हैं। ‘जय श्री राम’।

तोताराम ने हंसते हुए कहा- भाई साहब, शांत। कोई चिंता की बात नहीं है। यह तो मैंने आपको विश करने लिए ‘गुड मोर्निग’ के जैसा ही कुछ कह दिया। हमने कहा-तोताराम, यह ‘यह गुड मोर्निंग जैसा कुछ’ नहीं है। यह युद्धघोष है। और तुझे पता होना चाहिए कि रामचरितमानस में तो ‘यह श्रीराम’ कहीं आया ही नहीं है। राम और रावन की दुहाई भी केवल युद्ध के समय ही आती है- इत रावण उत राम दुहाई। जयति जयति जय परी लराई।। आधुनिक काल में भी जब अशोक सिंघल ने अयोध्या कूच का नारा दिया था तब पहली बार ‘जय श्रीराम’ सुनने को मिला था। बोला – लेकिन तुझे इससे परेशानी क्या है? हमने कहा – तोताराम परेशानी न राम से है, न रहीम से है। परेशानी उस वातावरण से है, जो इन नारों के द्वारा बन रहा है। लगता है किसी युद्ध के लिए हम दूसरे को तैयार कर रहे है। नारों से एक दूसरे जो मरने-मारने का जोश दिला रहे हैं।

और याद रख जब आदमी अपने विवेक से, पूरे होशोहवास में अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहा होता है तो वह किसी और के नाम का नारा लगता है। अन्यथा जब आमने सामने दोनों का युद्ध होता है तो रावण और राम तो किसी के नाम का कोई नारा नहीं लगाते। किसी भी पशु-पक्षी को प्राणान्तक झड़प करते हुए भी कोई डराने के लिए नारा लगाते हैं। बोला-तो फिर तूने फुट वाला पाइप क्यों उठाया ? हमने कहा-तोताराम, हम सुबह जब अपनी डॉगी मीठी को घुमाने, खुद थोड़ा-सा घूमने और दूध लाने के बहाने एख पंथ तीन काज करने जाते हैं तो हमें खुद गली के कुत्तों से डर लगता है इसलिए हम उन्हें डराने के लिए यह पाइप रखते हैं। वैसे हमें पता है कि बहुत पुराना है, कभी भी टूट सकता है। बोला – तो फिर संसद में अपने ‘माननीय’ गण क्यों जय काली, जय भीम, जय श्रीराम, अल्लाह हो अकबर, हर-हर महादेव आदि के नारे लगा रहे थे? क्या वहां कोई युद्ध होने वाला था? क्या एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश की संसद में भी कोई डर इन सब के अंदर समाया हुआ है? हमने कहा – बिल्कुल। सब डरे हुए हैं। सबके मन में चोर है। यदि ऐसा नहीं है तो यदि कोई नारा ही लगाना था तो वही नारा लगाते, जिसे इस देश ने अपने संविधान का ध्येय वाक्य स्वीकार किया है- ‘सत्यमेव जयते’ और जिस संविधान के प्रतीक के रूप में मोदी जी ने संसद-भवन की सीढियों पर माथा टेका था।

रमेश जोशी
लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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