गरीबों की उम्मीद बनीं प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं

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घोषणाएं करना आसान है, लेकिन उनको जमीन पर उतारना कठिन। एक वक्त था जब उत्तर प्रदेश की मेडिकल सुविधाएं बदहाल थीं। इस पर से लोगों का भरोसा उठ चुका था। लोग सरकारी अस्पतालों में जाते थे और सरकार को कोसते हुए लौटते थे। महानगरों के महंगे अस्पतालों में इलाज कराना उनकी बेबसी थी। ऐसे अधिकांश अस्पतालों के मरीज उत्तर प्रदेश के ही होते थे। ऐसा सिर्फ सक्षम लोग ही करते थे। अगर किसी गरीब को कोई जटिल रोग हो गया तो उसे दुआ पर ही भरोसा करना होता था। लेकिन आज स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल चुकी है। अब किसी गरीब को इलाज के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना आयुष्मान भारत के अंतर्गत एक करोड़ 18 लाख गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक के चिकित्सा बीमा एवं 10 लाख 56 हजार छूटे परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के जरिए लाभान्वित किया गया। इस तरह से सरकार ने प्रदेश के गरीबों को मुफ्त में अद्यतन इलाज और दवाईयां मुहैया कराकर उनको नवजीन प्रदान कर दिया।

साल 2017 में जब बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ और बेहतर बनाने की ठानी। नतीजन प्रदेश में मेडिकल सुविधाएं तेजी से बढ़ी हैं। चाहे वो नये मेडिकल कॉलेज की बात हो या एक्स निर्माण की। आंकड़े इसके सबूत हैं। उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से साल 2014 तक सिर्फ 13 मेडिकल कॉलेज थे, पर योगी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में रिकॉर्ड 15 नए मेडिकल कॉलेज बने। इनमें से आठ का निर्माण कार्य चल रहा है। इसके अलावा 14 राजकीय मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में 7 मेडिकल कॉलेजों अयोध्या, बस्ती, बहराइच, फिरोजाबाद, बदायूं और शाहजहांपुर और राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान ग्रेटर नोएडा में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश के लिए गर्व की बात है कि गोरखपुर और रायबरेली में एम्स का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इन दोनों एम्स में ओपीडी चल रही है और एमबीबीएस की 50-50 सीटों पर दाखिला भी हो चुकी है।

प्रदेश में पहली बार 250 नई एएलएस यानी एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस संचालित की गई हैं। लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजयेपी की स्मृति में एक नए चिकत्सा विश्वविद्यालय की स्थापना का कार्य प्रगति पर है। एक वक्त था जब प्रदेश में इंसेफेलाइटिस, काला चार, मलेरिया समेत कई संक्रामक बीमारियों का प्रकोप था। हर साल बड़ी संख्या में लोग इनसे पीड़ित होते थे। कुछ की मौत भी हो जाती थी। लेकिन आज इन बीमारियों पर काफी हद तक काबू पाया जा रहा है। विगत ढाई वर्षों में प्रदेश सरकार के प्रयासों एवं अंतर्विभागीय समन्वय का ही नतीजा है कि चार दशक से पूर्वांचल के मासूमों के लिए काल बनी इंसेफे लाइटिस के मामलों में 35 फीसदी की कमी हुई है, जबकि मौत के आंकड़ों में 65 प्रतिशत की कमी आई है। स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतरी के नाते ही उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में मातृ मृत्यु दर 285 प्रति लाख के मुकाबले वर्ष 2019 में घटकर यह दर 201 प्रति लाख रह गई है। मातृ मृत्यु दर में सबसे ज्यादा 30 प्रतिशत गिरावट लाने के लिए उत्तर प्रदेश को भारत सरकार की ओर से एमएमआर अवार्ड से नवाजा गया। वर्ष 2014 में शिशु मृत्यु दर 48 प्रति हजार के मुकाबले वर्ष 2019 में 41 प्रति हजार रह गई। ये आंकड़े खुद सरकार की सफलता को बताते हैं। जाहिर है वो दिन दूर नहीं जब प्रदेश में मेडिकल सेवाओं के लिए दूसरे प्रदेशों के लिए मिसाल बनेगा।

महाबीर जायसवाल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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