खेल-खेल में करोड़ों का खेल

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पहले मुझे शक होता था मगर अब पक्का विश्वास हो चला है कि हमारी तमाम सरकारें लुटेरी हैं । जब जहां मौक़ा मिलता है , हमारी गाढ़ी कमाई हमसे छीन लेती हैं। यही नहीं अपने कुत्ते-बिल्लियों को भी वे खुली छूट देती हैं कि जितना चाहो गऱीब जनता को लूटो। अब इस कोरोना संकट को ही देखिये । बेशक नब्बे फ़ीसदी लोग सड़क पर आ गए मगर दस फ़ीसदी फिर भी ऐसे हैं जिन्होंने सरकारी मिली भगत से जम कर चांदी काटी । अब आम आदमी तो बेचारा निजी अस्पताल, मेडिकल स्टोर और राशन वालों के अतिरिक्त और किसी को देख ही नहीं पाता, अत: उसे पता ही नहीं कि किस किस ने इस आपदा को अवसर बनाया और उसकी जेब काटी। अब इस एन 95 मास्क को ही लीजिये जिसके नाम पर हज़ारों करोड़ रुपये का खेल हो गया। शुरुआती दौर में कहा गया कि कोरोना से बचाव में यह मास्क सर्वाधिक कारगर है और जब करोड़ों लोगों ने मुंह मांगी क़ीमत पर इसेखरीद लिया तो अब कह दिया कि यह मास्क बेकार है । कोरोना संकट से पहले देश में चुनिंदा कम्पनियाँ ही एन 95 मास्क बनाती थीं । इनमे भी त्रियम, वीनस और मैगलम का मास्क सबसे अधिक बिकता था ।

जनवरी माह से पहले इस मास्क की क़ीमत बारह रुपये थी मगर मार्च का महीना आते आते तक इस मास्क की क़ीमत सत्तर रुपये से भी अधिक हो गई। बड़ी कम्पनियों की देखा देखी जब हज़ारों छोटी कम्पनियां भी मैदान में कूद पड़ीं तब कहीं जाकर इसके दाम कुछ कम हुए। मगर आज भी बाज़ार में यह तीस रुपये से कम में नहीं मिलता जबकि इसकी लागत केवल ग्यारह रुपये है । एक सर्वे के अनुसार देश में प्रतिदिन दस करोड़ मास्क की मांग है और प्रतिदिन 1600 करोड़ रुपये के तो केवल एन 95 मास्क ही बिकते हैं । जनवरी में बताया गया कि यह मास्क बाहर से अंदर की तरफ़ आने वाले 98 फ़ीसदी बैक्टीरिया और वायरस को रोकता है । दावा किया गया कि यह अधिक समय तक चलता है और चेहरे पर भी पूरी तरह फि़ट बैठता है। इसी का नतीजा हुआ कि अस्पतालों, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कर्मियों, भयभीत नागरिकों व आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति के लोगों ने भारी मात्रा में यह मास्क खऱीद लिए। मगर अब छ: महीने बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने एडवाइजऱी जारी की है कि यह मास्क प्रदूषण के कण रोकने में तो सक्षम है मगर वायरस और बैक्टीरिया के मामले में उपयोगी नहीं है ।

यही नहीं यह भी कहा गया कि इस मास्क को पहनने वाले को यदि कोरोना है तो उसके निकट आने वाले व्यक्ति तक वायरस को पहुंचने से यह मास्क नहीं रोक सकता। जबकि जनवरी में इन्हीं विभागों और संस्थाओं ने दावा था कि यह अपने नाम के अनुरूप 95 फ़ीसदी बैक्टीरिया रोकता है । कमाल की बात देखिए कि अमेरिका, यूरोप और चीन समेत तमाम बड़े देशों की तरह हमारे यहां इस तरह के मास्क की क्वालिटी चेक करने और उसे प्रमाणित करने के लिए आजतक कोई नियामक संस्था भी हमारे यहां नहीं बनी और सादे कपड़े में ढक्कन लगा कर उसे एन 95 के नाम पर ख़ूब बेचा जा रहा है। सवाल यह है कि इस मास्क में एसी कौन सी राकेट साइंस थी जो छ: महीने तक सरकार को पता नहीं चली? और अब जब पूरे मुल्क ने अपनी सुरक्षा को यह मास्क खऱीद लिये तो अब इसे बेकार बता रहे हैं । क्या इस बात का सरकार को अंदाज़ा है कि न जाने कितने करोड़ लोग इस मास्क को पहन कर स्वयं को सुरक्षित महसूस करते रहे होंगे और कितने लोग लापरवाही में कोरोना के शिकार हो गए? देश में कोरोना से हुई न जाने कितने फ़ीसदी मौतों की वजह यह मास्क ही रहा होगा? समझ से परे है कि जो काम मुंह पर कपड़ा लपेट कर अथवा गमछे व दुपट्टे-चुन्नी से भी हो सकता था उसके लिये आखिर इतनी बड़ी लूट क्यों होने दी गई?

राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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