किसी काम में सफलता तभी मिल सकती है, जब हम खुद पर भरोसा करेंगे। जब तक हमें अपनी शक्तियों पर संदेह रहेगा, तब तक हम लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते हैं। ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग बताए गए हैं, जिनकी सीख यही है कि कभी भी खुद पर संदेह नहीं करना चाहिए। यहां जानिए श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड का एक ऐसा ही प्रसंग… सुंदरकांड के अनुसार सभी वानरों के सामने एक असंभव सी दिखने वाली चुनौती थी। सौ योजन लंबा समुद्र लांघकर माता सीता की खोज में लंका पहुंचना था।
जब सभी हनुमानजी, अंगद, जामवंत सहित सभी वानरों ने समुद्र लांघने की बात पर सोचना शुरू किया तो सबसे पहले जामवंत ने असमर्थता जाहिर की। जामवंत ने कहा कि वह वृद्धावस्था के कारण ये काम नहीं कर सकता। इसके बाद अंगद ने कहा कि मैं समुद्र पार करके जा तो सकता हूं, लेकिन फिर वापस लौट पाऊंगा, इसमें संदेह है। अंगद ने खुद की क्षमता और प्रतिभा पर ही संदेह जताया। ये ही आत्मविश्वास की कमी का संकेत है। हमें कभी भी खुद की क्षमता पर संदेह नहीं रना चाहिए। जब जामवंत और अंगद ने मना कर दिया तो जामवंत ने हनुमानजी को इस काम के लिए प्रेरित किया।
हनुमान को उनकी शक्तियां याद दिलाई। हनुमानजी को भी अपनी शक्तियां याद आ गईं। उन्होंने अपने शरीर का आकार विशाल कर लिया। आत्मविश्वास से भरकर हनुमानजी बोले कि मैं अभी एक ही छलांग में समुद्र लांघकर, लंका उजाड़ देता हूं और रावण सहित सारे राक्षसों को मार र सीता को ले आता हूं। खुद शक्ति पर हनुमानजी को इतना विश्वास था। जामवंत ने हनुमानजी को शांत किया और कहा कि नहीं आप सिर्फ सीता माता का पता लगाकर लौट आइए। हमारा यही काम है। फिर प्रभु श्रीराम खुद रावण का संहार करेंगे। हनुमानजी समुद्र लांघने के लिए निकल गए।
रास्ते में सुरसा और सिंहिका नाम की राक्षसियों ने उनका रास्ता रोका, लेकिन उनका आत्मविश्वास कम नहीं हुआ। जब हम किसी काम पर निकलते हैं तो अक्सर हमारा मन विचारों से भरा होता है। संदेह और भय हमारे दिमाग में चलते रहते हैं। अधिकतर अवसरों पर अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त नहीं होते। जैसे ही परिस्थिति बदलती है हमारा विचार बदल जाता है। ये काम में असफलता की निशानी है। अगर हम सफलता चाहते हैं तो हमें खुद पर भरोसा करना चाहिए, वरना लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे।