खुदा बन गए हैं सरकार!

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नुसरत फतेह अली खान की एक मशहूर नज्म की पंक्तियां हैं- मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम, वो खुदा हो गए देखते देखते! देश के लोगों ने अपने वोट की ताकत से जिस सरकार को चुना है वह सरकार अब खुदा हो गई है। प्रधानमंत्री को इसके लिए बधाई कि उन्होंने लोकसभा में कहा कि ‘जिसका कोई नहीं, उसके लिए सरकार है’। पहले कहा जाता था कि ‘जिसका कोई नहीं उसका खुदा है’। अब खुदा की जगह सरकार आ गई है। वैसे भी यह देश माई बाप सरकारों के लिए अभिशप्त है। वहीं माई बाप सरकार अब भगवान में बदल गई है।

पर क्या सचमुच जिसका कोई नहीं है उसके लिए सरकार है? या इसका उलटा है? जिसके लिए सब कुछ है उसी के लिए सरकार है! अगर ऐसा नहीं होता तो क्रिकेटर शिखर धवन का अंगूठा टूटने पर दुख जताने वाले सरकारजी मुजफ्फरपुर में दो सौ बच्चों के मर जाने पर भी तो दुख जताते! उसमें तो सरकार को 23 दिन लग गए। जिस क्रिकेटर का अंगूठा टूटा उसके लिए सब कुछ है। उसके अंगूठे का इलाज लंदन में हुआ। उसे करोड़ों रुपए की फीस मिलती है और करोड़ों रुपए वह विज्ञापन से कमाता है और सबसे ऊपर उसका विकल्प भी भारतीय क्रिकेट के पास है।

पर मुजफ्फरपुर में जो दो सौ बच्चे मर गए, उनका कोई नहीं था। उनके लिए न अस्पताल थे, न डॉक्टर थे, न दवाएं थीं और न सरकार थी। और हां, उनके मां-बाप के पास उनका कोई विकल्प भी नहीं था। सरकारजी, उनके जैसे अस्पताल में भरती सैकड़ों बच्चों के परिजनों को तो सिर्फ भगवान का ही भरोसा था कि भगवान बारिश करेंगे और बीमारी रूक जाएगी। ऐसा ही हुआ बारिश हुई और बीमारी का कहर थम गया, बच्चों की जान बच गई। इसमें आप 23 दिन तक कहां थे सरकारजी!

राजस्थान के बाड़मेर में रामकथा का पंडाल गिरने से 14 लोगों की मौत हुई तो सरकारजी ने तत्काल दुख जताया। दुख जताने की बात भी थी पर झारखंड में खंभे से बांध कर जिस तबरेज अंसारी की पिटाई हुई और जय श्री राम, जय हनुमान कहने को मजबूर किया गया और जिसने अंततः दम तोड़ दिया, उसका और उसकी बेवा का कोई है या नहीं? वह हृदयविदारक वीडियो देख कर सरकारजी को दुख हुआ या नहीं, यह देश को पांच दिन बात पता चला! उसमें भी ज्यादा दुख यह झलका कि लोग उनकी पार्टी के शासन वाले राज्य को बदनाम कर रहे हैं। वह संभवतः आपका भक्त नहीं था इसलिए क्या आप भी उसके भगवान नहीं हैं! भगवान तो ऐसा भेदभाव नहीं करते हैं, फिर सरकार क्यों करती है?

यह सिर्फ बिहार के बच्चों और झारखंड के तबरेज अंसारी का मामला नहीं है। महाराष्ट्र में 12 हजार किसानों ने पिछले पांच साल में आत्महत्या की जबकि सरकारजी का अवतार किसानों का आय दोगुनी करने के वादे के साथ था। पांच साल दावा भी होता रहा कि हमने किसानों की आय डेढ़ गुनी कर दी है, फिर क्यों इतनी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं? किसानों की आय डेढ़ गुनी, दोगुनी करते करते करते आप अंत में छह हजार रुपए सालाना की सम्मान राशि देने लगे। यहीं सम्मान राशि देना सरकार के खुदा हो जाने का प्रतीक है। जाहिर है सरकारजी को लग रहा है कि वे बिना किसी वजह के किसानों को छह हजार रुपए दे रहे हैं और ऐसी नेमत तो सिर्फ खुदा की ही हो सकती है।

ऐसी ही नेमतें बांट कर सरकारें पहले माई बाप हुईं और अब खुदा हो गई हैं। पर हर हर मोदी के नारे से महादेव हो जाने का मुगालता पालने वालों को याद रखना चाहिए कि लोग तो रेलवे लाइन पर पड़े पत्थर को भी उठा कर महादेव बना देते हैं। महादेव बनने के बाद आपने क्या किया, वह अहम होता है। यह शेर भी इस मौके के लिए मौजूं हैं कि ‘तुझसे पहले जो शख्स यहां तख्तनशीन था, उसे भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीन था’!

अजीत द्विवेदी
लेखक वरिष्ठपत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

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