कहा जाता है कि वैदिककाल में देव और असुरों के झगड़े के चलते धरती के अधिकतर मानव समूह दो भागों में बंट गए। हजारों वर्षों तक इनके झगड़े के चलते ही पहले सुर और असुर नाम की दो धाराओं का धर्म प्रकट हुआ, यही आगे चलकर वैष्णव और शैव में बदल गए। दोनों क्रमशः शिव और विष्णु को भगवान मान कर उनकी पूजा करते हैं। इन दोनों संप्रदायों के अलग धार्मिक ग्रंथ हैं।
श्रीराम नवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और एकादशी आदि पर्व पर शैव व स्मार्त या वैष्णव शब्द सुने जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि विशेषकर ये दो पर्व दो दिन मनाए जाते हैं। पंचांग में उल्लेख होता है शैव जन्माष्टमी और स्मार्त जन्माष्टमी। शैव का अर्थ है शिव की परंपरा या शिव के मानने वाले उपासक। जो शिव पूजक हैं, वे शैव कहलाते हैं। ये लोग जिस दिन किसी पर्व को मनाते हैं वह शैव कहलाते हैं, जबकि स्मार्त वैष्णवों से संबंद्ध है।
वैष्णवों में आचार की दृष्टि से दो भेद हैं स्मार्त और भागवत, जो स्मृतियों में दी गई विधि आचार की व्यवस्था का पालन करते हैं, वे स्मार्त कहलाते हैं। इस अर्थ में स्मार्त वैष्णवों की शाखा है, जबकि शैव शिव उपासकों की। शैव और स्मार्त के आराध्य देव और उपासना पद्धति कई स्तरों पर मिलती-जुलती है जो अनेक स्तरों पर पूरी तरह अलग है। भागवत पुराण वैष्णव (विष्णु भक्तों) का धार्मिक ग्रंथ है।
तो वही वैष्णव ग्रन्थों में भगवान शिव के इस अपमान को सुन कर शैव ग्रंथ सौरपुराण भगवान विष्णु पर निशाना साधते है। शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया। इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के धर्म) के समन्वय का कार्य भी किया। बाद में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय बना जिसे स्मार्त संप्रदाय कहते हैं।