क्या संघ को रास आएगी मध्यस्थता की नई पहल

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इसे संयोग ही कहा जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब काशी में बाबा विश्वनाथ डॉरिडोर की आधारशिला रख रहे थे तब मध्यप्रदेश के ग्वालियर में संघ की प्रतिनिधि सभा में चिंतन-मंथन शुरु हुआ। देश जब चुनाव के मुहाने पर है तब सियासी माहौल पहले से ही गरमाया हुआ है। चाहे फिर वह आतंकवाद के खिलाफ एयर स्ट्राइक हो या फिर राफेल में भ्रष्टाचार के आरोप के बीच।

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद के लिए तीन सदस्यीय कमेटी के गठन के साथ जब 8 हफ्ते की समय सीमा के अंदर समाधान निकालने का एक नया रास्ता निकाला। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब इसे काशी में बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर की आधारशिला रख रहे थे तब मध्यप्रदेश के ग्वालियर में संघ की प्रतिनिधि सभा में चिंतन-मंथन शुरु हुआ। देश जब चुनाव के मुहाने पर है तब सियासी माहौल पहले से ही गरमाया हुआ है। चाहे फिर वह आतंकवाद के खिलाफ एयर स्ट्राइक हो या फिर राफेल में भ्रष्टाचार के आरोप के बीच।

आचार संहिता लागू होने से पहले अच्छे दिन आएंगे का नारा पिछले लोकसभा चुनाव में बुलंद करने वाले नरेन्द्र मोदी शिलान्यास और लोकार्पण ही क्यों न हो, ऐसे में मध्यस्थता की पहल जब पिछले प्रयासों से अगल सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के सामने आई हैं। दोनों पक्षों में जुड़े नेताओं के बयान गौर करने लायक हैं। चाहे फिर ओवैसी हों या उमा भारती, विश्व हिन्दू परिषद हो या फिर मुस्लिम संगठन या फिर साधु-संत का रुख। कोई भी पीछे हटने को तैयार नजर नहीं आता। सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या नई प्रक्रिया के शुरु होने के साथ अयोध्या मंदिर विवाद का राजनीतिकरण मतलब इसे चुनाव में मुद्दा बनाना किसी के लिए आसान नहीं होगा या फिर ऐसे बयानों से सियासी हित साधे जाएंगे?

तो बड़ा सवाल संघ जो प्रयागराज कुम्भ तक मोदी सरकार पर कानून बनाने और अध्यादेश लाने का दबाव बनाता रहा आखिर सुप्रीम कोर्ट की इस नई गाइडलाइन पर ग्वालियर बैठक में चिंतन-मंथन के बाद किस निष्कर्ष पर पहुंचेगा क्योंकि पहले ही मंदिर निर्माण को लेकर किसी आंदोलन की बजाए चुनाव तक के लिए वह इसे स्थगित कर चुका है। उस वक्त साधु-संतों का एक और संगठन शंकरचार्य स्वामी स्वरूपानंद के नेतृत्व में मंदिर शिलान्यास को लेकर लिया था, लेकिन अब जब हो हल्ला लगभग शांत हो चुका था, एक बार फिर मध्यस्था की कोशिश शुरू होने जा रही है, न्यायालय द्वारा गठित इस पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर पहले भी प्रयास कर चुके हैं, लेकिन बात बनी नहीं थी… उनके विवादित बयानों को एक बार फिर उछाला जा रहा है तो भाजपा की ओर से केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने साफ कर दिया कि अयोध्या में जहां रामलला विराजे हैं वहां मंदिर निर्माण के अलावा उन्हें कोई फार्मूला मंजूर नहीं होगा। ऐसे में जब कांग्रेस, समाजवादी पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों की सूची घोषित किए जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में भी टिकट के क्राइटेरिया और उम्मीदवार चयन को लेकर माथापच्ची शुरु हो चुकी है। तब संघ की ग्वालियर बैठक का महत्व अचानक और बढ़ गाय है… मोदी सरकार और एयर स्ट्राइक की तारीफ संघ कर चुका है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल इस बैठक का हिस्सा बनने वाले हैं।।

पिछले चुनाव में ‘अच्छे दिन आयेंगे’ के नारे को लेकर नरेन्द्र मोदी के वेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा था तो अब चर्चा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ उनके नए नारे की है तो दूसरी और कांग्रेस खासतौर से राहुल गांधी राफेल के मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं है तो माहौल में एयर स्ट्राइक और उससे पहले सर्जिक स्ट्राइक ही याद दिलाकर भाजपा जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की धमक के साथ पाकिस्तान को निशाने पर ले रही तो माहौल देश का बदला है। कुल मिलाकर जब मोदी सरकार की उपलब्धियों और नीतियों से ज्यादा चर्चा राष्ट्रवाद की हो रही है तब अचानक अयोध्या विवाद में मध्यस्थता की एंट्री को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

                  राकेश अग्निहोत्री
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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