क्या कश्मीर के नाम पर यूं ही लहू बहता रहेगा

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कश्मीर में 370 और 35-ए की ऊहापोह की स्थिति

आज ऐसा समय आ गया है कि ज्यादातर देशों के पास परमाणु बमों की क्षमता है, जो पूरी दुनिया के लिये घातक है। अटल जी सरकार ने भारत ने भी परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। इससे पहले देश को एक कमजोर श्रेणी में गिना जाता था। परंतु इस परीक्षण के होने के पश्चात दुनिया को यह बात समझ आ गई कि भारत भी किसी से पीछे नहीं है। दुनिया के अधिकांश देश परमाणु बमों से लैस हैं। यदि यही हाल रहा तो जैसे अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम से हमला किया था जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई थी तथा आज भी वह देश इस दंश को झेल रहा है।

भारत और पाकिस्तान का बंटावारा हुआ। ठीक बंटवाने के पश्चात पाकिस्तान ने 1947 में भारत पर आक्रमण कर दिया, जिसे हम पहला कश्मीर युद्ध कहते हैं। यह युद्ध अक्टूबर 1947 में शुरू हुआ था। पड़ोसी पाकिस्तान की सेना के समर्थन के साथ हजारों की संख्या में जनजातीय लड़ाकुओं ने कश्मीर में प्रवेश कर राज्य के कुछ हिस्सों पर हमला कर उन पर कब्जा कर लिया। जिसके पश्चात भारत से सैन्य सहायता प्राप्त करने के लिए कश्मीर के महाराजा को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करने पड़े। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 22 अप्रैल 1948 को रेसोलुशन 47 पारित किया। इसके बाद तत्कालीन मोर्चों को ही धीरे-धीरे ठोस बना दिया गया, जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है। 1 जनवरी 1949 की रात को 23.59 बजे एक औपचारिक संघर्ष-विराम घोषित किया गया था। इस युद्ध में भारत को कश्मीर के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग दो तिहाई हिस्से (कश्मीर घाटी) जम्मू और लद्दाख, पर नियंत्रण प्राप्त हुआ। जबकि पाकिस्तान को लगभग एक तिहाई हिस्से पर आजाद कश्मीर और गिलगिट, बाल्टिस्तान। 1965 का भारत-पाक युद्ध।

यह युद्ध पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्रॉल्टर के साथ शुरू हुआ, जिसके अनुसार पाकिस्तान की योजना जम्मू कश्मीर में सेना भेजकर वहां भारतीय शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू करने की थी। इसके जवाब में भारत ने भी पश्चिमी पाकिस्तान पर बड़े पैमाने पर सैन्य हमले शुरू कर दिए। सत्रह दिनों तक चले इस युद्ध में हज़ारों की संख्या में जनहानि हुई थी। आखिरकार सोवियत संघ और संयुक्त राज्य द्वारा राजनयिक हस्तक्षेप करने के बाद युद्ध विराम घोषित किया गया। 1966 में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये। युद्धविराम की घोषणा के समय भारत पाकिस्तान की अपेक्षा मजबूत स्थिति में था। 1971 का भारत पाकिस्तान के बीच यह दूसरा युद्ध हुआ। इस युद्ध के बाद एक नया देश बांग्लादेश की स्थापना हुई।

देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरण परमाणु परीक्षण किया गया इसके बाद 1999 में भारत पाकिस्तान का तीसरा युद्ध हुआ जिसे कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध कारगिल जगह पर हुआ जिससे इसे करगिल युद्ध कहते है। यह बहुत ठंडा इलाका था जिसमे पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था जब भारत की सेना को पता चला तो उन्होंने इसका मुहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की और अब ठीक ऐसे ही हालात पैदा हो रहे है पुलवामा में हमारे 44 जवान आतंकी घटना में शहीद हो गये। इस घटना से सारे देशवासियों को झकझोर कर रख दिया। अब ऐसे समय में जब हमारे देश में लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो पड़ोसी देश को जवाब देना लाजिमी था। भारत पूरी दुनिया में एक अकेला ऐसा लोकतंत्र देश है, जो पूरे विश्व में शांति के लिये जाना जाता है। परंतु आज पड़ोसी देश ने ऐसे हालात पैदा कर दिये कि भारत को युद्ध न लड़ते हुए भी लडना पड़ रहा है। भारत ने जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक से पड़ोसी देश के दांत कट्ठे कर दिये थे।

परंतु पुलवामा हमले का जवाब देश ने बड़े धैर्य से दिया। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले का भारत ने बदला लिया है। भारत ने पड़ोसी की आतंकी कैंपों पर हमला बोला और उनके कई आतंकवादी कैंपों को ध्वस्त कर दिया। भारतीय वायुसेना का यह हमला पूरी तरह से सफल है और आतंकी कैंप पूरी तरह से तबाह हो गए हैं। दरअसल, सोमवार की देर रात भारतीय वायुसेना ने एलओसी पार कर पाकिस्तान सीमा में स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमला बोला और कई कैंपों को ध्वस्त कर दिया। आ रही खबरो के अनुसार भारतीय वायुसेना ने करीब 21 मिनट तक हमले को अंजाम दिया।

देश में इस समय कश्मीर में धारा370 तथा 35-ए पर भुचाल मचा है। ज्यादातर देशवासी इस धारा को हटवाने के पक्ष में हैं। परंतु कश्मीरी राजनेताओं में इस बात को लेकर आक्रोश पनप रहा है। वह उसी हालात में कश्मीर को रखना चाहते हैं। परंतु कश्मीर की ऐसी स्थिरता रहने की कम संभावनाएं नजर आती हैं। क्योंकि पिछले सत्तर सालों से कश्मीर को लेकर पड़ोसी देश अपना राग अलाप रहा था। अब देखना होगा कि क्या वास्तव में इस युद्ध से कश्मीर समस्या का कोई ठोस समाधान हो सकेगा या फिर जैसे पिछली बार भारत-पाक का युद्ध होते आये हैं ऐसा ही होगा। क्या कश्मीर के नाम पर यूं ही लहू बहता रहेगा।

      सुदेश वर्मा

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